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रावण मरता नहीं। …… नवगीत

प्रतिवर्ष
पुतले  जल जाते  है
पर ,
रावण मरता नहीं


पाप- पुण्य की गठरी खोले
तोते है कितने वाचाल
अंधी श्रद्धा का यहाँ ,पर
फैल रहा है मकडजाल
नोट , करारे चढाने से
राहु
चाल बदलता नहीं .


सूट - बूट पहन कर रावण
गली गली मंडराते है
गर मिल जाये तितली ,कोई
पंख भी कतरे जाते है
भयग्रस्त हो गयी वसुधा
पर 
पाषाण पिघलता नहीं.


उजले पर वाले बगुले ,यहाँ
माही को भी  भरमाते है
मौका मिलते ही ,हाथों से
निवाला ,छीन ले जाते है
उजले वस्त्र पहन कर
कभी
राम कोई बनता नहीं .

प्रतिवर्ष
पुतले जल  जाते है
पर
रावण मरता नहीं। …. !

---- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 1:41pm
सूट - बूट पहन कर रावण

गली गली मंडराते है

गर मिल जाये तितली ,कोई

पंख भी कतरे जाते है

भयग्रस्त हो गयी वसुधा

पर 

पाषाण पिघलता नहीं............बात सच है.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2013 at 9:50pm
उजले वस्त्र पहन कर
कभी
राम कोई बनता नहीं .
प्रतिवर्ष 
पुतले जल  जाते है
पर रावण मरता नहीं। …. सुन्दर वाचारिक मंथन का गीत | हार्दिक बधाई 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 7:49pm

सामयिक गीत के लिए बधाई शशिजी.

शुभ-शुभ

Comment by Abhinav Arun on October 17, 2013 at 5:47am
उजले पर वाले बगुले ,यहाँ
माही को भी  भरमाते है
मौका मिलते ही ,हाथों से
निवाला ,छीन ले जाते है.....सुन्दर सामयिक सशक्त रचना , आ. शशि जी हार्दिक बधाई और शुबकामनाएं !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 17, 2013 at 12:09am

आदरणीया शशि पुरवार जी, कटाक्ष करती हुई गम्भीर रचना हेतु बधाई....................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 16, 2013 at 6:17pm
///उजले पर वाले बगुले ,यहाँ
माही को भी  भरमाते है
मौका मिलते ही ,हाथों से
निवाला ,छीन ले जाते है
उजले वस्त्र पहन कर
कभी
राम कोई बनता नहीं .

प्रतिवर्ष 
पुतले जल  जाते है
पर
रावण मरता नहीं। /// वाह क्या बात है आदरणीया शशि जी बेहतरीन, दाद कुबूल करें 
Comment by shashi purwar on October 16, 2013 at 4:56pm

सुशिल जी , महिमा जी , ब्रजेश जी , अरुण जी , गणेश जी , जीतेन्द्र जी आप सभी का बहुत बहुत आभार।  

Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 1:45pm

बहुत ही सुन्दर गीत! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 16, 2013 at 1:17pm

आदरणीया शशि जी बेहतरीन वर्तमान परिस्थिति पर सुन्दर कटाक्ष समसामयिक प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2013 at 11:27am

बहुत ही सुन्दर और सामयिक रचना हुई है, लक्ष्मण रेखा और उसकी गरिमा को पहचाने जाने की आवश्यकता आज भी है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर । 

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