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March 2011 Blog Posts (134)

पानी बहाने के फायदे बनाम मेरा वाटर बैंक

होली के रंग उतारने में बड़ी मशक्‍कत करनी पड़ी। अब रंग तो उतर गया लेकिन चेहरे पर हल्‍की जलन व खिंचाव अभी भी है। नाते रिश्‍तेदारों को दोष न दूंगी, मैं इतनी सभ्‍य नहीं कि होली पर तिलक लगाकर फोटो खिंचवाऊं और खुद को जागरुक नागरिक घोषित करूं। क्‍योंकि असभ्‍य नागरिक होने का खामियाजा तो चेहरे का रंग उतारने पर भुगत ही रही हूं। सोचती हूं मैंने असभ्‍य होने के लिए कितना पानी बहाया होगा?



कोई तीस लीटर जितना। जो कि तीन व्‍यक्तियों के लिए तीस दिन की प्‍यास बुझाने के लिए  काफी हो। पृथ्‍वी पर उपलब्‍ध… Continue

Added by praveena joshi on March 24, 2011 at 10:53pm — 5 Comments

जन्म मृत्यु के लिए..



कितना अजीब सत्य है न! हम सभी आखिर जन्मे हैं मरने के लिए ही तो,कोई भी तो अमर नहीं है यहाँ.किन्तु चिरनिद्रा में विलीन होने से पहले,हम…
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Added by Lata R.Ojha on March 24, 2011 at 1:24pm — 4 Comments

ग़ज़ल ( बार बार ) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

ग़ज़ल ( बार बार ) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

हमनें तो ख्वाव के सहारा पे घर बनाया था

बूटा काँटों का अपनें हाथों से लगाया था…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 24, 2011 at 1:15pm — 2 Comments

गीत- भर आए परदेशी छालों से पाँव, चलो लौट चलें.

            गीत

 

                   भर आए परदेशी छालों से पाँव, चलो लौट चलें.

                   दुखियारे तन-मन से गीतों के गाँव, चलो लौट चलें.   

                …

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Added by राजेश शर्मा on March 23, 2011 at 7:17pm — 2 Comments

अहमद फ़राज़ शायरी/गजल

फराज के कुछ बेहतरीन शेर -

ढूँढ उजडे हुए लोगों में वफ़ा के मोती

ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें



तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा

दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें…



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Added by Tapan Dubey on March 23, 2011 at 4:20pm — No Comments

गजल

गजल



हमें धर जमाने में जमाने लगे ।

मिटाने में उन्हें चंद बहाने लगे ।।



मसीहा उस वक्त वो बन गये मेरे ।

जहाॅ के गम जब भी सताने लगे ।।



बचपन की यादें ताजा हो गई ।

जब छत पे पतंग उडाने लगे ।।



होश उस दम फाख्ता हो गए मेरे ।

वो जब मुझको मुझसे चुराने लगे ।।



जिनको अपने दर रहने को जा दी।

अफसोस वो हमें दरबदर कराने लगे।।



जिनको हमने जीने के लिए जिया दी।

अफसोस वो अंधेरे में घुमाने… Continue

Added by nemichandpuniyachandan on March 23, 2011 at 1:30pm — 1 Comment

कुछ तो में खोया सा हूँ..

कुछ तो में खोया सा हूँ
कुछ ये शाम खोयी सी है

पहलुओं की आड़ से खुद को बचा के चल दिए
बेखुदी तमाम खोयी सी है

इक ना-काफ़िर के अब ना रहे मुहताज हम
आदत-ए-आम खोयी सी है

खो गयीं वो सूरतें जो बादलों में यों हीं दिखती थीं
तालीम-ए-हाराम खोयी सी है

हज़ार पन्ने भर दिए कैफियत पर ना हुई
सूरत गुमनाम खोयी सी है

Added by Bhasker Agrawal on March 23, 2011 at 10:20am — No Comments

jhamele ho gaye

आसमां के हाथ मैले हो गये
ये महल कैसे तबेले हो गये
 
जो खनकते थे कभी कलदार से 
अब सरे बाज़ार धेले हो गये
 
घूमती थी बग्घियाँ किस शान से
आजकल सड़कों पे ठेले हो गये
 
इस शहर में कौन बोलेगा भला 
लोग ख़ामोशी के चेले हो गये
 
देखिये तो छक्के पंजे जब मिले 
कल के नहले आज दहले हो गये
 
अपनी खुद्दारी…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 22, 2011 at 10:41pm — 7 Comments

निराशा ने घेरा..

 

 

 

निराशा ने घेरा..

 

निशा का समय है दिशा में अँधेरा,

अज्ञानता में बसाया है डेरा.

चलता हुआ ठोकरें खा रहा है,

रोना जहाँ पर वहीँ गा रहा…

Continue

Added by R N Tiwari on March 22, 2011 at 9:07pm — 3 Comments

जो भी किया मैंने बस जीने के लिए ,

जो भी किया मैंने बस जीने के लिए ,
लोग कहते हैं जीता हैं पीने के लिए ,


कसम से उनकी बात सत्य हैं यारो ,
मगर दो घूँट जरुरी दर्दे जिगर के लिए ,


दिल में बैठे थे वो मालिक बन कर ,
और छोड़ गए तन्हा मरने के लिए ,


पता हैं मैं क्यों पिए जा रहा हूँ ,
आस लगाये बैठा हूँ बेवफा के लिए ,


वो मिले या न मिले मगर ये दिल ,
तू संभल जा बस गुरु के लिए ,

Added by Rash Bihari Ravi on March 22, 2011 at 4:00pm — No Comments

रंग दे मोहे सांवरे रंग दे..

