For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,108)

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के 

पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त 

डकारकर कतरा - कतरा मज्जा

जब जानवर मना रहे होंगे उत्सव 

अपने आएंगे अपनेपन का जामा पहन

मगरमच्छ के आँसू बहाते हुए 

नहीं बची होगी कोई बूॅंद तब तक 

निचोड़ने को अपने - पराए की

बचा होगा केवल सूखे ठूॅंठ सा

निर्जिव अस्थिपिंजर ।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 29, 2025 at 3:57pm — No Comments

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।

युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।

घुसें समझ कर सौड़ , सौड़ काँटों का बिस्तर ।

लालच के वश होत , स्वर्ग सा जीवन बदतर ।

खाते सब 'कल्याण', भाग्य का नभ थल जलचर ।

जब देते भगवान , नहीं फिर लगता पलभर ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 24, 2025 at 2:22pm — No Comments

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।

जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।

जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।

सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात।

मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।

परिवर्तन संदेश दे , चमकें तारे सात।

हूक हृदय में ऊठती, ज्यों चकवे की प्यास।

छत पर छिटकी चाँदनी, बेकाबू जज़्बात।

बिजना था हर हाथ में, सभी सुखी थे

झोल।

गलियों में ही खाट पर, सोता था देहात।

दिनभर…

Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 14, 2025 at 8:30pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे 

१२२    १२२     १२२     १२२   



बढी भी तो थी ये उमर धीरे  धीरे

तो फिर क्यूँ न आये हुनर धीरे धीरे

चमत्कार पर तुम भरोसा करो मत

बदलती  है  दुनिया मगर धीरे धीरे

हक़ीक़त पचाना न था इतना आसां

हुआ सब पे सच का असर धीरे धीरे

ज़बाँ की लड़ाई अना  का है क़िस्सा

ये समझोगे तुम भी मगर धीरे धीरे

ग़मे ज़िंदगी ने यूँ ग़फ़लत में  डाला

हुये इल्मो  फन बे असर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 14, 2025 at 7:58pm — 6 Comments

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२

*

कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१।

*

महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के

कहे झोपड़ी  का  नहीं मोल सिक्के।२।

*

लगाता है  सबके  सुखों को पलीता

बना रोज रिश्तों में क्यों होल सिक्के।३।

*

रहें दूर या फिर  निकट  जिन्दगी में

बजाता है सबको बना ढोल सिक्के।४।

*

सिधर भी गये तो न बक्शेंगे हमको

रहे जिन्दगी में  जो ये झोल सिक्के।५।

*

नहीं  पेट    ताली  …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2025 at 3:15pm — 2 Comments

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई में

मिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।

*

दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर

क्या डर लगता है तम को तन्हाई में।२।

*

छत पर बैठा मुँह फेरे वह खेतों से

क्या सूझा है मौसम को तन्हाई में।३।

*

झील किनारे बैठा चन्दा बतियाने

देख अकेला शबनम को तन्हाई में।४।

*

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे

जा तू समझा मरहम को तन्हाई में।५।

*

साया भी जब छोड़ गया हो तब यारो

क्या मिलना था बेदम को तन्हाई में।६।

*

बीता वक्त…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2025 at 10:49pm — 4 Comments

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवन

वास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर अकेलेपन और असंतोष की जड़ बन जाती है। जीवन का सार केवल सच्चाई तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें दया, सहानुभूति और समझदारी का भी समावेश होता है। जब मुझे नई सोच और नए विचारों की आवश्यकता होती है, तो मैं उन लोगों की खोज करता हूँ जो मेरी आलोचना करें, जो मेरी बातों पर उंगली उठाएँ। क्योंकि केवल आलोचना के द्वारा ही हम अपनी सीमाओं को पहचान…

Continue

Added by PHOOL SINGH on July 1, 2025 at 3:00pm — 2 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )

११२१२     ११२१२       ११२१२     ११२१२  

मुझे दूसरी का पता नहीं 

***********************

तुझे है पता तो बता मुझे, मैं ये जान लूँ तो बुरा नहीं

मेरी ज़िन्दगी यही एक है, मुझे दूसरी का पता नहीं

 

