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June 2014 Blog Posts (163)

खिलखिलाती रही

कतरा कतरा बन

जि़न्दगी गिरती रही

हर लम्हों को मैं

यादों में सहेजती रही

अनमना मन मुझसे

क्या मांगे,पता नहीं

पर हर घड़ी धूप सी

मैं ढलती रही

रात, उदासी की चादर

 ओढा़ने को तत्पर बहुत

पर मैं

चाँद में अपनी

खुशियाँ तलाशती रही

और चाँदनी सी

 खिलखिलाती रही

****************

महेश्वरी कनेरी

अप्रकाशित /मौलिक

Added by Maheshwari Kaneri on June 11, 2014 at 1:00pm — 10 Comments

.जिंदगी तुझे ही पढ़ लेते हैं ---डा० विजय शंकर

चलो किताबों को बंद कर देते हैं

जिंदगी तुझे ही सीधे-सीधे पढ़ लेते हैं .

किताबों में सबकुझ तेरे बारे में ही तो है

लो , तुझसे ही सीधे-सीधे बात कर लेते हैं.

किताबें तो बहुत सी हैं , मिल भी जायेंगीं

उन को पढ़ लूँ तो क्या तू मिल जायेगी .

मौत को कितने और कौन-कौन पढ़ते हैं

पर उसका वादा है , सबको मिलती है .

भरोसा नहीं , तू किसको मिले , कितनी मिले

तेरे लिये , तेरे चाहने वाले दिन रात लगे रहते हैं .

अरे सब कुछ तो तेरे लिए ही है जिंदगी में

तू है तो सब… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 10:25am — 17 Comments

मेरे लाल भूल न जाना ये बात !!

मेरे बच्चे !!

खुश रहो तुम हरदम

न आये जीवन में तुम्हारे कोई गम

हो माँ शारदे की अनुकम्पा

भरपूर हो स्वास्थ, संपदा,

पर मेरे बच्चे, याद रखना हमेशा

जीवन में एक अच्छा इंसान बनना

साथ तुम्हारे चले जो जीवन पथ पर

करना उसका भी आदर

बहे न कभी तुम्हारे कारण

उसकी आँख का काजल,

करना न तुम कभी प्रकृति का दोहन

लेना उससे उतना ही जितनी हो जरुरत

अंत में है मेरा आशीर्वाद !

घर-परिवार, समाज, राष्ट्र

हर जगह हो तुम्हारा ऊँचा नाम

मेरे लाल…

Continue

Added by Meena Pathak on June 11, 2014 at 1:59am — 19 Comments

ग़ज़ल – द्रौपदी नोच डाली गयी घर से सीता निकाली गयी (अभिनव अरुण)

ग़ज़ल –

फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन

२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२



द्रौपदी नोच डाली गयी घर से सीता निकाली गयी |

आज या कल के उस दौर में मैं कहाँ कब संभाली गयी |



सब्र तक मुझको मोहलत मिली कब कली अपनी मर्ज़ी खिली ,

एक सिक्का निकाला गया मेरी इज्ज़त उछाली गयी |



लड़का लूला या लंगड़ा हुआ गूंगा बहरा या काला हुआ ,

मुझसे पूछा बताया नहीं सबको मैं ही दिखा ली गयी |



दौर कैसा अजब आ गया एक सबको नशा छा गया ,

सब हैं पैसे के पीछे गए सबकी… Continue

Added by Abhinav Arun on June 10, 2014 at 5:53pm — 23 Comments

मेरे हाथों में तारे देख कर वो क्यूँ जला है

१२२२   १२२२    १२२२   १२२

मेरे हाथों में तारे देख कर वो क्यूँ जला है

मेरे मालिक तेरा इंसान जाने क्या बला है

 

लड़ा ताउम्र दरिया हौसलों के साथ अपने

लगाया था गले जिनको उन्हें ही क्यूँ खला है

 

घुसे थे झाड़ियों में तो बहुत ज्यादा संभलकर

थे हम भी बेखबर उस नाग से जो घर पला है   

 

बड़ा मुश्किल है फहराना ये परचम शोहरत का

यकीनन  कारवा पहले या आखिर में चला है

 

नहीं शिकवा गिला हमको कभी भी आपसे था

कभी खिलता…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on June 10, 2014 at 5:50pm — 15 Comments

स्नेह

तुम रुको,
मैं स्नेह से
दीपक जला लूँ.

