For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

August 2012 Blog Posts (230)

निशब्द

खामोश हूँ

शांत सागर सी 
भीतर हलचल 
 
इक हूक 
सीने में उठती 
ज्वालामुखी सी 
 
प्यार किया 
दिल से चाहा
पर…
Continue

Added by Rekha Joshi on August 5, 2012 at 1:24pm — 20 Comments

मित्रता दिवस को समर्पित छह दोहे

सारे रिश्ते देह के, मन का केवल यार

यारी जब से हो गई , जीवन है गुलज़ार



मन ने मन से कर लिया आजीवन अनुबन्ध

तेरी मेरी मित्रता  स्नेहसिक्त सम्बन्ध



मित्र सरीखा कौन है, इस…

Continue

Added by Albela Khatri on August 5, 2012 at 1:00pm — 38 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......

 

कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये

अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये |



सच्चे की किस्मत में तम ही आया है

अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |



ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये

अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |



भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया

अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |



यहाँ राग - दीपक की बातें करता था

वहाँ राग – दरबारी गाये प्राणप्रिये |



सोने…

Continue

Added by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 10:31am — 12 Comments

हरिगीतिका छंद एक प्रयास.

(चार चरण, १६ + १२ =२८ मात्राएं और अंत में लघु गुरु)

 

हरि जनम हो मन आस  लेकर, भीड़ भई  अपार  है/

हरि भजन गुंजत चहुँ दिसी अरु,भजत सब नर नार हैं//

झांझ बाजै है झन झनक झन , ढोल की  ठपकार  है/

मुरली बाजत  मधुर  शंख  ही,  गुंजाय   दरबार …

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 10:30pm — 11 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कुछ कह मुकरियाँ

1.

उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 

नयना दुख-दुख नीर बहाए,

है सौगात, नायाब करिश्मा,

ऐ सखि  साजन ? न सखी चश्मा l



2.

नज़र नज़र में ही बतियाए,

देख उसे मन खिल खिल जाए,

सुबह शाम उसको ही अर्पण,

ऐ सखि साजन? न सखी दर्पण l



3.

साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,

बातें करता मीठी…
Continue

Added by Dr.Prachi Singh on August 4, 2012 at 6:30pm — 33 Comments

"न जाने भला या बुरा कर रहा है"

न जाने भला या बुरा कर रहा है;

वो चिंगारियों को हवा कर रहा है; (१)



वो मग़रूर है किस कदर क्या बताएं?

हर इक बा-वफ़ा को ख़फ़ा कर रहा है; (२)



नहीं उसको कुछ भी पता माफ़ कर दो,

वो क्या कह रहा है, वो क्या कर रहा है; (३)



वो नादान है बेवजह बेवफ़ा की,

मुहब्बत में दिल को फ़ना कर रहा है; (४)



है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा उफ़,

वो बस मरहबा-मरहबा कर रहा है; (५)



भुला दी हैं मैंने वो माज़ी की बातें,

तू अब बेवजह तज़किरा…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 4, 2012 at 5:30pm — 26 Comments

कहानी ( जज़्बातों का जनाज़ा )

कहानी
 
जज़्बातों का जनाज़ा
6 अगस्त 2012 को मेरी प्यारी नानी का चवर्ख कुल्लू हिमाचल में होना निश्चित हुआ था I हम लोग देहली में रहते हैं , दफ्तर के कार्यों की…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 4, 2012 at 4:54pm — 5 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३१

ज़िंदगी क्या है? बचपन गुज़र गया, जवानी बीत गई, ज़ईफ़ी उफ़ुक़ (क्षितिज) पे आ चुकी है. बेफिक्री, नाइल्मी, मासूमी, और मौजोमस्ती के दौर अब रहे नहीं; मआशी (आर्थिक), इज्देवाजी (दाम्पत्य), इन्फिरादी (व्यक्तिगत), कुनबाई (पारिवारिक), और समाजी फिक्रों के तानेबानों में पल पल की राह ढूँढते रहते हैं. हमें किसकी तलाश रहती है, दिल क्यूँ कभी खुश तो कभी रंजोगम (दुःख और दर्द) से माज़ूर (व्यथित) होता है, इक ही सूरत को पहने माहौल कभी क्यूँ दिलकश तो कभी दिल पे गराँ (भारी) लगते हैं?

