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All Blog Posts Tagged 'ग़ज़ल' (726)

अब समझ में नहीं आरही बेरुख़ी..

बह्र -212-212-212-212

मैने कह तो दिया जिंदगी आपकी।।

अब समझ में नहीं आ रही बेरुख़ी ।।

धड़कनें दिल की अपनी जवां गिन कहो।

क्या  बदलती न  मेरे लिए आज भी।।

आप समझें मुझे गर खिलौना न गम।

मुझको स्वीकार है ना समझ आशिक़ी।।

प्यार अहसास जुल्मों सितम रख लिए।

आगे चलकर मिले न मिले यह सभी।।

जिसकी रग में मुहब्बत की स्याही बहे।

वो कलम क्या बगावत लिखेगी कभी।।

कितना छांटो या काटो या मोड़ो…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on February 23, 2018 at 8:30am — 3 Comments

बन गया तुम्हारी याद हूँ मैं/ग़ज़ल

कुछ कह न सकूं राहे दिल पर बरबाद हूँ या आबाद हूँ मै ।

रहती है तेरी याद मुझे या खुद ही तेरी याद हूँ मै ।

 

ठुकराया भी तुमसे न गया अपनाया भी तुमसे न गया,

उल्फत के दर फरियादी की इक टूटी सी फरियाद हूँ मै ।

मैं जिस्म हूँ कोई माटी का इस जिस्म की जान तुम्ही तो हो,

कुछ भी न तुम्हारे पहले था कुछ भी न तुम्हारे बाद हूँ मै ।

ये दर्दे जुदाई भी तेरी ये इश्के खुदाई भी तेरी,

तेरे गम में गमगीन फिरूँ तेरे मद…

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Added by Neeraj Nishchal on February 12, 2018 at 12:30am — 2 Comments

स्वप्न का जो नाभिकी ये संलयन प्रारम्भ है----ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

स्वप्न का जो नाभिकी ये संलयन प्रारम्भ है

क्या किसी तारे का फिर से नव सृजन प्रारम्भ है

इस जगत को श्रेष्ठतम रचना समर्पित कर सकूँ

प्रति निशा मसि शब्द निद्रा का हवन प्रारम्भ है

मन-जगत घर्षण से अंतस में अनल जो है प्रकट

भावनाओं का उसी से आचमन प्रारम्भ है

लेखनी नें स्वयं से संकल्प इक धारण किया

एकता के भाव का सो संवहन प्रारम्भ है

चक्षुओं पर जो लगा कर घूमते चश्मा उन्हें

ताप…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2018 at 5:07pm — 14 Comments

जाने सूरज कब निकले है वक्त अभी रुसवाई का------गज़ल

22 22 22 22 22 22 22 2

नैन में रैन गँवाए जाऊँ, वक्त पहाड़ जुदाई का

जाने सूरज कब निकले, है वक्त अभी रुसवाई का

उनको कोई ग़रज़ नहीं जो पूछें हाल हमारा भी

कोई दूजी वज्ह नहीं, परिणाम है कान भराई का…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 9, 2018 at 4:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल - घाट पर सोया मिलूँगा ये बता देता हूँ मैं

2122 2122 2122 212

आज अपना सारा ईगो ही जला देता हूँ मैं

बर्फ़ रिश्तों पर जमी उसको हटा देता हूँ मैं

मेरे होने की घुटन तुमको न हो महसूस अब

ज़िन्दगी खोने का खुद को हौसला देता हूँ मैं

नाम दूँ बदनामियाँ दूँ, मेरे वश में है नहीं

सो मेरे होठों को चुप रहना सिखा देता हूँ मैं

तेरे चहरे पर शिकन संकोच अब आए नहीं

इसलिए सौगात में अब फ़ासला देता हूँ मैं

कुछ नहीं बस हार इक ला कर चढ़ा…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 2, 2018 at 9:00am — 22 Comments

ग़ज़ल : अब दवाओं का नहीं मुझ पे असर होने को है

अरकान : 2122 2122 2122 212

एक तरफ़ा इश्क़ मेरा बेअसर होने को है

ख़त्म यानी ज़िन्दगी का ये सफ़र होने को है

कहने को तो सर पे सूरज आ गया है दोस्तो

ज़िन्दगी में पर हमारी कब सहर होने को है

हर किसी ने हाथ में पत्थर उठाये देखिये

और फिर उनका निशाना मेरा सर होने को है

आपको चाहा था मैंने बेतहाशा टूट कर

अब यही तकलीफ़ मुझको उम्र भर होने को है

करना है कुछ आपको तो बस दुआएँ कीजिए

अब दवाओं का कहाँ मुझ पे असर होने को…

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Added by Mahendra Kumar on December 26, 2017 at 10:00pm — 18 Comments

