For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब भी करने लगती हूँ मैं खुद से दिल की बात
दिल दिखलाता है सारे सच , भूल के सब जज़्बात …

मैने पुछा अन्तः मन से ,
अपने हर एक रूप में, प्यार बहुत ही सुन्दर है
वो बोला हाँ सुन्दर है …

मैने पुछा मुझे बताओ ,
कोई ख़ास जब आता है , क्यूँ वो ही मन को भाता है
दिल बोला पिछले जन्मों का शायद कोई नाता है …

मैने कहा ऐसा लगता है
जैसे उसको मेरे सांचे मे ढाल कर
और मुझको उसके सांचे मे ढाल कर बनाया है ,
ऐसा लगता है वो जैसे हमसाया है
जो जन्मों से संग संग आया है ..

दिल बोला ,
अब भ्रम मत पालो , सच से अब तुम आँख मिला लो …
सच है जब वो आता है , रूह तलक छू जाता है
पर वो आया तुम्हे बताने , इश्वर कैसा होता है ?
गर भागे जो उसको पाने , ये ही बस एक धोखा है ,

देख लो उसको , छू लो उसको , पी लो उसको , जी लो उसको ,
साँसों मे जब वो बस जाए , रूह तलक जब वो छू जाए ,
तुम नतमस्तक हो जाना , खुद मे हर पल उसको पाना ,
ये दूत है जो खुद आया है , उस परमशक्ति का साया है ,
उसने गुप्त सन्देश पड़ा , जो रूह ने है चुप चाप सुना ,
सत्य राह समझाने दो, अब दूत को तो घर जाने दो ,
जो ज्ञान मिला उसको रखना, हर बूँद मे बस अमृत चखना
उस अमृत मे लय हो कर के , तुम एक नयी दुनिया रचना ,

दिल ने मुझको समझाया
इश्वर होता है अनंत उसको टुकड़ों मे क्यों पाना
उस अनंत के हर कण को इसी दिव्य प्रेम से अपनाना
जो दूत लगा है हमसाया , वो कहाँ भिन्न उस शत्रु से
जिसने तुमको है तड़पाया, हो नफरत मे जिस से कब से .
नफरत की हर एक ग्रंथि को , इस प्रेम की लौ से पिघलाना
जो सुर बिगडे हैं जन्मों से , उन सबको एक लय मे लाना
घर मे , रिश्तों मे , दुनिया मे , इसको प्रतिबिंबित करना
इस अनंत के प्यार को तुम फिर सृष्टि तक विस्तृत करना .
जब ब्रह्माण्ड के हर कण से एक रिश्ता सा बन जाएगा ,
रे भोले भाले से मन तू खुद अनंत हो जाएगा !

Views: 466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 5, 2012 at 10:03pm

ये दूत है जो खुद आया है , उस परमशक्ति का साया है ,
उसने गुप्त सन्देश पड़ा , जो रूह ने है चुप चाप सुना ,
सत्य राह समझाने दो, अब दूत को तो घर जाने दो ,
जो ज्ञान मिला उसको रखना, हर बूँद मे बस अमृत चखना
उस अमृत मे लय हो कर के , तुम एक नयी दुनिया रचना ,
  बहुत अच्छे भाव प्राची  पढने में कुछ लेट हो गई |इस सुन्दर रचना के लिए बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 9:24pm

ह्रदय से आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

इस रचना को मैंने एक शब्द भी एडिट नहीं किया, ना ही कुछ सोच कर लिखा..
बस एक प्रवाह में भाव सिमटते गए, और फिर कही कुछ भी बदलने का मन नहीं किया, इसलिए जस की तस ही पोस्ट कर दी.
हिंदी छंद विधान धीरे धीरे सीख रही हूँ, अपनी प्रिय रचनाओं को उनकी शैली की सीमाओं में शीघ्र ही बाँध सकूं
पुनः आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 7:17pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 5, 2012 at 6:58pm

व्यष्टि को ब्रह्मेष्टि के सापेक्ष सोच पाना और उसका अर्थ निरुपित समझना इस रचना का मूल है.  रचना इन अर्थों में सफल हुई है. इस हेतु हार्दिक बधाई. वैसे अतुकांत (स्वतंत्र) रचनाओं को कहने का अपना एक अलग व्यंजन है. आपकी संलग्नता इसके लिये समयानुसार आवश्यक तथ्य स्वयं उपलब्ध करायेगी.

सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 5, 2012 at 5:07pm

ये दूत है जो खुद आया है , उस परमशक्ति का साया है ,
उसने गुप्त सन्देश पड़ा , जो रूह ने है चुप चाप सुना ,
सत्य राह समझाने दो, अब दूत को तो घर जाने दो ,
जो ज्ञान मिला उसको रखना, हर बूँद मे बस अमृत चखना
उस अमृत मे लय हो कर के , तुम एक नयी दुनिया रचना ,

sahmat. badhai.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 12:24pm

ह्रदय से आभार आदरणीय satish mapatpuri जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 12:23pm
 ह्रदय से आभार आदरणीय AVINASH S BAGDE जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 12:22pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय सीमा अग्रवाल जी..
इस कविता की गहनता को सराहने के लिए आपका ह्रदय से आभार.
Comment by AVINASH S BAGDE on May 4, 2012 at 10:42am

कोई ख़ास जब आता है , क्यूँ वो ही मन को भाता है

दिल बोला पिछले जन्मों का शायद कोई नाता है ...khoob.


जब ब्रह्माण्ड के हर कण से एक रिश्ता सा बन जाएगा ,
रे भोले भाले से मन तू खुद अनंत हो जाएगा !....jeewan ka saar....nice Dr Prachi.

Comment by satish mapatpuri on May 4, 2012 at 3:51am

दिल बोला ,

 अब भ्रम मत पालो , सच से अब तुम आँख मिला लो …

 सच है जब वो आता है , रूह तलक छू जाता है

पर वो आया तुम्हे बताने , इश्वर कैसा होता है ?

 गर भागे जो उसको पाने , ये ही बस एक धोखा है ,

बहुत खूब डॉ . प्राची जी ....... अभिनव .... बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
53 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
53 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
53 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service