बच्चे छोटे थे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 4, 2012 at 2:10pm — No Comments

किसान

किसान,

प्रतीक अथक श्रम के

अतुल्य लगन के ;

प्रमुख स्तंभ

भारतीय अर्थव्यवस्था के,

मिट्टी से सोना उगानेवाले

आज उपेक्षित हैं

परित्यक्त हैं…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 4, 2012 at 10:45am — 12 Comments

हे मनुज! तुम दिया बनो

हे मनुज! तुम दिया बनो
वो दिया...जो जलता है
प्रकाश के लिए, 
नवनिर्माण के लिए,
भटके को राह दिखाने के लिए,
प्रभु की आराधना के लिए,
हे आर्य! आत्मसात कर लो
इसके गुणों को,
अपना लो इसका स्वभाव,
प्रतीक बनो क्रांति के आगमन का,
सूचक हो परिवर्तन का,
मिटा…
Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 3, 2012 at 10:00pm — 12 Comments

मर्यादा

अगर हम उन्हें अपना नहीं मानते 

तो ये रिश्ते बनते कैसे 

हर वक़्त हर पल , हम और तुम 

इश्क की आग में जलते कैसे 

क्यूँ दस्तक देती रोज़ हमारी चौखट पर

क्यूँ चौंकते हम रोज़ तुम्हरी आहट पर 

दर्पण में हर बार तुमहरा चेहरा था 

मन , जल में रह जल बिन सा था 

जब नाम खुदा का लेते थे , 

पर नाम तेरा ही आता था 

हर बार बुझी सी आँखों में…

Continue

Added by Ashish Srivastava on August 3, 2012 at 9:00pm — 4 Comments

एकांत सुहाना लगता है

जिस राह में तुम साथ न हो ,

रास्ता वीराना लगता है

यूँ तो हजारों थे साथ मगर

फिर भी अकेलापन लगता है

जब तन्हाई में तनहा होता हूँ 

यादों की मुंडेर पर बैठकर

यादें चुनने लगता हूँ 

उस बिखरे सन्नाटे में

तुमसे बातें करने लगता हूँ 

जानता हु की तुम मुझसे दूर बहुत

लेकिन अहसास तुम्हारा लगता है

आंसू सूख गए शायद

या किसने रोका होगा

आँखों में सागर मुझको

बंधित…

Continue

Added by yogesh shivhare on August 3, 2012 at 7:30pm — 9 Comments

अँधेरा

अँधेरा 

कदम खुद ही चलते हैं 
अँधेरे के निशा ढूंढ़ने !
रोक न पायें जब खुद को,
हम अँधेरे को क्यों दोष दें !
उजाला हर किसी की ओढ़नी
हम अँधेरे को ही ओढ ले !
उजालों ने थकाया हमें 
निगाहों ने लुटाया हमें !
कदमो ने…
Continue

Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on August 3, 2012 at 6:30pm — 5 Comments

"टै" बोलने का इंतजार (लघुकथा)

बच्चे ने पूछा - दादी, आप भगवन को प्यारी कब होंगी ? बूढी दादी बोली-बेटा,भगवान् की पूजा करना ही अपने हाथ में है,बाकी सब भगवान पर है | बच्चे ने फिर पूछा- दादी आप "टै" कब बोंलेगी ? दादी कुछ देर विस्मय से बच्चे को गुहारती रही,फिर सोच कर बोंली- सौरभ बेटे "टै" बोलने से क्या होता है ? चल तू कहता है तो अभी ही बोल लेती हूँ -टै | इस पर सौरभ बोंला - दादी. रात को माँ पापा से कह रहा था कि आप नयी कार कब खरीदोंगे | मम्मी-पापा बात कररहे थे कि दादी के पास बहुत सारा धन है | पर जब वह "टै" बोल जायेगी तब ही…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 3, 2012 at 5:30pm — 13 Comments

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥

तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥

 

भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,

मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥

 

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

 

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

 

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर…

Continue

Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 3, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

अगर किसी को न भाई हो

कुछ हल्का-फुल्का

इश्क-विश्क का फंडा ,यारा टेंशन वेंशन भूल .

