For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जैसे चमन को फूल कली ताज़गी मिले - सलीम रज़ा रीवा

-221 2121 1221 212

जैसे चमन को फूल कली ताज़गी मिले-
वैसे ही जिंदगी तुम्हें महकी हुई मिले  

ये है दुआ तुम्हारा मुकद्दर  बुलंद  हो-
तुमको तमाम उम्र ख़ुशी ही ख़ुशी मिले
-
मिलता था जो ख़ुलूस-ओ-महब्बत से हर घड़ी-
मिलता है आज जैसे कोई अजनबी मिले

बैठा हुआ हूँ उनकी गली में ये सोच कर- 
मुझको कभी झलक तो मेरे यार की मिले
-
या रब मेरे सनम का ना चेहरा उदास हो- 
उसको तमाम उम्र ख़ुशी ही ख़ुशी मिले
-
मुझको किसी भी शै कि नहीं आरज़ू मगर- 
ज़ुल्फों की छाँव मुझकॊ सदा आपकी मिले 
-
बू-ए-चमन का लुत्फ़ भला कैसे हो रज़ा -
मुझको मिले जो फूल सभी कागज़ी मिले  
__________
मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 663

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on November 11, 2017 at 5:36pm
आ. तेजवीर सिंह जी,
ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया,
Comment by TEJ VEER SINGH on November 9, 2017 at 11:21am

हार्दिक आभार आदरणीय सलीम राज़ा रेवा जी।बेहतरीन गज़ल।

मिलता था जो ख़ुलूस-ओ-महब्बत से हर घड़ी-
मिलता है आज जैसे कोई अजनबी मिले

Comment by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 8:25am
आ. बृजेश जी,
ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 8:25am
आ. गजेंद्र जी,
ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 6, 2017 at 9:33pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय हर एक शेर बेहद उम्दा..सादर
Comment by Gajendra shrotriya on November 6, 2017 at 7:37pm
अच्छी कहन पे अशआर साधने के लिए आपको हार्दिक बधाई आ०सलीम रजा साहब। मुझे लगता है इस रदीफ और काफिये के साथ आप और भी बेहतर अशआर कह सकते हैं।सादर।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 6, 2017 at 4:25pm
आदरणीय योगराज जी,
आपको इस ग़लती से अवगत कराने के लिए दिली शुक्रिया,
मतला सुधार कर लिया जाएगा..

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 6, 2017 at 4:20pm

ताज़गी और ज़िन्दगी में व्यंजन "ग" हर्फ़-ए-रवी है साहिब! अब इसे अंत तक निभाना पड़ेगा.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service