For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बात इतनी बढ़ी के कहर हो गयी;

हमको बचपन में क़ैदे उमर हो गयी;

*

बात कानों में घुलती शहद की तरह,

रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो गयी;

*

कब ये चंदा ढला, कब ये सूरज उगा,

रात आँखों में गुज़री, सहर हो गयी;

*

ज़ेर साया थी दुनिया ये मेरे मगर,

जाने कब ये इधर से उधर हो गयी;

*

मुझको इससे अधिक क्या ख़ुशी होगी अब,

जो लिखी थी ग़ज़ल बा-बहर हो गयी;        ---------------- :-)

*

अब तलक तो खुदा को न सजदा किया,

ये दुआ मेरी कैसे असर हो गयी;

*

बात बनते-बनाते चली आई पर,

आज इस मोड़ पर कुछ कसर हो गयी;

Views: 715

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 4, 2012 at 7:25pm

सादर भ्रमर जी राधे-राधे.. बस व्यस्त हूँ इसलिए समय नहीं निकाल पा रहा| आपके लिए शब्दों के अर्थ यही दे देता हूँ... :-))

ज़ेरसाया होना यानी किसी की छत्रछाया में होना और बह्र यानी छंद तो बा-बह्र यानी छंद में होना... मात्राओं में होना..

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 3, 2012 at 11:24pm

बात बनते-बनाते चली आई पर,

आज इस मोड़ पर कुछ कसर हो गयी;

सहर,ज़ेर,बा-बहर............

संदीप भ्राता जी आज कल कहाँ व्यस्त हैं .....बात   बनाइये ..मेरे लिए उर्दू और फ़ारसी थोडा मुश्किल होती है    

  ..भ्रमर ५ 

 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 26, 2012 at 1:25pm

उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभारी हूँ सरिता जी!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 26, 2012 at 1:24pm

श्री छोटू जी प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार!

Comment by Sarita Sinha on May 8, 2012 at 9:21pm

संदीप जी नमस्कार, सीधे सादे शब्दों में सीधी सदी बात को बा बह्र तो होना ही था...उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 6, 2012 at 2:55pm

प्रिय भ्रमर जी,

राधे-राधे! मेरा वादा अब भी अपनी जगह क़ायम है ये दीगर है कि इस ग़ज़ल में कोई भी ऐसा लफ़्ज़ नहीं है जो इतना मुश्किल हो कि समझा न जा सके सभी के सभी आम बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले शब्द हैं| प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 6, 2012 at 2:46pm

वीनस जी,

नमस्ते,

बह्र के बारे में तो यही कहूँगा कि अभी तक कच्चा खिलाडी ही हूँ हाँ आप लोगों के सान्निध्य में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है| कल से मैं इन्ही शब्दों को लेकर विचारमग्न था किन्तु अभी आपकी प्रतिक्रिया के पश्चात् सभी शंकाएँ दूर हो गई हैं अन्यथा मैं आज शाम तक एक डिस्कशन ज़रूर पोस्ट करता| सहयोग और समर्थन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद| :-)

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2012 at 12:18am

बात कानों में घुलती शहद की तरह,

रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो गयी;

बात बनते-बनाते चली आई पर,

आज इस मोड़ पर कुछ कसर हो गयी;

काशी वासी भाई ..बहुत खूब ..मन ये गाने लगा गुनगुनाने लगा ..जागता मै रहा रात भर इस कदर.. ना जाने भ्रमर कब  सुबह हो गयी .लेकिन आप ने वादा किया था उर्दू लफ्जों को हम सब को सिखाते रहेंगे ?... शुभ कामनाएं ..जय श्री राधे -भ्रमर ५ 


Comment by वीनस केसरी on May 5, 2012 at 11:31pm

अच्छी ग़ज़ल है
संदीप जी आपकी बह्र की पकड़ तो तब ही स्वयं सिद्ध हो गयी थी जबी आपने पिछले तरही मुशायरे में दो बा-बह्र  ग़ज़ल पेश की थी

आज इस ग़ज़ल में भी आपने बह्र को बहुत सुंदर ढंग से निभाया है जिसके लिए आपको विशेष धन्यवाद
अब अगली सीढी चढें और जो योगराज सर ने संकेत किया है उस पर विशेष ध्यान दें ...
इस ग़ज़ल में काफिया चुनते समय आपने कुछ देशज शब्द भी रखे हैं , ग़ज़ल में इसको प्रयोग करने से बचना चाहिए
नियमानुसार इस तरह के शब्द के प्रयोग की छूट  तभी मिलाती है जब पूरी ग़ज़ल ही देशज हो ...
और हम्काफिया शब्दों की भी कोई कमी नहीं है कि मजबूरन आपको ऐसा करना पड़े
बहरहाल, ग़ज़ल के लिए और आपकी उत्तरोत्तर प्रगति के लिए पुनः बधाई और शुभकामनाएं 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 5, 2012 at 8:23pm

श्री अभिनव भईया,

तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आपकी इस दाद पर| :-)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service