और झमेले लाखों यारा ,रख अपने को cool .

'हिंदी वाले 'फूल' से चेहरे ,दिल्फैंकों को अक्सर .

मान के चलते सोच के चलते , इंग्लिश वाले 'fool '

कलयुग आया ,लड़का लडकी प्रेमिका प्रेमी कम हैं ;

इक दूजे को use ये करते समझ समझ के tool .

खूब निभे गी यारी यारा मेरी तेरी सब की ;

खुद की ego मार दबा दे ,दे न खुद को तूल.

आप को जो इक लाफा…

Continue

Added by DEEP ZIRVI on August 3, 2012 at 2:30pm — 1 Comment

जिन्दा हूँ मुझमे अगर तुम हो

साँसों पे छाई खबर तुम हो,

मेरी आँखों की नज़र तुम हो,

 

हंसा हूँ पाकर साथ तुम्हारा,

खुशियों में होता असर तुम हो,

 

मर जाऊँगा मैं भूल ना जाना,

जिन्दा हूँ मुझमे अगर तुम हो,…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on August 3, 2012 at 11:30am — 6 Comments

कबीरा खड़ा बाजार में

 [ एक ]

कठपुतली भी हँस रही, देख मनुज का हाल.

सबसे बड़ा मदारी वो , लिखे जो सबका भाल.

कौन नचाता है किसे, क्या इसका परमान.

सबकी डोर पे पकड़ जिसे, कहते कृपानिधान.

 जिस उर में लालच बसे ,वहाँ कहाँ ईमान .

देय वस्तु पर नेह जिसे , सबसे बड़ा नादान.

जीवन गगरी माटी की , जिसका करम कोंहार .

सरग - नरक येही ठौर है , जिसका जस व्यवहार .

देने वाले ने दिया , एक सूर्य और सोम .

किन्तु मनुज ने बाँट ली , धरती नदियाँ व्योम .

कहत अभागा नियति का , नीयत नियत…

Continue

Added by satish mapatpuri on August 3, 2012 at 1:27am — 6 Comments

समस्त ओबीओ परिवार की ओर से आप सभी को श्रावणी पर्व (रक्षा बंधन) की हार्दिक बधाई !

 

कह-मुकरी

मन-मोहक मृदु रूप में आये.

सजे कलाई अति मन भाये.

नेह-प्रीति की वह है साखी.

क्या सखि कंगन? नहिं सखि राखी!!

 

रूपमाला/मदन छंद

आज वसुधा है खिली ऋतु, पावसी शृंगार. 

थाल बहना बन सजाये, श्रावणी त्यौहार.

बादलों से…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 2:30pm — 32 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रक्षा बंधन - स्मृतियाँ



राह तकती है तुम्हारी,

आज यह सूनी कलाई....

स्मृति बस स्मृति ही ,

शेष है सूने नयन में

बिम्ब दिखता है तुम्हारा,

आज मधु मंजुल सुमन में

यूँ लगा कि द्वार खुलते

ही मुझे दोगी दिखाई

राह तकती है तुम्हारी

आज यह सूनी कलाई.........................

आरती की थाल कर में

दीप आशा का जलाये

इस धरा पर कौन है जो

नेह की सरिता लुटाये

श्रावणी वर्षा हृदय में

आज मेरे है समाई

राह तकती है तुम्हारी

आज यह सूनी…

Continue

Added by अरुण कुमार निगम on August 2, 2012 at 1:18pm — 21 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
57 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
58 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service