तुम झुको,
मनुहार से मैं
चित्र भावों का बना लूँ .

कौन जाने कब
मिले फिर
आज तो यह गीत गालूँ.

तुम रुको,
मैं स्नेह से
दीपक जला लूँ.

विजयप्रकाश
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 10, 2014 at 1:03pm — 8 Comments

जीत

तुम हर पल जीतना चाहते हो
हारना तुम्हारी फितरत में नहीं है
कोई तुम्हारी युद्ध से
लौटी तलवार को
छूना नहीं चाहता
तुम्हारे रक्त-रंजित  हाथ
अब तुम्हारी माँ भी
नहीं पहचानती.
तुम्हारे बाल सखा कबके
विलीन हो गए रणभूमि में
तुम्हारी जीत के लिए.
कोई तुम्हारे कमजोर
पलों में
साथ नहीं देना चाहता
इतनी जीत का क्या करोगे?

डॉ. विजय प्रकाश शर्मा

(मौलिक व अप्रकाशित )
 

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 10, 2014 at 11:30am — 14 Comments

बात जब भी शहर में -- ..डा० विजय शंकर

बात जब भी शहर में

अंधेरा मिटाने की होती है ,

तेरे घर की रौशनी कुछ

और बढ़ा दी जाती है |

बात जब भी मजबूर

सताये लोगो को

न्याय दिलाने की होती है

तुझे एक नयी जमानत

और दिला दी जाती है |्

तेरे हर जुल्म हर गुनाह के साथ ,

तेरी शोहरत बढ़ाई जाती है ,

तेरे सताये गुमनाम अंधेरों में ,

सिमट जाते हैं , और

चकाचौंध रौशनी कर तेरे

चेहरे की रौनक बढ़ाई जाती है |

तेरी मौज , तेरी तफरीह में जो

मिट गये , उन्हें कफन भी नहीं मिला ,

तेरे… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 10, 2014 at 10:57am — 11 Comments

नीयत.....(लघु-कथा)

“माँ !  मैं तुम्हारे और दोनों भाइयों के हाथ जोडती हूँ, मुझे कुछ पैसे दे दो या दिलवा दो.. भगवान् के लिए मदद करो.. चार दिनों बाद बेटी की शादी है..”



“देखो दीदी..! .. हमने हर समय तुम्हारा बहुत साथ दिया है.. यहाँ तक कि तुम्हारी दोनों बेटियों की शादी का पूरा खर्च वहन करने की सोचे थे. बेटे को भी काम-धंधे पर लगवा देंगे..  लेकिन तुमने निकम्मे जीजाजी.. और लोगो के कहने पर हम पर ही मुकदमा दायर कर दिया.. ? क्या तो हिस्सा पाने की खातिर ?!! ”



“माँ, तुम तो कुछ बोलो, तुम्ही समझाओ न.. इन…

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Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 10, 2014 at 1:00am — 14 Comments

तुम

तुम नीलाभ
नीरव गगन में
ध्रुवतारे की तरह
अविचल
कैसे रह लेते हो?
शायद तुममें
मानव-मन की
विचलन
का बोध नहीं .

या स्थितिप्रज्ञ हो गए हो.

