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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार अट्ठावनवाँ आयोजन है.

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  19 फरवरी 2016 दिन शुक्रवार से  20 फरवरी 2016 दिन शनिवार तक

 

इस बार गत अंक में से दो छन्द रखे गये हैं - चौपाई छन्द और सार छन्द.

 

 

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.

 

इन दोनों छन्दों में से किसी एक या दोनों छन्दों में प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द रचना करनी है. 

 

इन छन्दों में से किसी उपयुक्त छन्द पर आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.  

 

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.   

 

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

 

चौपाई छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

[प्रस्तुत चित्र ओबीओ सदस्य एवं कार्टूनिस्ट आ. विनय कूल जी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है]

सार छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने केलिए यहाँ क्लिक करें 

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

 

********************************************************

 

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 19 फरवरी 2016 दिन से 20 फरवरी 2016 दिन यानि दो दिनों के लिए  रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  5. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  6. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  7. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

 

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

 

विशेष :

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

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Replies to This Discussion

सुंदर रचना पर सादर बधाई

 बढ़िया छंद हार्दिक बधाई  

अपने यहाँ अस्त होने से ,नहीं रुकेगा मेला
हर पल हर दम सतत चलेगा ,जीवन का ये खेला
लौट रहे जो साथ चले थे ,बस इतना था नाता
जाते मानव को रवि देखो , बातें कुछ समझाता -------वाह ! बहुत ही सुंदर और शास्वत भाव दिखाई दिये है आपकी इस गीत के पदो में । हृदयतल से बधाई आपको आदरणीया प्रतिभा जी ।
गीत 
===
बहुत चल चुका साथ तुम्हारे, 
अब मैं बिलकुल पस्त हो गया !
राजमार्ग को दे तिलांजलि ,
पगडण्डी पर मस्त हो गया ! 
उदित हुआ था कभी पूर्व में , अब पश्चिम  में अस्त हो गया !!
स्वर्ण महल के दिवास्वप्न, 
तब देखे थे हमने जीवन में!
दिवा रात्रि सब एक कर दिये, 
श्रमसिंचित करके कण कण में!
अब तो साॅंसों का सागर भी, उमड़ घुमड़ में व्यस्त हो गया ! !
साथ साथ रहते रहते हम, 
सभी दुर्दिनों को जीते थे !
स्वेद भरे वस्त्रों के वे सब, 
जेब सदा रहते रीते थे !
चलो आज वह बहुत पुराना, साम्राज्य भी ध्वस्त हो गया ! !
मौलिक और अप्रकाशित 

-- 

सूर्य दिनचर्या व मानव जीवन को लेकर रची बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय डॉ. टी. आर. शुक्ल जी।
....कृपया जांच कर लीजिएगा कि मात्रायें कहीं गड़बड़ तो नहीं हो रही हैं?

धन्य वाद आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी।  आपका संकेत सही है , दूसरे  पद की दूसरी पंक्ति में यह संशोधन करना पड़ेगा परन्तु अभी तो आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी द्वारा "डिसेक्सन" किया जाना बाकी है , उन्हीं की रिपोर्ट निर्णायक होगी।  सादर। 

आदरणीय टी आर सुकुल साहब, डिसेक्शन के बाद संज्ञाएँ प्राणशून्य हो जाती हैं.  जबकि नीर-क्षीर करती सम्यक ’चर्चा’ हो तो रचनाएँ प्राणवान हो उठती हैं. :-)))

हा हा हा...........

आदरणीय महोदय पाण्डेयजी ! मेरी दृष्टि में तो आपके द्वारा किये गए डिसेक्शन से रुग्ण भाग दूर किया जाकर नवजीवन देने का कार्य संपन्न होता है। सादर। 

सादर धन्यवाद आदरणीय टी आर सुकुलजी. 

आप प्रथम नाम से ही सम्बोधित किया करें. 

भावपूर्ण रचना

धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण जी।

साथ साथ रहते रहते हम, 
सभी दुर्दिनों को जीते थे !
स्वेद भरे वस्त्रों के वे सब, 
जेब सदा रहते रीते थे !
चलो आज वह बहुत पुराना, साम्राज्य भी ध्वस्त हो गया  ....  बहुत  सुन्दर चित्रण है समय के साथ जीवन के धीरे धीरे ख़त्म होने का , हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस रचना पर आदरणीय   सादर     

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