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ग़ज़ल-- मेरे हँसने हँसाने पे शक़ है उसे

212  212  212  212
मेरे हँसने हँसाने पे शक़ है उसे
बेव़जह मुस्कुराने पे शक़ है उसे
.................
अलव़िदा कह गया जाता-जाता मग़र
आज़तक भूलपाने पे शक़ है उसे
....................
हर किसी से करूँ ज़िक्र मैं यार का
पर व़फायें निभाने पे शक़ है उसे
...................
कब से तनहाई दुल्हन बनी है मेरी 
पर तुझे भूल जाने पे शक़ है उसे
.................
आँसुओं से समन्दर भी मैंने भरा
मेरे आँसू बहाने पे शक़ है उसे


उमेश कटारा 
मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 30, 2015 at 1:00am

आदरणीय उमेश कटारा जी खुबसूरत ग़ज़ल हुई है दिल से दाद कुबूल फरमाए 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 29, 2015 at 9:00pm

//अलव़िदा कह गया जाता-जाता (जाते - जाते) मग़र
आज़तक भूलपाने पे शक़ है उसे//

सुन्दर शेर,

अंतिम शेर विशेष रूप से सराहनीय है, बधाई स्वीकार करें आदरणीय कटारा साहब.

Comment by Shyam Mathpal on January 29, 2015 at 8:18pm

Priya Katara ji,

Kab se nanhai dulhan hai meri.... Kya jazbaat hain..... bahut sundar rachna ke liye badhai swikar karain.

Comment by umesh katara on January 29, 2015 at 7:48pm

बहुत शुक्रिया श्रीlaxman dhami जी

Comment by umesh katara on January 29, 2015 at 7:47pm

बहुत शुक्रिया श्रीDr. Vijai Shanker जी

Comment by umesh katara on January 29, 2015 at 7:47pm

बहुत शुक्रिया श्रीडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी

Comment by umesh katara on January 29, 2015 at 7:46pm

बहुत शुक्रिया श्रीvijay जी

Comment by umesh katara on January 29, 2015 at 7:46pm

बहुत शुक्रिया श्री Hari Prakash Dubeyजी

Comment by umesh katara on January 29, 2015 at 7:45pm

   बहुत शुक्रिया श्री gumnaam pithoragarhi जी

Comment by umesh katara on January 29, 2015 at 7:44pm

बहुत शुक्रिया श्री शिज्जु "शकूर" जी

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