For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

October 2013 Blog Posts (275)

ग़ज़ल -निलेश 'नूर' $अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में$

१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,

**

हुआ है तज्रिबा मत पूछ हम को क्या मुहब्बत में,........पहले तज़ुर्बा लिखा था जो गलत था .. अत: मिसरे में तरमीम की है. 

लगा दीदा ए तर का आब भी मीठा मुहब्बत में.

**

जो चलते देख पाते हम तो शायद बच भी सकते थे,

नज़र का तीर दिल पे जा लगा सीधा मुहब्बत में.

**

ख़ुमारी छाई रहती है, ख़लिश सी दिल में होती है,      

अजब है दर्द जो ख़ुद ही लगे चारा मुहब्बत में.

**

रवायत आज भी भारी ही…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 9:00am — 16 Comments

मुक्तक

1.

जो चाहते हो सब मिलेगा, कोशिश करके तो देख,

अंधेरा मिट जायेगा, एक दीप जला करके तो देख,

आंसू बहाने से कभी मंजिल नहीं है मिला करती,

तू मझधार में अपनी नाव कभी उतार करके तो देख।



2..

करके अहसान किसी पर जताया मत कीजिये,

अपने काम को दुनिया में गिनाया मत कीजिये,

मेरे बिना चलेगा नहीं यहां किसी का काम,

ऐसे विचार दिल में कभी लाया मत कीजिये।

3.

आओ अब अंधविश्वासों को भुला कर देखते है,

इस धरा पर प्रेम की गंगा बहा कर देखते…

Continue

Added by Dayaram Methani on October 17, 2013 at 12:00am — 13 Comments

विचारो का बीज.............

हाथ में कुछ बीज

यूँ ही ले के कागजो

पे बोने आ गयी हूँ

विचारो के बीज

सबको कहाँ मिलते हैं

मुझे भी बस एक ही मिला

एक बाग़ लगाना है

इसलिए मुट्ठी

कस कर बंद हैं

इस बीज को वृक्ष

वृक्ष से फिर बीज

इसी तरह

तो लगेगा बाग़

माली ने बताया था

माली वो जो

सबके भीतर हैं

मुझे मिला था

एक रोज जब

उसी ने दिया था

 ये एक बीज

''विचारो का बीज ''

"मौलिक व…

Continue

Added by savita agarwal on October 16, 2013 at 8:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल (५) : वो शाइरी सी है !

फ़िदा है रूह उसी पर, जो अजनबी सी है 

वो अनसुनी सी ज़बाँ, बात अनकही सी है//१ 

.

धनक है, अब्र है, बादे-सबा की ख़ुशबू है 

वो बेनज़ीर निहाँ, अधखिली कली सी है//२ 

.

कभी कुर्आन की वो, पाक़ आयतें जैसी 

लगे अजाँ, कभी मंदिर की आरती सी है//३ 

.

ख़फ़ा जो हो तो, लगे चाँदनी भी मद्धम है 

ख़ुदा का नूर है, जन्नत की रौशनी सी है//४ 

.

वो…

Continue

Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 16, 2013 at 5:00pm — 20 Comments

ग़ज़ल (४) : बताओ माँ, मेरी चादर कहाँ है !

कहाँ है कील, शर, नश्तर कहाँ है

मेरा काँटों भरा, बिस्तर कहाँ है//१

.

उठा के मार, मंदिर में पड़ा ‘वो’  

भला क्या पूछना, पत्थर कहाँ है//२

.

तभी सोंचू के, मैं क्यूँ उड़ रहा हूँ

अमीरों क़र्ज़ का, गट्ठर कहाँ है//३

.

लगे मय पी रहा है, आज वो भी

जहर पीता था, वो शंकर कहाँ है//४

.

बुराई झाँकती है, देख दिल से

छुपा उसको, तेरा अस्तर कहाँ है//५

.

सपोलें मारने से, कुछ न होगा 

चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ…

Continue

Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 16, 2013 at 4:30pm — 19 Comments