विजयप्रकाश
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 10, 2014 at 12:00am — 11 Comments

ट्रैफिक नियम [दोहावली]

दायें बायें देख के, खुद को कर तैयार

राह सुरक्षित हो तभी, करना उसको पार ||

सड़क सुरक्षा के लिए, नियमों का कर ध्यान

राह बनेगी सरल तब और मिलेगा मान ||



ट्रैफिक सिग्नल के नियम, रखते हैं जो ध्यान

मंजिल मिलती है उन्हें, पथ होता आसान ||

तीन रंग का खेल है ,समझ न इसको खेल

पीला नीचे लाल के संग हरे का मेल ||

दिखे लाल बत्ती अगर, झट से रुकना यार

खतरे का हो सामना, किया अगर जो पार ||

पीली बत्ती देख के, हो जाना…

Continue

Added by Sarita Bhatia on June 9, 2014 at 8:20pm — 12 Comments

आदमी हूँ सनम कोई तोता नहीं

सोचते ही रहे खेत जोता नहीं

प्‍यार के फूल क्‍यों कोई बोता नहीं



लुट गई देख अबला कि अस्‍मत यहाँ

शर्म से कोई आँखे भिगोता नहीं



तोड़ कर कोई जाता न दिल प्‍यार में

साथ अपनो का अब कोई खोता नहीं



सोच हैरान क्‍यों रोज इज्‍जत लुटे

चैन की नी़ंद क्‍यो़ं कोई सोता नहीं



क्‍या भरोसा करें हम किसी का सनम

आदमी आदमी का ही होता नहीं



बात में बात सबकी मिलाता रहूँ

आदमी हूँ सनम कोई तोता नहीं

मौलिक एवं…

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Added by Akhand Gahmari on June 7, 2014 at 6:30pm — 3 Comments

गजल-पीठ पर वो बार करने का हुनर

आँसुओं से हम गजल लिखते रहे

कागजों में दर्द बन बिकते रहे

वो पराये हो चुके थे अब तलक

और हम अपना समझ झुकते रहे

पीठ पर वो बार करने का हुनर

उम्र भर हम याद ही करते रहे

हद से ज्यादा हम हुये जब गमजदा 

बारबा वो खत तेरा पढ़ते रहे 

तू गया कितने जलाकर आशना

आशना वो आज तक जलते रहे

हम समझ कर आदमी को आदमी

साथ हम शैतान के चलते रहे

उमेश कटारा

मौलिक व अप्रकाशित…

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Added by umesh katara on June 7, 2014 at 3:00pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सोच बदलेगी न जब तक.........अरुण कुमार निगम

संस्कारों की कमी से , मनचले होते रहेंगे

कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे.



दोष इसका दोष उसका मूल बातें गौण सारी

तालियाँ जब तक बजेंगी , चोंचले होते रहेंगे .



मौन धरने उग्र रैली , जल बुझेगी मोमबत्ती

आड़ में कुछ बाड़ में कुछ सामने होते रहेंगे .



आबकारी लाभकारी लाडला सुत है कमाऊ

और  भी  तो  रास्ते  हैं , फायदे  होते रहेंगे .



ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी

जानता  है  हर  दरिंदा , फैसले  होते …

Continue

Added by अरुण कुमार निगम on June 7, 2014 at 12:00am — 14 Comments

मेरा ब्लड ग्रुप?... याद नहीं है! (लघुकथा)

एक अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग की आप बीती---उनके ही मुख से-

"मेरे दो लडके हैं, दोनों एक्सपोर्ट इम्पोर्ट का कारोबार करते हैं.

दो लड़कियां विदेश में हैं, दामाद वहीं सेटल हो गए हैं.

मेरा एक भगीना बड़े अस्पताल में डॉक्टर है ...मुझे उसका टेलीफोन नंबर नहीं मिल रहा ..आप पताकर बताएँगे क्या?

आज मेरे घाव का ओपेरेसन होनेवाला है. मेरा लड़का आयेगा ...ओपेरेसन के कागजात पर हस्ताक्षर करने."

