मेरी धडकन में हो तुम ही,मेरी आबाज भी हो तुम
मेरी साँसों में तुम ही हो,मेरा अन्दाज भी हो तुम
यहाँ है अब तलक चर्चा हमारी ही मुहब्बत का
मगर मत भूल जाना तुम ,मेरे हमराज भी हो तुम
तुम्हारे ही निशाने पर रहा हूँ मैं हमेशा ही
कभी लगता है क्यों मुझको निशानेबाज भी हो तुम
कभी पल भर मैं ठहरा था, तेरी जुल्फों के साये मे
मुझे अहसास है अब तक ,मेरे सरताज भी हो तुम
गये लम्हों की कहकर थे ,कई अरसे गुजारे हैं
नहीं फिर…
ContinueAdded by umesh katara on April 17, 2014 at 8:12am — 14 Comments
कविता -
शरीर में चुभे हुए काँटे
जो शरीर को छलनी करते हैं;
वह टीस
जो दिल की धड़कन
साँसों को निस्तेज करती है
यह तुम्हें आनंद नहीं देगी
प्रेम का कोरा आलाप नहीं यह
वासना में लिपटे शब्दों का राग नहीं
छद्म चिंताओं का दस्तावेज़ नहीं
इसे सुनकर झूमोगे नहीं
यह तुम्हें गुदगुदाएगी नहीं
सीधे चोट करेगी दिमाग पर
तड़प उठोगे
यही उद्देश्य है कविता का
रात के स्याह-ताल…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on April 16, 2014 at 10:09pm — 45 Comments
2122 2122 1222
क्या शिकायत करू मैं इस जमानें से
फायदा क्या है किसी को बतानें से
अब मजारो की तरफ यूँ न देखो तुम
आ सकेगें हम न आँसू बहानें से
बदनसीबी साथ मेरे उम्र भर थी
सो रहा हूँ चोट खा कर जमानें से
यार मेरे तुम बहाओ न अश्को को
फायदा क्या अब यहाँ दिल जलानें से
रूठ कर हम से चले ही गये वो जब
साथ ना अब तो मिले कुछ बतानें से
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी गहमर…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on April 16, 2014 at 6:00pm — 16 Comments
221 2121 1221 212
बाज़ारे-इश्क़ सज गया पूरे उफान पर
शीला का नाम चढ़ गया सबकी ज़बान पर
धंधे की बात कीजिए कच्ची कली भी है
क्या कुछ नहीं मिलेगा मेरी इस दुकान पर
मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में
रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर
कूंचे में आए हुस्न का बाज़ार देखने
चोरी से देखते है सभी इक निशान पर
रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने
करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान…
ContinueAdded by Mukesh Verma "Chiragh" on April 16, 2014 at 5:00pm — 30 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
हसींन जुल्फ कहीं पर बिखर रही होगी
हवा है महकी उधर से गुजर रही होगी
फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम
कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी
जमी पे आज हैं बिखरे तमाम आंसू यूं
ग़मों में डूबी ये शब किस कदर रही होगी
मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी
जो जान हम पे छिड़कती उसे नहीं देखा
वो झिर्रियों से ही तकती नजर रही…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on April 16, 2014 at 12:12pm — 17 Comments
1222 1222 1222 1222
इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं
कहूं मरहम इन्हें या खंजरों का वार ही समझूं
कशिश बातों में तेरी अब अजब सी मुझको लगती है
कहूं बातों को बातें या इन्हें इकरार ही समझूं
वो डर के भेडियो से आज मेरे पास आये हैं
कहूं हालात इसको या कि फिर एतवार ही समझूं
झरे आँखों से आंसू आज तो बरसात की मानिंद
कहूं मोती इन्हें या सिर्फ मैं जलधार ही समझूं
तेरी नजरों ने कैसी आग सीने में लगाई है …
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 16, 2014 at 11:00am — 8 Comments
212221222122212
गर्भ में ही निज सुता की, काटकर तुम नाल माँ!