तान्या : वो लम्हा चित्रलिखित सा

हर इंसान के जीवन में

एक लम्हा

ऐसा आता है /

वक़्त नहीं थमता,

वह लम्हा

रह जाता है खड़ा हुआ

ज्यों चित्रलिखित सा ।

और कभी

जब चलते चलते

थक जाता है वक़्त

तो

इस लम्हे की छाया में

कुछ देर बैठ कर सुस्ताता है|

और कभी

जब बदली छा जाती है ,

और मन का पंछी

घबरा जाता है

तो यह लम्हा

इन्द्रधनुष सा

आसमान में बिखर जाता है /

और ये मौसम पहले जैसा खुशगवार

फिर हो जाता है ।

मै तो ऐसा…

Continue

Added by ARVIND BHATNAGAR on October 16, 2013 at 4:27pm — 15 Comments

आख़िरी पड़ाव:दीपक पांडेय

तिमिर में जो दीप्ति अवलोकित अंतिम वही ठिकाना

पथ खोजने पड़ेंगे खुद को, नही चलेगा कोई बहाना

कलेवर की पीर भूलकर लक्ष्य प्राप्ति की करों कामना

कर्म को तुम समझो गुरुवर, वेदनाओं को पाहूना



अंगीकार हो जहाँ पर सुख कहलाए वो आशियाना

मानव की काया नश्वर चरित्र ही असली गहना

रण की सफलता दिखलाए हर अराति को आईना

विजय प्राप्त मैं करता जाऊं सभी की यही तमन्ना



थकी भुजाएँ, लक्ष्य ओझल फिर भी अदम्य पराक्रम

अंकुश रहे चित्त पर यद्यपि प्रदर्शित धैर्य व… Continue

Added by DEEPAK PANDEY on October 16, 2013 at 12:45pm — 11 Comments

वक़्त बदला, हैं बदले ख़यालात से ...

ग़ज़ल -

 

२१२  २१२  २१२  २१२ 

 

वक़्त बदला, हैं बदले ख़यालात से 

रौंदता ही रहा हमको लम्हात से  . 

 

क्यों मयस्सर नहीं जिंदगी में सुकूँ 

जूझता ही रहा मैं तो हालात से   . 

 

माँगता था दुआ में तिरी रहमतें

उलझनें सौंप दी तूने इफरात से .

 

जुर्रतें वक़्त की कम हुईं हैं कहाँ 

खेलती ही रहीं मेरे जज़्बात से.

तू बरस कर कहीं भूल जाये न फिर 

भीगता ही रहा पहली बरसात से. 

 

बात…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on October 16, 2013 at 11:00am — 16 Comments

आज फिर...वही...

आज फिर एक सफ़र में हूँ...

आज फिर किसी मंज़िल की तलाश में,

किसी का पता ढूँढने,

किसी का पता लेने निकला हूँ,

आज फिर...

सब कुछ वही है...

वही सुस्त रास्ते जो

भोर की लालिमा के साथ रंग बदलते हैं,

वही भीड़

जो धीरे-धीरे व्यस्त होते रास्तों के साथ

व्यस्त हो जाती है,

वही लाल बत्तियाँ

जो घंटों इंतज़ार करवाती हैं,

वही पीली गाड़ियाँ

जो रुक-रुक कर चलती हैं,

कभी हवा से बात करती हैं,

तो कभी साथ चलती अपनी सहेलियों से…

Continue

Added by Manoshi Chatterjee on October 16, 2013 at 8:33am — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
देख तो ले तिलमिला कर ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122         2122

खुश हुआ खुद को भुला कर

या कहूँ मै तुझको पा कर

खुद को भी मै ने सताया 

दोस्ती को आजमा कर

ज़िंदगी का बोझ सर पे

चल रहा हूँ लड़खड़ा कर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 8:30am — 32 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
रिश्ते (अतुकान्त) // --सौरभ

बर्ताव

बर्ताव का अर्थ -- स्पर्श !

मुलायम नहीं..

गुदाज़ लोथड़ों में

लगातार धँसते जाने की बेरहम ज़िद्दी आदत



तीन-तीन अंधे पहरों में से

कुछेक लम्हें ले लेने भर से…

Continue

Added by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 2:00am — 43 Comments

रावण मरता नहीं। …… नवगीत

प्रतिवर्ष
पुतले  जल जाते  है

पर ,

रावण मरता नहीं





पाप- पुण्य की गठरी खोले
तोते है कितने वाचाल
अंधी श्रद्धा का यहाँ ,पर
फैल रहा है मकडजाल

नोट , करारे चढाने से
राहु
चाल बदलता नहीं .





सूट - बूट पहन कर रावण
गली गली मंडराते है
गर मिल जाये तितली ,कोई
पंख भी कतरे जाते है

भयग्रस्त हो गयी…
Continue

Added by shashi purwar on October 15, 2013 at 3:30pm — 14 Comments

दिले नादान आ जाना [ गजल ]

दिले नादाँ  पिया आना
दिले महफिल सजा जाना /

दिलों के जख्म सीले हैं
उन्हें मरहम लगा जाना /


सनम यह बेरुखी क्यों है ?
जरा आकर बता जाना /

सनम मुझसे खफा क्यों हो ?
वो हाले दिल सुना जाना /

नहीं तकरार करना अब
करें इज़हार आ जाना /

अभी मजबूरियां क्या हैं ?
कहे सरिता बता जाना //

..................................

    मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Sarita Bhatia on October 15, 2013 at 1:30pm — 16 Comments

धर्म अधर्म //कुशवाहा//

धर्म अधर्म

--------------

धर्म अधर्म

देशकाल की धुरी पर

नर्तन करता हुआ

ज्ञानियों / अज्ञानियों

की गोद में

पल पल मचलता

रंग बदलता

कुछ न कुछ कहता है

युग हो कोई

नयी बात नहीं

परोक्ष / अपरोक्ष

दिल के किसी कोने में

रावण रहता है

विष वमन

घायल तन मन

चिंतन  मनन

जन जन छलता है

न कर मन मलिन

न हो तू उदास

रख द्रढ़  विश्वास 

अत्याचारों  की

जब जब  अति…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 15, 2013 at 1:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल.. निलेश 'नूर' --चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना

1 २ १ २ २ / १ २ १ २ २/ १ २ १ २ २ /१ २ १ २ २

चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना,

नहीं रहा अब, जो हम से रूठे, किसे भला है हमें मनाना.

***

था इश्क़ हमको, था इश्क़ तुमको, मगर बगावत न कर सकें हम,

न तुम ने छोड़ा, न बेवफ़ा हम, न तुम ने समझा, न हम ने जाना.

***

शराब छोड़ी, नशा बुरा था, नज़र से पी ली, नज़र मिलाकर,

नज़र नज़र में नशा चढ़ा यूँ, वो भूल बैठा मुझे पिलाना.

***

न फेरियें मुंह, अभी से साहिब, अभी सफ़र ये शुरू हुआ है,

कत’आ करो…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2013 at 1:00pm — 21 Comments

ग़ज़ल - हँसती जाती है दहशत क्योंकर - पूनम शुक्ला

2222. 2222. 2

इतनी फैली है गीबत क्योंकर

शफ़्क़त आनें में शिद्दत क्योंकर



आबे दरिया सा रास्ता सबका

रुक ही जाती है बहजत क्योंकर



ताबो ताकत बैठी रोती है

इतनी बरकत में दौलत क्योंकर



आसाइश इतनी दरहम बरहम

हँसती जाती है दहशत क्योंकर



कितना बेकस है इंसा बेबस

तब भी शातिर ही हिकमत क्योंकर



पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित



गीबत - बदबू

बहजत - खुशी

ताबो ताकत - योग्यता

आसाइश - सुख समृद्धि

दरहम… Continue

Added by Poonam Shukla on October 15, 2013 at 11:00am — 9 Comments

गीत (पृष्ठ ह्रदय के जब मैं खोलूँ)

गीत (पृष्ठ ह्रदय के जब मैं खोलूँ)

पृष्ठ ह्रदय के जब मैं खोलूँ, केवल तुम ही तुम दिखते हो,

जैसे पूछ रही हो मुझसे, क्या मुझ पर भी कुछ लिखते हो।

 

तुम नयनों से अपने जैसे

कोई सुधा सी बरसाती हो,…

Continue

Added by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 3:27am — 30 Comments

सपने बिना जीवन

आजकल अक्सर

टीसती रहती हैं

माथे पर उभर आई नसें



मटमैली-लाल होकर

दुखने लगती हैं आँखें



चेहरे पर बरसती रहती है फटकार

पपडियाये होंठों से हठात

निकलती हैं सूखी गालियाँ



खोजती रहती हैं नज़रें

दूर-दूर तक

क्षितिज से टकराकर

खाली हाथ लौट आती हैं निगाहें

दिमाग में ख्यालों का अकाल

दिल में कल्पनाओं के टोटे...



सब तरफ एक सन्नाटा...

कोई आहट...न कोई…

Continue

Added by anwar suhail on October 14, 2013 at 9:00pm — 9 Comments

गजल: दर पे कभी किसी के भी सज्दा नहीं किया//शकील जमशेदपुरी//

बह्र: 221/2121/1221/212

_____________________________

दर पे कभी किसी के भी सज्दा नहीं किया

हमने कभी जमीर को रुसवा नहीं किया

हमराह मेरे सब ही बलंदी पे हैं खड़े

पर मैंने झूठ का कभी धंधा नहीं किया

जाने न कितनी रात मेरी आंख में कटी…

Continue

Added by शकील समर on October 14, 2013 at 9:00pm — 16 Comments

पहेली बूझ (चोका)

पहेली बूझ !

जगपालक कौन ?

क्यो तू मौन ।

नही सुझता कुछ ?

भूखे हो तुम ??

नही भाई नही तो

बता क्या खाये ?

तुम कहां से पाये ??

लगा अंदाज

क्या बाजार से लाये ?

जरा विचार

कैसे चले व्यापार ?

बाजार पेड़??

कौन देता अनाज ?

लगा अंदाज

हां भाई पेड़ पौधे ।

क्या जवाब है !

खुद उगते पेड़ ?

वे अन्न देते ??

पेड़ उगे भी तो हैं ?

उगे भी पेड़ !

क्या पेट भरते हैं ?

पेट पालक ??

सीधे सीधे नही तो

फिर…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on October 14, 2013 at 4:30pm — 5 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
11 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service