मुझे है यकीं कि वो आयेगा, तो मैं रोशनी में नहाऊंगा

कहो आफताब से जा के ये, कि यक़ीन से मैं हटा नहीं

 

कहे इंतिकाम उसे मार…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 26, 2025 at 8:30pm — 2 Comments

करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२२

*****

जुड़ेगी जो टूटी कमर धीरे-धीरे

उठाने लगेगा वो सर धीरे-धीरे।१।

*

दिलों से मिटेगा जो डर धीरे-धीरे

खुलेंगे सभी के  अधर धीरे -धीरे।२।

*

नपेंगी खला की हदें भी समय से

वो खोले उड़ेगा जो पर धीरे -धीरे।३।

*

भले द्वेष का  विष चढ़े तीव्रता से

करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे।४।

*

उलझती हैं राहें अगर ज़िन्दगी की

सुलझती भी हैं  वे मगर धीरे-धीरे।५।

*

भला क्यों है जल्दी मनुज को ही ऐसी

हुए   देव   भी …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2025 at 11:40pm — 4 Comments

कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

221/2121/1221/212

***

कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर

होगी कहाँ से  दोस्ती  आँखें तरेर कर।।

*

उलझे थे सब सवाल ही आँखें तरेर कर

देता  रहा  जवाब  भी  आँखें  तरेर कर।।

*

देती  कहाँ  सुकून  ये  राहें   भला मुझे

पायी है जब ये ज़िंदगी आँखें तरेर कर।।

*

माँ ने दुआ में ढाल दी सारी थकान भी

देखी जो बेटी  लौटती  आँखें तरेर कर।।

*…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 24, 2025 at 9:28pm — 2 Comments

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.

सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं 

जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं.

.

ये और बात कि कल जैसी मुझ में बात नहीं    

अगरचे आज भी सौदा गराँ नहीं हूँ मैं.

.

ख़ला की गूँज में मैं डूबता उभरता हूँ   

ख़मोशियों से बना हूँ ज़बां नहीं हूँ मैं.

.

मु’आशरे के सिखाए हुए हैं सब आदाब  

किसी का अक्स हूँ ख़ुद का बयाँ नहीं हूँ मैं.

.

सवाली पूछ रहा था कहाँ कहाँ है तू

जवाब आया उधर से कहाँ नहीं हूँ मैं?

.

परे हूँ जिस्म से अपने…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on June 11, 2025 at 1:08pm — 16 Comments

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 

मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहे

पीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहे

वो ग़लत हैं जानते थे पर अहेतुक स्नेहवश

हम सभी से मित्रवत व्यवहार भी करते रहे

आपके मंतव्य में थे अन्यथा कुछ अर्थ तो

मौन रहकर भाव से प्रतिकार भी करते रहे

दुष्प्रचारित कर रहे वो क्या कहूँ छल छद्म पर

शत्रुओं का पक्ष लेकर प्यार भी करते रहे

लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम में

अस्तु वो संबंध में व्यापार…

Continue

Added by Ravi Shukla on June 9, 2025 at 1:25pm — 8 Comments

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा



अर्थ प्रेम का है इस जग में

आँसू और जुदाई

आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

कैसी रीत चलाई



सूर्य निकलता नित्य पूर्व से

पश्चिम में ढल जाता

कब से डूबा सूर्य हृदय का

अब भी नजर न आता



धीरे धीरे बढ़ता जाए

अंतस में अँधियारा

दिशाहीन पथहीन जगत में

भटक रहा बंजारा



अभी शेष है कितनी पीड़ा

बोलो कुछ पुरवाई

आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

कैसी रीत चलाई



ओ दक्षिण को…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 5, 2025 at 12:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )

१२२२    १२२२     १२२२      १२२

मेरा घेरा ये बाहों का तेरा बन्धन नहीं है

इसे तू तोड़ के जाये मुझे अड़चन नहीं है

 

समय की धार ने बदला है साँपों को भी शायद

वो लिपटे हैं मेरी बाहों से जो चन्दन नहीं है

 

जिन्हों ने कामनाओं की जकड़ स्वीकार की थी   

उन्हीं की भावनाओं में बची जकड़न नहीं है

 

न लो…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 29, 2025 at 8:00pm — 11 Comments

ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं

मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं

मगर पाण्डव हैं मुट्ठी भर, खड़े हैं.