दुग्ध-भीगा शुभ्र आँचल, मत करो यूँ लाल माँ!
तुम दया, ममता की देवी, तुम दुआ संतान की,
जन्म दो जननी! न बनना, ढोंगियों की ढाल माँ!
मैं तो हूँ बुलबुल तुम्हारे, प्रेम के ही बाग की,
चाहती हूँ एक छोटी सी सुरक्षित डाल माँ!
पुत्र की चाहत में तुम अपमान निज करती हो क्यों?
धारिणी, जागो! समझ लो भेड़ियों की चाल माँ!
सिर उठाएँ जो असुर, उनको…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 16, 2014 at 10:00am — 28 Comments
कभी कभी खो जाता हूँ ,
भ्रम में इतना कि
एहसास ही नहीं रहता कि
तुम एक परछाई हो..
पाता हूँ तुम्हें खुद से करीब
हाथ बढ़ा कर छूना चाहता हूँ.
हाथ आती है महज शुन्यता .
स्वप्न भंग होता है ..
पर सत्य साबित होता है
क्षणभंगुर.
स्वप्न पुनः तारी होने लगता है.
पुनः आ खड़ी होती हो
नजरों के सामने ..
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं प्रकाशित
Added by Neeraj Neer on April 16, 2014 at 8:07am — 13 Comments
आँखों देखी – 16 वॉल्थट में वह पहली रात !
“थुलीलैण्ड” में क्रिसमस की पूर्व संध्या का अनुभव यादगार बनकर रह गया हमारे मन में. अगले दो दिनों में हेलिकॉप्टर द्वारा कई फेरों में आवश्यक सामग्री जहाज़ से शिर्माकर स्थित भारतीय शिविर, जिसे नाम दिया गया था ‘मैत्री’, तक पहुँचा दिया गया. 27 दिसम्बर 1986 के दिन ‘मैत्री’ को पूरी तरह रहने योग्य बनाकर छठे अभियान के ग्रीष्मकालीन दल के हवाले कर दिया गया. विभिन्न वैज्ञानिक कार्यक्रमों को इसी शिर्माकर ओएसिस में अथवा मैत्री को…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on April 16, 2014 at 2:00am — 5 Comments
फागुन बीता देखिये ,खिली चैत की धूप
सर्दी की मस्ती गई, झुलस रहा है रूप
झुलस रहा है रूप ,सुहाती है वैशाखी
धरती तपती खूब ,करे क्या मनुवा पाखी
होते सब बीमार ,बढ़ी मच्छर की भुन भुन ।
आगे जेठ अषाढ़ , कहाँ अब भीगा फागुन ॥..
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on April 15, 2014 at 9:20pm — 8 Comments
बेशर्मी को ओढ़कर कायर हुआ समाज
चीखे अबला द्रोपदी, कौन बचाए लाज
कौन बचाए लाज, खुले घूमे उन्मादी
अपराधी आजाद, मिली ऐसी…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2014 at 5:30pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
क्या मुआफी मांग इंसा यूँ भला हो जायेगा
एक अच्छाई से दानव, देवता हो जायेगा ?
