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June 2012 Blog Posts (251)

दो साल पहले मैं बेरोज़गार था, बेरोज़गार था

फ़िल्म : सी आई डी

तर्ज़    : सौ साल पहले......



दो साल पहले मैं बेरोज़गार था, बेरोज़गार था,

आज भी हूँ और कल भी रहूँगा



दोस्तों-पड़ोसियों  का कल भी कर्ज़दार…

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Added by Albela Khatri on June 2, 2012 at 7:30am — 24 Comments

खून के उफान को ....

टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को

छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को

हटो छोडो रास्ता अब, कफ़न सर पर लिये हैं

मौत से अब डर किसे है, मौत से लगते गले हैं

सह चुके अब ना सहेंगे, इस देश के अपमान को

टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को

विश्व में उपहास के, कारण बनाये जाते हैं

खद्दरों के भेष में, दीमक हजम कर जाते हैं

इस देश की संपत्ति और, इस देश के सम्मान को

छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को

आम आदमी यहाँ, हाशिए में होता है

जिंदगी कि दौड…

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Added by UMASHANKER MISHRA on June 2, 2012 at 12:30am — 14 Comments

गहरा है ये सागर बहुत साहिल ही नही है

ये दिल मेरा अब इश्क के काबिल ही नहीं है

बिखरा है जो अब टूट के वो दिल ही नहीं है



हम जीते थे जिस शान से यारों के साथ में

वो छूटे हैं पीछे सभी महफ़िल ही नहीं है



गम हैं मेरा जो जान से मारेगा  एक दिन

जो गम को डाले मार वो कातिल ही नहीं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 1, 2012 at 5:00pm — 16 Comments

बेटी न होती

जीवन और मृत्यु
आत्मा परमात्मा
सत्य और असत्य
शाश्वत मूल्यों का सत्य
धूप और छाँव
साथ नहीं होती
गमछा संग धोती
बिना सीप मोती
बगैर दीप ज्योति
स्त्री स्त्री देख रोती
पोता हो या पोती
कैसे मिलता जीवन का
अनुपम सुन्दर उपहार
किसी घर में बेटी न होती

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 1, 2012 at 4:30pm — 22 Comments

व्यंग रचना- अर्थ-तंत्र पर भारी

अर्थ-तंत्र पर भारी राज-तंत्र में गठबंधन सरकार,
गठबंधन-धर्म निभाने की मज़बूरी में यह सरकार |
 
ममता-सोनिया की डपट, कैसे करे दरकिनार,
उदासीन मनमोहन मौन हुए, संकट में सरकार…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 1, 2012 at 3:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल

फिर से गुजरे वो पल याद आने लगे

भूल जाने में जिनको  ज़माने लगे

 

हैं वही शोखियाँ है वही बांकपन

जितने मंज़र हैं सारे पुराने लगे

 

कोनसी शै हे जिसपर भरोसा करें

अब तो साए भी अपने डराने लगे

 

उनको खुशियाँ मिलीं हे ख़ुदा का करम

हाथ अपने ग़मों के खजाने लगे

 

अपनी हसरत बताने  जिन्हें आये थे

वो तो अपना ही मुज़्दा सुनाने लगे  

Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on June 1, 2012 at 2:55pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
खुशखबरी (कहानी)

हैलो हैलो !! हैलो  बेटा बोल !  माँ खुशखबरी है आपको पोता हुआ है, इतना कहकर रोहित ने फ़ोन  रख दिया | रेखा के पाँव तो ख़ुशी के मारे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, उसी समय बहुत सारी मिठाई लाकर पूरी कालोनी में बाँट दी | फिर तैयार होकर हॉस्पिटल पंहुच गई और सारे कर्मचारियों को मिठाई बांटी, आयाओं को सौ- सौ के नोट भी दिए और फिर बहु के पास पोते को देखने पहुंची वहां पर डॉक्टर भी राउंड पर आई हुई थी देखते ही रेखा एक पूरा मिठाई का डिब्बा डॉक्टर की तरफ देते हुए बोली आप भी मेरे पोते के होने की मिठाई खाओ |…

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Added by rajesh kumari on June 1, 2012 at 10:30am — 23 Comments

ये सिर्फ अपनों के लिये ही बहते हैं

कदम उनसे दूर जाने लगे 

मन में उथल -पुथल 
सी होने लगी 
वो साथ थे तब तक 
सब अच्छा था
अब ये आँखें भी 
बोलने लगीं 
इनकी नमी ह्रदय -व्यथा 
व्यक्त करने लगी 
और शायद आंसुओं की
उपस्तिथि बयां कर 
रही थी .
और हाँ कल जब वो आये 
तब भी ये नमीं थी ,
आंसूं बहे थे 
पर कल तो दिल में ख़ुशी 
का ठिकाना न था .
मैं भला…
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Added by Ajay Singh on June 1, 2012 at 9:36am — 7 Comments

भारत बन्द महोत्सव.........

पप्पू ने पूछा पापा,

ये भारत बन्द क्या होता है ?

पापा मुस्कुराया

पप्पू को बताया -



बेटा,

मेरा भारत महान में लोकतान्त्रिक  सरकार है

और भारत बन्द हमारा  राजनैतिक त्यौहार है

जो विपक्ष द्वारा  मनाया…

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Added by Albela Khatri on June 1, 2012 at 9:30am — 13 Comments

ऐ मन निराश तुम मत होना

ऐ मन निराश तुम मत होना, मंज़िल तुझको मिल जायेगी

अपना न कभी धीरज खोना, फिर तो दुनिया हिल जायेगी।।



चलते रहना, बढ़ते रहना, इस कठिन डगर में रुकना मत

लाखों विपत्ति आ जाय सामने, किसी के आगे झुकना मत।

हौसला कभी भी मत खोना, विपदा आयेगी जायेगी।।

ऐ मन निराश तुम मत होना, मंज़िल तुझको मिल जायेगी।।



उलझनें बहुत सी आयेंगी, कुछ लोग तुम्हे बहकायेंगे

रोकने को तुझको क्षणिक फूल खुश्बू अपनी महकायेंगे।

बढ़ते रहना फिर देखोगे कलियाँ खिलती ही जायेंगी।।

ऐ मन निराश… Continue

Added by आशीष यादव on June 1, 2012 at 8:30am — 8 Comments

आभास!

“हूँ, कुछ कहा”. “कुछ भी तो नहीं”.”मुझे लगा शायद तुम कुछ बोले”. अक्सर ऐसा होता है जब किसी से बात करने का मन हो किन्तु जुबान खामोश हो.एक आवाज कान में गूंजने का आभास होता है.खामोशी में भी ये आवाज कहाँ से आती है?  ये आभास कैसे होता है? कभी नहीं जान सका. कई बार घर में अकेले बैठे हों और बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है जब हम वहाँ जाकर देखते हैं तो पता चलता है वहाँ तो कोई भी नहीं है.

कई बार पलंग पर पड़े…

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Added by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 7:30am — 11 Comments

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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
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