लड़का आया भी और हस्ताक्षर कर चुपचाप चला गया. मैंने महसूस किया दोनों में कोई विशेष बात…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 6, 2014 at 8:00pm — 21 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
किताब : चार क्षणिकाएँ // --सौरभ

1.

शेल्फ़ किताबों के लिए हो सकती है

किताबें शेल्फ़ के लिए नहीं होतीं

शेल्फ़ में किताबों को रख छोड़ना

किताबों की सत्ता का अपमान है.

 

2.

कुछ पृष्ठों के कोने वो मोड़ देता है…

Continue

Added by Saurabh Pandey on June 6, 2014 at 5:30pm — 43 Comments

गिड़गिड़ाने से बची कब लाज तेरी द्रोपदी-ग़ज़ल

2122    2122    2122    212

***

शब्द   अबला  तीर  में  अब  नार  ढलना  चाहिए

हर दुशासन का कफन  खुद तू ने  सिलना चाहिए

***

लूटता  हो  जब  तुम्हारी  लाज  कोई  उस समय

अश्क  आँखों   से  नहीं  शोला  निकलना  चाहिए

***

गिड़गिड़ाने   से   बची   कब   लाज  तेरी  द्रोपदी

वक्त पर उसको सबक कुछ ठोस मिलना चाहिए

**

हर समय तो आ नहीं सकता कन्हैया तुझ तलक

काली बन खुद  रक्त  बीजों  को  कुचलना चाहिए

**

फूल बनकर  दे महक  उपवन को  यूँ तो  रोज तू…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2014 at 12:47pm — 31 Comments

इस अन्धकार में कितनी सदियाँ और बिताना बाकी है ?

"चीख चीख कर पूछ रहा है ,ये उद्वेलित मन मेरा मुझसे ,

इस अन्धकार में कितनी सदियाँ और बिताना बाकी है ?

चूड़ियाँ पहने पड़ी इस सुषुप्त व्यवस्था को धिक्कारने में

अब भी यूँ ही कितनी मोमबत्तियाँ और जलाना बाकी है ?

इस कुण्ठित दानवता के कुकृत्यों से लज्जित ,

आज मानवता कितनी बेबस पानी पानी है ?

मोड़ मोड़ पर खड़े ये दुर्योधन और दु:शासन ,

दुर्गा पूजती सभ्यता की क्या यही निशानी है ?

कोरे कागज़ी कानूनों के फूल चढ़ाये ,यूँ अर्थियाँ उठाते,

कितने…

Continue

Added by Kedia Chhirag on June 6, 2014 at 9:30am — 4 Comments

"नूर" की ग़ज़ल -देख तेरा जो हाल है प्यारे

२१२२ १२१२ २२/११ २  

.

देख तेरा जो हाल है प्यारे

ज़िन्दगी का सवाल है प्यारे.

.

लोग मुर्दा पड़े हैं बस्ती में,

बस तुझी में उबाल है प्यारे.

.

आम कहता है ख़ुद को जो इंसाँ,

उसकी रंगत तो लाल है प्यारे.

.

उसकी थाली में मुझ से ज़्यादा घी,

बस यही इक मलाल है प्यारे. 

.

हम ने अपना लहू भी वार दिया,

सबको लगता गुलाल है प्यारे.   

.

ख़ाक ही ख़ाक बस उड़ेगी अब,

ये हवाओं की चाल है प्यारे. 

.

अब तो…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on June 5, 2014 at 9:30pm — 21 Comments

मेंह बाबा मै तुम्हे रिझाऊं

विरह तुम्हारा सह न पाऊंकैसे मै मन को समझाऊ

तुमसे ही मै जीवन पाऊंतुमबिन न स्वागत कर पाऊं

बिछे ह्रदय में पलक-पाँवड़े,मेंह बाबा मै तुम्हे रिझाऊं 

ताल तलैया जग के सूखे,स्वर्ग लोक से…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2014 at 6:00pm — 16 Comments

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