दामन को तीरगी से बचाते चले गए - सलीम रज़ा रीवा

221 2121 1221 212 

दामन को तीरगी से बचाते चले गए

ईमाँ की रोशनी में  नहाते चले गए

 -

हम दर-बदर की ठोकरे खाते चले गए

फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए

 -

कोशिश तो की भंवर ने डुबोने की बारहा

हम कश्ती-ए-हयात बचाते चले  गए

 -

रुसवाईयों के डर से कभी बज़्में नाज़ में

हंस-हंस के दिल का दर्द छुपाते चले गए

 -

अपना रहा ख़्याल न कुछ होश ही रहा

आँखों में उनकी हम तो समाते चले गए

 -

करता है जो सभी के मुक़द्दर का…

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Added by SALIM RAZA REWA on December 5, 2017 at 6:00pm — 16 Comments

जिंदगी तुझ पर ये दिल भी, कर गया कुर्बान क्यों?

बेखब़र क्यों हो गया तू?   हो  गया  अनजान  क्यों?

ज़िंदगी तुझ पर ये दिल भी, कर गया कुरबान क्यों?

बेबसी  कुछ  भी  नहीं  थी,  जिंदगी  के   दरमियाँ,

चार दिन का बन गया फिर, तू मिरा महमान क्यों?

पूछती   है  हाल …

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Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on December 1, 2017 at 8:30pm — 4 Comments

छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे - सलीम रज़ा रीवा

212 212 212 212

छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे

बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे

 -

चाँद भी देख कर उनको शरमाएगा 

मेरे महबूब जिस दम संवर…

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Added by SALIM RAZA REWA on November 20, 2017 at 10:00am — 15 Comments

सबसे छोटा क़ाफ़िया और सबसे बड़ी रदीफ़ पर एक और ग़ज़ल - सलीम रज़ा रीवा



212 212 212 212, 212 212 212 212

-

जब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी /

लब तुम्हारी महब्बत में खो…

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Added by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 9:00am — 21 Comments

हमेशा जिसने मेरे साथ बस जफ़ा की है-ग़ज़ल

हमेशा जिसने मेरे साथ बस जफ़ा की है

उसी के वास्ते दिल ने मेरे दुआ की है



शराब लाने में ताख़ीर क्यों भला की है

ये इंतज़ार की शिद्दत भी इंतहा की है



तुम्हारे शेर से बेहतर हमारे शेर कहाँ

कि शेर ग़ोई की हमने तो इब्तदा की है



हर एक लफ्ज़ संवर जाये शेर के मानिंद

किसी ने आज ख़ुदा से इल्तजा की है



बड़ी कशिश है मेरे यार तेरे जलवों में

इसी लिए तो मेरे दिल ने भी खता की है



क़सम जो खाई है मजबूर हो के उल्फत में

क़सम तुम्हारी नहीं ये क़सम… Continue

Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on November 10, 2017 at 10:53pm — 2 Comments

जैसे चमन को फूल कली ताज़गी मिले - सलीम रज़ा रीवा

-221 2121 1221 212

जैसे चमन को फूल कली ताज़गी मिले-

वैसे ही जिंदगी तुम्हें महकी हुई मिले  



ये है दुआ तुम्हारा मुकद्दर  बुलंद …

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Added by SALIM RAZA REWA on November 6, 2017 at 11:00am — 8 Comments

तेरे आने से धुंआ छँटना ही था--- पंकज कुमार मिश्र, गजल

2122 2122 212

धीरे धीरे फासला घटना ही था
हौले हौले रास्ता कटना ही था

एक भ्रम का कोई पर्दा अब तलक
मन पे अपने था पड़ा, हटना ही था

ख़ाहिशें हैं जब मेरी तुमसे ही तो
लब से तेरे नाम को रटना ही था

हर तरफ़ है लोभ प्रेरित आचरण
चित ये जग से तो मेरा फटना ही था

किस तरफ जाता कुहासा था घना
तेरे आने से धुंआ छँटना ही था

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 5, 2017 at 10:35pm — 6 Comments

जिधर देखो उधर मेहनत कशों की - सलीम रज़ा रीवा

1222 1222 1222 1222

-

जिधर देखो उधर मिहनत  कशों की ऐसी हालत है-

ग़रीबों  की  जमा अत पर अमीरों की क़यादत…

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Added by SALIM RAZA REWA on November 1, 2017 at 9:30am — 15 Comments

