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पहेली बूझ !
जगपालक कौन ?
क्यो तू मौन ।
नही सुझता कुछ ?
भूखे हो तुम ??
नही भाई नही तो
बता क्या खाये ?
तुम कहां से पाये ??
लगा अंदाज
क्या बाजार से लाये ?
जरा विचार
कैसे चले व्यापार ?
बाजार पेड़??
कौन देता अनाज ?
लगा अंदाज
हां भाई पेड़ पौधे ।
क्या जवाब है !
खुद उगते पेड़ ?
वे अन्न देते ??
पेड़ उगे भी तो हैं ?
उगे भी पेड़ !
क्या पेट भरते हैं ?
पेट पालक ??
सीधे सीधे नही तो
फिर सोच तू
कैसे होते पोषण ?
कोई उगाता
पेड़ पौधे दे अन्न
कौन उगाता ?
किसका प्राण कर्म ?
समझा मर्म
वह जग का शान
वह तो है किसान ।
.................
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by रमेश कुमार चौहान on October 16, 2013 at 9:19pm
आ. सुशील जोशी जी, आ.जितेन्द्रजी, आ. गिरिराजजी एवं आ. नीरजजी इस विधा में यह मेरा पहला प्रयास इसे आपलोगों ने सराहा मेरा प्रयास सफल रहा है । इस उत्साहवर्धन से और मेहनत करने की इच्छा बलवती होती है ।
Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 9:43am

बहुत अच्छा प्रयास है भाई जी! आपने जिस पकड़ के साथ रचना की शुरुआत की, वो आगे जाकर ढीली हो गयी. बहरहाल इस प्रथम प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 15, 2013 at 3:26pm
आदरणीय रमेश भाई , सुन्दर चोका रचना के लिये आपको बधाई !!!!!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 15, 2013 at 10:19am

बहुत सुंदर भाव, एक किसान की शान को बखूबी आपने बरकरार रखा, बहुत बहुत बधाई आदरणीय रमेश जी

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:46am

वाह.....आदरणीय रमेश भाई.... किसान के दर्द को बखूबी बयान कर रहा है यह चोका....... बधाई हो इस सुंदर एवं सार्थक कृति हेतु....

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