खूब घेरी चाँद को , बेशक हज़ारों बदलियाँ
क्या लगा ये ? चाँद भी अब साँवला हो जायेगा
जिस तरह से धूप अब अठखेलियाँ करने लगी
सच अगर तू देख लेगा , बावला हो जायेगा
थोड़ा डर भी है सताता इस जमे विश्वास को
पर कभी लगता, चमन फिर से हरा जो जायेगा
हौसलों को तुम अमल में भी कभी आने तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 15, 2014 at 5:00pm — 18 Comments
122 122 122 122
सियासी जमातो! ग़दर कर दिया है,
वतन को लहू की नज़र कर दिया है।
निशाँ भी नहीं है कहीं रोशनी का,
के हर सू अँधेरा अमर कर दिया है।
डरी और सहमी है औलादे आदम,
ज़हन पर कुछ ऐसा असर कर दिया है।
नई नस्ले नफरत को पाने की धुन में,
रगों में रवाना ज़हर कर दिया है।
यहाँ कल तलक थी हज़ारों की बस्ती,
बताओ के उसको किधर कर दिया है।
ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।
गबन…
Added by इमरान खान on April 15, 2014 at 1:30pm — 11 Comments
Added by Akhand Gahmari on April 15, 2014 at 12:30pm — 10 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २
जीने का या मरने का
ढंग अलग हो करने का
सबका मूल्य बढ़ा लेकिन
भाव गिर गया धरने का
आज बड़े खुश मंत्री जी
मौका मिला मुकरने का
सिर्फ़ वोट देने भर से
कुछ भी नहीं सुधरने का
कूदो, मर जाओ `सज्जन'
नाम तो बिगड़े झरने का
-
(मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 15, 2014 at 10:30am — 14 Comments
2122 2122 212
वक़्त की रफ़्तार तो पैहम रही
जिंदगी की लौ मगर मद्धम रही
बर्फ बनकर अब्र जो है गिर रहा
पीर की बहती नदी भी जम रही
ग़म भरे अशआर जिसमे थे लिखे
धूप में भी वो ग़ज़ल कुछ नम रही
टूट के बिखरे सभी वो आईने
रूप की चाहत जिन्हें हर दम रही
वक़्त रहते कुछ नहीं हासिल किया
सोचते हैं जिंदगी कुछ कम रही
कैसे कह दें वो जहाँ में खुश रहे
आँखे उनकी तो सदा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 15, 2014 at 9:30am — 31 Comments
अपना फ़र्ज़ निभाने दे!
फिर से वही बहाने दे !!
तेरा भी हो जाऊँगा !
खुद का तो हो जाने दे !!
गैरों के घर खूब रहा!
अपने घर भी आनें दे !!
मूर्ख दोस्त से अच्छा है !
दुश्मन मगर सयाने दे!!
कागज़ की फिर नाव बनें !
बचपन वही पुराने दे !!
**************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on April 14, 2014 at 11:30pm — No Comments
बह्र : 221/2121/1221/212
—————————————————————————
किरदार मेरा अपनी सहेली से पूछना
औ लम्स* मेरा अपनी हथेली से पूछना *[स्पर्श]
मैं इक खुली किताब हूं तू खुल के बात कर
मुझसे न कोई बात पहेली से पूछना
पहले तो मुझसे कहना किसी और की हूं मैं
फिर हाल-ए-दिल हमारा सहेली से पूछना
बेदर्द वक्त कितना है हो जाएगा पता
खंडर हुई है कैसे हवेली से पूछना
खुशबू तुम्हारे जिस्म की है जानता 'शकील'
अच्छा नहीं सहन* की…
Added by शकील समर on April 14, 2014 at 11:30pm — 11 Comments
दिल में उम्मीदों का चलता कारवाँ रखिये
हर अँधेरे के लिए कोई शमाँ रखिये
बज़्म में आ ही गए कुछ तो निशाँ रखिये
कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये
रोज़ का मेहमाँ कोई मेहमाँ नहीं होता
शह्र के बाहर सही अपना मकाँ रखिये
देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो
कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये
ख्वाब जब होंगे नहीं तासीर क्या होगी
ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये
तीरगी को है मिटाती एक…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on April 14, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
1212212122
किसे सुनाएँ व्यथा वतन की।
है कौन बातें करे अमन की।
हुई हुकूमत हितों पे हावी,
हताश है, हर गुहार जन की।
फिसल रहे पग हरेक मग पर,
कुछ ऐसी काई जमी पतन की।
फरेब क़ाबिज़ हैं कुर्सियों पर,
कदम तले बातें सत वचन की।
निगल के खुशबू को नागफनियाँ,
कुचल रहीं आरज़ू चमन की।
ये किसके बुत क्यों बनाके रावण,
निभा रहे हैं प्रथा दहन की।
ज़मीं के मुद्दों पे चुप हैं…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 14, 2014 at 9:45pm — 10 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |