For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

February 2013 Blog Posts (194)

तुम बिन जिया जाये कैसे ………

तुम पास नहीं हो तो दिल मेरा बहुत उदास है !

हर पल दिल में तेरा ही अहसास है !

जिधर देखूं बस तुम ही तुम नज़र आते हो !

और पलक झपकते ही ओझल हो जाते हो !

दिल की धड़कन से तेरी आवाज़ आती है !

मेरी हर सांस से तेरी आवाज़ आती है !

न जाने क्या हो गया है मुझे !

मैं बात करती हूँ , आवाज़ तेरी आती है !

जबसे तुमसे मिले हैं हम खुद से पराये हो गए हैं !

तेरी ही यादों में कुछ ऐसे दीवाने हो गए हैं !

सबके बीच रहते हुए भी तनहा हो गए हैं…

Continue

Added by Parveen Malik on February 7, 2013 at 1:00pm — 7 Comments

तू तू मैं मैं

             तू तू मैं मैं 

पति पत्नीं में होता प्यार वेसुमार 

प्यार ही प्यार में होती तकरार

तकरार से संबंधों में आता निखार

तकरार से धुल जाता दिल का गुबार

प्राय: पति सदैव रहता खामोश

बस यदा कदा ही जताता आक्रोश

आपके कारण जिन्दगी मेरी नाश हो गई

हर बक्त तुम चुभने वाली फाँस हो गई

पल पल जलाती हो तुम मेरा खून

नहीं रहा जीवन में चैनोंसुकून

 खुशहाल जिन्दगी उदास…

Continue

Added by Dr.Ajay Khare on February 7, 2013 at 1:00pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मुकद्दर का घोड़ा 122, 122 22 रदीफ के साथ (ग़ज़ल,छोटी बहर पर एक प्रयास )

122, 122 22 (ग़ज़ल)

जमाया हथौड़ा रब्बा 

कहीं का न छोड़ा रब्बा 

बना काँच का था नाज़ुक 

मुकद्दर का घोड़ा रब्बा 

हवा में उड़ाया उसने 

जतन से था जोड़ा रब्बा

तबाही का आलम उसने 

मेरी और मोड़ा रब्बा  

बेरह्मी से दिल को यूँ 

कई बार तोड़ा रब्बा  

रगों से लहू को मेरे

बराबर निचोड़ा रब्बा

चली थी  कहाँ मैं देखो   

कहाँ ला के छोड़ा रब्बा

मुकद्दर पे ताना कैसे

कसे मन निगोड़ा रब्बा 

लगे ए …

Continue

Added by rajesh kumari on February 7, 2013 at 10:00am — 27 Comments

" कलयुग"

आलीशान वाहन में देखा ,
बैठा था एक सुन्दर पिल्ला !
खाने को इधर रोटी नहीं ,
गटक रहा था वह रसगुल्ला !

इर्ष्या हुयी पिल्ले से ,
क्रोध आ रहा रह-रह कर !
मै भूख से मर रहा ,
यह खा रहा पेट भरकर !

देख रहा ऐसी नज़रों से,
मानों समझ रहा भिखारी
सोचने पर मजबूर था ,
इतनी दयनीय दशा हमारी!

आदमी मरेगा भूख से ,
पिल्ला रसगुल्ला खायेगा !
किसी ने सच ही कहा है ,
ऐसा कलयुग आयेगा!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 6, 2013 at 8:30pm — 1 Comment


मुख्य प्रबंधक
हास्य घनाक्षरी - 2 / गणेश जी बागी

घनाक्षरी

आया मैं तो कुम्भ में कि, पाप कुछ…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 6, 2013 at 5:30pm — 20 Comments

गीत : आशियाना ... संजीव 'सलिल'

गीत :

आशियाना ...

संजीव 'सलिल'

*

धरा की शैया सुखद है, 

नील नभ का आशियाना ...

संग लेकिन मनुज तेरे 

कभी भी कुछ भी न जाना ...

*

जोड़ता तू फिर रहा है,

मोह-मद में घिर रहा है।

पुत्र है परब्रम्ह का पर 

वासना में तिर रहा है।

पंक में पंकज सदृश रह-

सीख पगले मुस्कुराना ...