 

रंग दे मोहे सांवरे रंग दे ,
प्रीत के रंग में मोहे रंग दे |
चन्दन संग खुशबु मोहे रंगने आई ,
पी की महक बिन ना कछु भाई |
टेसू गेंदा चाहे मोहे रंगना ,
तेरी छुअन सिवा सब चुभता अंगमा |…
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Added by Veerendra Jain on March 22, 2011 at 11:30am — 5 Comments

मुक्तिका: गलत मुहरा ----- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                          



गलत मुहरा



संजीव 'सलिल'

*

सही चहरा.

गलत मुहरा..



सिन्धु उथला,

गगन गहरा..



साधुओं पर

लगा पहरा..



राजनय का

चरित दुहरा..



नर्मदा जल

हहर-घहरा..



हौसलों की

ध्वजा फहरा..



चमन सूखा

हरा सहरा..



ढला सूरज

चढ़ा कुहरा..



पुलिसवाला

मूक-बहरा..



बहे पत्थर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 21, 2011 at 6:40pm — 7 Comments

मुक्तिका: मन तरंगित ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                         



मन तरंगित



संजीव 'सलिल'

*

मन तरंगित, तन तरंगित.

झूमता फागुन तरंगित..



होश ही मदहोश क्यों है?

गुन चुके, अवगुन तरंगित..



श्वास गिरवी आस रखती.

प्यास का पल-छिन तरंगित..



शहादत जो दे रहे हैं.

हैं न वे जन-मन तरंगित..



बंद है स्विस बैंक में जो

धन, न धन-स्वामी तरंगित..



सचिन ने बल्ला घुमाया.…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 21, 2011 at 6:39pm — No Comments

कविता :- सच कहना तुम भूली मुझको ?

कविता :- सच कहना तुम भूली मुझको ?…

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Added by Abhinav Arun on March 20, 2011 at 6:30pm — 18 Comments

हर उर भरे रंग हर होली कर संग

हर उर भरे रंग हर होली कर संग 

(मधु गीति सं. १७३३, दि. २० मार्च, २०११) 

 

हर उर भरे रंग, हर होली कर संग;…

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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on March 20, 2011 at 1:49pm — 2 Comments

मुक्तिका: हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की



संजीव 'सलिल'

*

भाल पर सूरज चमकता, नयन आशा से भरे हैं.

मौन अधरों का कहे, हम प्रणयधर्मी पर खरे हैं..



श्वास ने की रास, अनकहनी कहे नथ कुछ कहे बिन.

लालिमा गालों की दहती, फागुनी किंशुक झरे हैं..



चिबुक पर तिल, दिल किसी दिलजले का कुर्बां हुआ है.

भौंह-धनु के नयन-बाणों से न हम आशिक डरे हैं?.



बाजुओं के बंधनों में कसो, जीवन दान दे दो.

केश वल्लरियों में गूथें कुसुम, भँवरे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 20, 2011 at 10:24am — No Comments

नवगीत: तुमने खेली हमसे होली ----संजीव 'सलिल'

नवगीत:



तुमने खेली हमसे होली



संजीव 'सलिल'

*

तुमने खेली हमसे होली

अब हम खेलें.

अब तक झेला बहुत

न अब आगे हम झेलें...

*

सौ सुनार की होती रही सुनें सच नेता.

अब बारी जनता की जो दण्डित कर देता..

पकड़ा गया कलेक्टर तो क्यों उसे छुडाया-

आम आदमी का संकट क्यों नजर न आया?

सत्ता जिसकी संकट में

हम उसे ढकेलें...

*

हिरनकशिपु तुम, जन प्रहलाद, होलिका अफसर.

मिले शहादत तुमको अब आया है अवसर.

जनमत का हरि क्यों न मार… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 19, 2011 at 11:52pm — 2 Comments

होली-ग़ज़ल

प्रेम के रंग में सब रंग जाएं, दिन है ठेल-ठिठोली का

मिटें नफ़रतें बढ़े मुहब्बत, तभी मज़ा है होली का ।



एक न इक दिन भर जाते हैं, घाव बदन पर जो लगते

ज़ख़्म नहीं भरता है लेकिन, कभी भी कड़वी बोली का ।



ज़ात-धरम-सिन-जिंस न देखे, बदन में जा कर धंस जाए

कोई अपना सगा नहीं होता, बंदूक़ की गोली का ।



कभी महल में रहता था वो, क़िस्मत ने करवट बदली

नहीं किराया दे पाता है, अब छोटी-सी खोली का ।



दूर से तुम अहवाल पूछ कर, रस्म अदा क्यों करते हो

पास… Continue

Added by moin shamsi on March 19, 2011 at 9:24pm — No Comments

होली की कविता

रंग-बिरंगी प्यारी-प्यारी,
होली की भर लो पिचकारी ।

इक-दूजे को रंग दो ऐसे,
मिटें दूरियां दिल की सारी ।

तन भी रंग लो मन भी रंग लो,
परंपरा यह कितनी न्यारी ।

रंगों का त्योहार अनोखा,
आज है पुलकित हर नर-नारी ।

प्रेम-पर्व है आज बुझा दो,
नफ़रत की हर-इक चिंगारी ।

जाति-धर्म का भेद भुला दो,
मानवता के बनो पुजारी ।

मेलजोल में शक्ति बहुत है
वैर-भाव तो है बीमारी ।

Added by moin shamsi on March 19, 2011 at 9:23pm — No Comments

ग़ज़ल-आँख सपनीली सुहानी है अभी

   ग़ज़ल

 

आँख सपनीली सुहानी है अभी.

झील में रंगीन पानी है अभी.

 

पंख टूटे कैद…

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Added by राजेश शर्मा on March 19, 2011 at 7:00pm — 5 Comments

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