For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

May 2012 Blog Posts (135)

छन्न पकैया .......

छन्न पकैया .......

छन्न पकैया - छन्न पकैया, सूरज दावानल है.
सूख रहीं हैं नदियाँ सारी, सड़के रहीं पिघल हैं.
**
छन्न पकैया - छन्न पकैया,जलता आलम सारा.
थर्मा-मीटर की नलिका में, ताव मारता पारा.
**
छन्न पकैया - छन्न पकैया, बीसुर रही हरियाली.
मुरझाते फूलों के मुख से , हुई  नदारत लाली.
**
छन्न पकैया - छन्न पकैया,लस्सी,कुल्फी,मठ्ठा,
तीनो…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on May 4, 2012 at 10:00am — 17 Comments

"बात इतनी बढ़ी के"

बात इतनी बढ़ी के कहर हो गयी;

हमको बचपन में क़ैदे उमर हो गयी;

*

बात कानों में घुलती शहद की तरह,

रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 4, 2012 at 9:30am — 21 Comments

काँटों का जीवन: शोषित और उपेक्षित

काँटे, काँटे  क्यों  बनते  हैं,

बन  सकते हैं  जब वो फूल,

एक डाल पर एक रस पीकर,

कैसे  बन   जाते  हैं  शूल?…

Continue

Added by Neeraj Dwivedi on May 4, 2012 at 8:30am — 7 Comments

नई कविता : कूप मंडूक

पुरखों के कुँए को ही दुनिया समझना

कूप मंडूकता है



कुँए को अपना घर समझना

पाँवों में पड़ी बेड़ियाँ हैं



कुँए की दीवारों को अभेद्य समझना

खुद को खुद की नज़रों में

दुनिया का विजेता साबित करने की कोशिश है



खुद को विश्व विजयी समझना

चुनौतियों से हारकर आलस्य का जहर पीना है



खुद को कूप मंडूक समझना

बाहर की रोशनी का अहसास है



कुँए की दीवारों के बाहर दुनिया की कल्पना

कुँए से बाहर जाने वाली सुरंग है



दुनिया के बाहर… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 3, 2012 at 5:55pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
तू खुद अनंत हो जाएगा !

जब भी करने लगती हूँ मैं खुद से दिल की बात

दिल दिखलाता है सारे सच , भूल के सब जज़्बात …



मैने पुछा अन्तः मन से ,

अपने हर एक रूप में, प्यार बहुत ही सुन्दर है

वो बोला हाँ सुन्दर है …



मैने पुछा मुझे बताओ ,

कोई ख़ास जब आता है , क्यूँ वो ही मन को भाता है

दिल बोला पिछले जन्मों का शायद कोई नाता है …



मैने कहा ऐसा लगता है

जैसे उसको मेरे सांचे मे ढाल कर

और मुझको उसके सांचे मे ढाल कर बनाया है ,

ऐसा लगता है वो जैसे हमसाया है

जो… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on May 3, 2012 at 5:37pm — 10 Comments

शोषित है तू...

मुफलिसी में दिन बिताने वाले 

पी के आंसू, घुड़कियाँ खाने वाले,

खोल आँखे, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
न किसी धर्म से है तू
न तेरी कोई भाषा,
तुझसे छलकती है…
Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 3, 2012 at 12:00pm — 18 Comments

ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे

ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे,

जब सोचोगे हो तन्हा तो तुमको तड़पायेंगे।।।।



वो फर्स्ट…

Continue

Added by आशीष यादव on May 1, 2012 at 10:30pm — 14 Comments

मानव स्वयं सम्पूर्ण रहा है

दो चार दिनों का जीवन मेरा,

क्या पाया है  मैंने  अब तक,

मुझसे  कोई   क्या  सीखेगा,

कितनी दुनिया देखी अब तक।…

Continue

Added by Neeraj Dwivedi on May 1, 2012 at 10:03pm — 5 Comments

क्या शहर ,क्या गाँव

मेरे लिए

क्या शहर ,क्या गाँव

जीवन तपती दुपहरी

नहीं ममता की छाँव

 

गाँव में,भाई को

मेरी देख रख में डाल

माँ जाती ,भोर से

खेती की करने

सार सम्भाल

 

शहर में,बड़ा भाई

जाता है कारखाने

गृहस्थी का बोझ बंटाने

खुद को काम में खपाने

 

कच्ची उम्र की मजबूरी

काम पूरा,मजदूरी मिलती अधूरी

हाथ में कलम पकड़ने की उम्र…

Continue

Added by rajni chhabra on May 1, 2012 at 1:00pm — 14 Comments

विवशता ( कविता )

मजदूर दिवस को समर्पित…



Continue

Added by dilbag virk on May 1, 2012 at 11:30am — 7 Comments


प्रधान संपादक
शतरंज (लघुकथा)

मजदूर दिवस पर विशेष 

.



मजदूर दिवस बहुत बड़ी ख़ुशी लेकर आया था. आज मजदूरों के सामने मालिकों को झुकना ही पड़ा था. अन्य सुविधायों के अतिरिक्त मजदूरों की रोजाना दिहाड़ी बढ़ा दी गई उन्हें ओवरटाईम तथा बढ़ा हुआ बोनस देने की घोषणा भी कर दी गई. मजदूर बस्ती में हर तरफ ख़ुशी का माहौल था, अपनी मांगें पूरी होने की ख़ुशी में जहाँ मजदूर मंदिरों जाकर भगवान को धन्यवाद दे रहे थे, वहीँ दूसरी तरफ मजदूर यूनियन के कुछ नेता मालिकों के घर दावत उड़ा रहे थे, क्योंकि एक बात मजदूरों से…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on May 1, 2012 at 10:15am — 21 Comments

दोहा सलिला: शब्दों से खिलवाड़- १ --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
शब्दों से खिलवाड़- १
संजीव 'सलिल'
*
शब्दों से खिलवाड़ का, लाइलाज है रोग..
कहें 'स्टेशन' आ गया, आते-जाते लोग.
*
'पौधारोपण' कर कहें, 'वृक्षारोपण' आप.…
Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 1, 2012 at 7:35am — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
41 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
44 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
11 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service