.

हम इतनी बार जो गिर कर खड़े हैं

मुख़ालिफ़ हार कर शश्दर खड़े हैं.      शश्दर-आश्चर्यचकित, स्तब्ध

.

कभी कोई बसेगा दिल-मकां में

हम इस उम्मीद में जर्जर खड़े हैं.

.

ऐ रावण! अब तेरा बचना है मुश्किल

तेरे द्वारे पे कुछ बंदर खड़े हैं.

.

उसे लगता है हम को मार देगा

हम अपने जिस्म से बाहर खड़े हैं.

.

मुझे क़तरा समझ बैठा है नादाँ

मेरे पीछे…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2025 at 6:45pm — 13 Comments

ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)

देखे जो एक दिन का भी जीना किसान का

समझे तू कितना सख़्त है सीना किसान का



मिट्टी नहीं अनाज उगलती है तब तलक

जब तक मिले न उस में पसीना किसान का



बारिश की आस और कभी है उसी का डर

यूँ बीतता हर एक महीना किसान का



कब से उगा रहा है कपास अपने खेत में

कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का



समतल ज़मीन पर ये लकीरें अजब-ग़ज़ब

देखे ही बन रहा है करीना किसान का



है हिम्मती है…

Continue

Added by अजय गुप्ता 'अजेय on May 28, 2025 at 6:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे

.

ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे

दुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे.

.

जादू टोना यूँ लब ओ रुख़्सार भी करते रहे

जो मुदावा थे वही बीमार भी करते रहे.

.

उस की सुहबत के असर में हो गए उस की तरह  

फिर उसी के लहजे में गुफ़्तार भी करते रहे.

.

जिस्म को जीते रहे हम एक क़िस्सा मान कर  

और अपनी रूह को तैय्यार भी करते रहे.

.

हर क़िले के द्वार अन्दर ही से खोले जाते हैं

दुश्मनों का काम चौकीदार भी करते रहे.

.

‘नूर’ ऐसा…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 25, 2025 at 6:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)

लोग हुए उन्मत्ते हैं

बिना आग ही तत्ते हैं

गड्डी में सब सत्ते हैं

बड़े अनोखे पत्ते हैं

उतना तो सामान नहीं है

जितने महँगे गत्ते हैं

जितनी तनख़्वाह मिलती है

उस से ज्यादा भत्ते…

Continue

Added by अजय गुप्ता 'अजेय on May 23, 2025 at 12:15pm — 8 Comments

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है

पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता है

दिल टूट गया है- मेरा था, आना न कोई समझाने को,

नुक़सान में अपने ख़ुश हूँ मैं, क्या और किसी का जाता है

संतोष सहज ही मिल जाए, तो कद्र नहीं होती इसकी,

संतोष की क़ीमत वो जाने, जो चैन गँवा कर पाता है

आज़ाद परिंदे पिंजरे में, जी पाएँ न पाएँ क्या मालूम,

जो धार से पीते है उनको,…

Continue

Added by अजय गुप्ता 'अजेय on May 15, 2025 at 6:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.

ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा,

मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा.

.

इश्क़ के रस्ते पर चलना है तेरी मर्ज़ी; लेकिन सुन

इस रस्ते को श्राप मिला है राही पगला जाएगा.

.

उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो तो

ज़ख़्म हमारे सीते सीते दर्ज़ी पगला जाएगा.  

.

उस को समुन्दर जैसी छोटी मोटी जगहें भाती हैं

इन आँखों में आएगा तो पानी पगला जाएगा.

.

जिससे बदला लूँगा उस को इतना याद करूँगा मैं

मेरे नाम की लेते लेते…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 15, 2025 at 2:59pm — 16 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service