*

उग रहा है सूर्य नित प्रति,

चाँद संध्या खिल रहा है। 

पालता है जो किसी को, 

वह किसी से पल रहा…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on February 6, 2013 at 5:00pm — 8 Comments

शून्य में मैं ढूँढ रहा हूँ

(My First Poetry on OBO )

शून्य में मैं ढूँढ रहा हूँ

अपने जीवन के सारांश

बिखरी बिखरी यादों के पल रीते रीते बिन रहा हूँ

बीती बातें बीती यादें

बीते सपने बीती राहें

हर बीते दिन की अकुलाहट थामे

शून्य में मैं ढूँढ रहा हूँ

अपने जीवन के सारांश

बिखरी बिखरी यादों के पल

रीते रीते बिन रहा हूँ

आँखो मे फैला अंधियारा

नवचेतन का मार्ग नही

तुमसे ही मेरा जीवन था

तुमसे परे कोई मार्ग नही

तुमको मुझमे ढूँढ रहा…

Continue

Added by Nitish Kumar Pandey on February 6, 2013 at 4:00pm — 8 Comments

बिना किसी अनुरणन के

*मध्‍यमेधा का

एक चम्‍मच सूरज उठाए

कर्मनाशा आहूतियों को

जब भी मढ़ना चाहा

राग हिंडोल के वर्क से

अतिचारी क्षेपक

हींस उठे

पिनाकी नाद से

और डहक गया

सारा उन्‍मेष.......

तकलियां.....

बुनती ही रहीं

कुहासाछन्‍न आकाश

बिना किसी अनुरणन के

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

*मध्‍यमेधा- मध्‍यम वर्ग की मेधा (बांग्‍ला शब्‍दार्थ)

Added by राजेश 'मृदु' on February 6, 2013 at 1:53pm — 10 Comments

प्रेम तत्व का सार कृष्ण है जीवन का आधार कृष्ण है |

मित्रों गोपियों के विरह को और उनके कृष्ण प्रेम को महसूस करने की कोशिश की है ....... आशा है आपको यह गीत पसंद आएगा 

++++++++++++++++++++++++++++++++++



प्रेम तत्व का सार कृष्ण है जीवन का आधार कृष्ण है |

ब्रह्म ज्ञान मत बूझो उद्धव , ब्रह्म ज्ञान का सार कृष्ण हैं ||



मुरली की धुन सामवेद है , ऋग् यजुर आभा मुखमंडल 

वेद अथर्व रास लीला है ,शास्त्र ज्ञान कण कण…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on February 6, 2013 at 1:00pm — 11 Comments

मृत्यु तुझे सलाम है

दुःख के रास्ते सुख आता है,
अनुभवों में यह पलता है  
दूर क्षितिज तक जाम है।
जीवन सुख का धाम है,
मृत्यु तुझे सलाम है ।


अटके प्राण स्वजनों में, …
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2013 at 11:29am — 15 Comments

"आशा"

रोज़ ढलते सूरज के साथ,

जन्म लेने लगती कुछ बूँदें 

रोज़ सुबह उठ, उन बूँदों को भी मै पाता हूँ,

पर खो जाती,वो चढ़ते सूरज के साथ....

तब पूछता मै खुद से....

सूरज ही तो था इनका जनक, फिर...फिर

क्यों कर मिटा दी उसने अपनी ही उत्त्पत्ति?

सोचते-सोचते उभर आती फिर कुछ बूंदे

पर होती नहीं वो ओंस....

और इस तरह ....ढलने लगता ...एक और सूरज

और जन्म लेने लगती फिर कुछ…

Continue

Added by Vivek Shrivastava on February 6, 2013 at 11:00am — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सिर्फ़ एक चटक रंग (कहानी)

मैंने तो सिर्फ एक ही रंग माँगा था चटक रंग तुम्हारे प्यार का और तुम पूरा इंद्र धनुष ही उठा लाये कैसे सम्भालूँगी  ये…

Continue

Added by rajesh kumari on February 6, 2013 at 10:30am — 25 Comments

ग़ज़ल - आप खुश हैं कि तिलमिलाए हम

एक और ताज़ा गज़ल आपकी खिदमत में पेश करता हूँ... लुत्फ़ लें ...



आप खुश हैं, कि तिलमिलाए हम |

आपके कुछ तो काम आए हम |



खुद गलत, आपको ही माना सहीह,

जाने क्यों आपको न भाए हम |



आपके फैसले गलत कब थे,

और फिर, सब…

Continue

Added by वीनस केसरी on February 6, 2013 at 4:30am — 20 Comments

"छंद त्रिभंगी "(एक प्रयास)

"छंद त्रिभंगी "

उठ नींद से गहरी , अर्जुन प्रहरी, नयना अपने, खोल ज़रा
पद साथ बढ़ा के , चाप चढ़ा के , इन्कलाब तो, बोल ज़रा
या छोड़ दिखावा, ये पहनावा, भगवा धारण, तुम कर लो
बन संत तजो सब, मौन रहो अब, मन का मारण,तुम कर लो

,,,,,,,दीप ............

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 9:42pm — 16 Comments

"हम कहाँ हैं"

विकास तो बहोत किये ,

फिर भी हम पिछड़ गये ,

पाना था जो उत्कर्ष ,

उससे ही बिछड़ गये !!

प्रयास के उपरांत भी ,

ऐसा क्यूँ होता है !

जिसको हँसना चाहिए ,

वह स्वयं रोता है !

स्वच्छता की बात करने वाला ,

खुद गन्दगी नहीं धोता है ,

जिसको जागना चाहिए ,

वही अब सोता है!!

एक नई सोच ,

एक नई लालसा  !

दिल में लिए हुये,

पाट रहा हूँ फासला !!

हारना नहीं है मुझे ,

लड़ता ही रहूँगा !

संघर्ष ही जीवन है, 

प्रयास करता…

Added by ram shiromani pathak on February 5, 2013 at 8:30pm — 2 Comments

इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "

इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "



सपने किसके किससे कम हैं

सबके अपने अपने गम हैं



पर पीर नहीं दिखती अब तो

हर मानव पत्थर के सम हैं



अपने अफई बन के डसते

बस सोच यही अँखियाँ नम हैं



भरते दम ख्वाब सजा कल के

मन दंभ भरे सब बेदम हैं



खुद को कह वारिस संस्कृति के

फिरते कितने अब गौतम हैं …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 4:30pm — 23 Comments

"दिमाग़ी सोच से हट कर मैं दिल से जब समझता हूँ"

बह्रे हज़ज़ मुसम्मन सालिम

१२२२-१२२२-१२२२-१२२२

दिमाग़ी सोच से हट कर मैं दिल से जब समझता हूँ;

ज़माने की हर इक शै में मैं केवल रब समझता हूँ; (१)

ख़ुशी बांटो सभी को और सबसे प्यार ही करना,

यही ईमान है मेरा यही मज़हब समझता हूँ; (२)

मरुस्थल है दुपहरी है न कोई छाँव मीलों तक,

ये दुनिया जिसको कहती है वो तश्नालब समझता हूँ; (३)

कभी गाली, कभी फटकार तेरी, सब सहा मैंने,

मिला है आज हंस कर तू, तेरा मतलब समझता हूँ; (४)

फ़ितूर इस को कहो चाहे सनक या…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 5, 2013 at 3:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल - वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है

मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ

वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |

वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |

यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,

हयात अब कोई मसअला चाहती है |…

Continue

Added by वीनस केसरी on February 5, 2013 at 10:00am — 17 Comments

भारत माँ की जय बॊलॊ

भारत माँ की जय बॊलॊ

=================

प्रॆम प्रणय कॆ अनुबंधॊं सॆ, मॆरा कॊई संबंध नहीं हैं !!

बिंदिया पायल कंगन कजरा, मॆरॆ तट बन्ध नहीं हैं !!

ना कॊई खॆल खिलौनॆ, ना गुब्बारॆ भर कर लाया हूँ !!

आज तुम्हारॆ चरणॊं मॆं, बस अंगारॆ लॆ कर आया हूँ !!

मिट्टी की अजब मिठास कहॆगी, भारत माँ की जय बॊलॊ !!

मॆरॆ जीवन की हर सांस कहॆगी, भारत माँ की जय बॊलॊ !!१!!

मॆरी कविता की बस कॆवल, इतनी ही परिभाषा है !!

श्रृँगार-सुरा कॆ बॊल नही यह,दिनकर वाली भाषा है !!…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 4, 2013 at 9:17pm — 10 Comments

अर्पण

ये शब्द समर्पित  उन भावनाओं को,

जो अव्यक्त रह गयी.

उस रुपहले संसार को,

जो ख्वाब बनकर रह गया.

ये शब्द समर्पित उस रिश्ते को,

जो बेनाम रह…

Continue

Added by RAJESH BHARDWAJ on February 4, 2013 at 5:44pm — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
55 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
56 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service