लम्बे रदीफ़ की ग़ज़ल (कज़ा मेरी अगर जो हो)

गुणीजनों के सुझाव के हेतु।

काफ़िया=आ

रदीफ़= *मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर*

1222×4



खता मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर,

सजा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।



वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना,

वफ़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।



नशा ये देश-भक्ति का, रखे चौड़ी सदा छाती,

अना मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।



रहे चोटी खुली मेरी, वतन में भूख है जब तक,

शिखा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की… Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 22, 2017 at 11:11am — 16 Comments

सब कुछ उपलब्ध है दुकानों में (ग़ज़ल)

2122 1212 22



सब हैं मसरूफ़ अब उड़ानों में

देखिये भीड़ आसमानों में



प्यार? ईमान? दोस्ती? जी हाँ

सब कुछ उपलब्ध है दुकानों में



भुखमरी,बालश्रम,अशिक्षा..सब

मिट चुके हैं फ़क़त बयानों में



पत्थरों से उन्हीं की यारी है

जो हैं शीशे-जड़े मकानों में



सच्चे हीरे की है तलाश अगर

जा! भटक कोयले की खानों में



बच्चे लड़-भिड़ के खेलने भी लगे

गुफ़्तगू बंद है सयानों में



फ़र्श से अर्श पर मैं जा पहुँचा

कितनी ताक़त है देखो… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on September 26, 2017 at 8:06pm — 14 Comments

हुआ क्या आपको जो आप कहती बढ़ गयी धड़कन

अजब सी है जलन दिल में ये कैसी है मुझे तड़पन

उसे अहसास तो होगा बढ़ेगी दिल की जब धड़कन'

दिखा है जबसे उसकी आँखों में वीरान इक सहरा

मुझे क्या हो गया जाने कहीं लगता नहीं है मन

गले को घेर बाँहों से बदन करती कमाँ जब वो'

मुझे भी दर्द सा रहता मेरा भी टूटता है तन

वो रो लेती पिघल जाता हिमालय जैसा उसका गम

मगर सूरज के जैसे जलता रहता है मेरा तन मन

'नज़र मिलते ही मुझसे वो झुका लेते हैं यूँ गर्दन

ये मंज़र देख उठती है लहर…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2017 at 4:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल - वक़्त कुछ ऐसा मेरे साथ गुज़ारा उसने

बह्र : 2122-1122-1122-112/22

फिर मुहब्बत से लिया नाम तुम्हारा उसने

वार मुझ पर है किया कितना करारा उसने

मेरी कश्ती को समन्दर में उतारा उसने

और फिर कर दिया तूफ़ाँ को इशारा उसने

डूबते वक़्त दी आवाज़ बहुत मैंने मगर

बैठ कर दूर से देखा था नज़ारा उसने

आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही

मुझ में ख़ंजर ये उतारा है दुबारा उसने

ग़ैर भी कोई गुज़ारे न किसी ग़ैर के साथ 

वक़्त…

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Added by Mahendra Kumar on September 26, 2017 at 10:00am — 30 Comments

आएं न आएं वो लेकिन - सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 22 22 2

.........................................

आएं न आएं वो  लेकिन हम आस लगाए .बैठे हैं 

दिन ढलते ही शमए मुहब्बत घर में जलाए बैठे हैं 

..

आख़िर दिल की बात ज़ुबाँ तकआये तो कैसेआये 

अपनी  ख़ामोशी  में  वो  सब  राज़  छुपाये बैठे हैं 

..

हैरत है जो प्यार मुहब्बत से ना वाकिफ़ हैं यारो 

वह  इल्ज़ाम दग़ाबाज़ी का मुझ पे लगाए  बैठे हैं

..

कौन है अपना कौन…

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Added by SALIM RAZA REWA on September 24, 2017 at 10:00am — 25 Comments

खोया रहता हूँ मैं जिनकी यादों में - सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 2

............................

खोया रहता हूँ मैं जिनकी यादों में

उनकी  ही खुशबू है मेरी साँसों में

.

दिल के हाथों था मजबूर बहुत वरना

आता कब  मैं  उनकी मीठी बातों में

.

उनको खो देने का भी अहसास हुआ

रंग-ए-हिना जब देखा उनके हाथों में

.

खो कर दुनिया आख़िर उनको पाया है

यूँ  ही  नहीं  है नाम मेरा अफसानों में

.

हर शय में उनका ही चेहरा दिखता है

उनके  ही  सपने  हैं मे री  आँखों …

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Added by SALIM RAZA REWA on September 21, 2017 at 8:30am — 7 Comments

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