For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 1222 1222

मिला था जो हमें पल खो दिया हमने
मुलायम नर्म मखमल खो दिया हमने ।
*
बचा रख्खे हैं यादों के नुकीले शर
मज़े से झूमता कल खो दिया हमने ।
*
उड़ा दी खुशबुएँ जो साथ रहती थीं
गँवा दी उम्र संदल खो दिया हमने ।
*
मुहब्बत नाम से हर दिन जिहालत की
सुकूँ था एक आँचल खो दिया हमने ।
*
सवालों पर सवालों की थीं बौछारें
जवाब आए तो संबल खो दिया हमने ।
*
चली है जब हवा थर्रा गया आलम
बरसता मस्त बादल खो दिया हमने ।
*
किनारा छू लिया फिर मोड़ दी कशती
हुआ जो भ्रम धरातल खो दिया हमने ।  
.
मौलिक/अप्रकाशित.

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 3, 2021 at 6:38am

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 30, 2021 at 9:55pm

आदरणीय अशोक भाई साहब, हिन्दी ग़ज़लों की तासीर ही विशिष्ट हुआ करती है. मुलायम नर्म मलमल की अनुभूति से विगत के पलों का स्मरण किया जाना रोचक तो है ही,अभिनव भी है. अलबत्ता बादल वाले शेेर में विशेषण 'मस्त' पर कुछ और समय दिया जा सकता था. 

किंतु, अधोलिखित शेर पर विशेष बधाई स्वीकार करें : 

सवालों पर सवालों की थीं बौछारें
जवाब आए तो संबल खो दिया हमने 

हार्दिक बधाई. 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 30, 2021 at 9:03pm

आदरणीय विजय निकोर साहब सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार. सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 30, 2021 at 9:02pm

प्रस्तुत ग़ज़ल पर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय दण्डपाणी नाहक साहब .सादर

Comment by vijay nikore on September 30, 2021 at 12:49pm

गज़ल हो तो ऐसी हो,  आनन्द आ गया

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 28, 2021 at 12:59pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत ग़ज़ल पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से आभार. समय-समय पर आप से मिले सहयोग और सुझावों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 28, 2021 at 12:56pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब सादर नमस्कार, बहुत-बहुत आभार. मेरी प्रस्तुत ग़ज़ल पर आपके  कसावट, अस्पष्टता अरु रब्त सम्बंधित बहुत उत्तम सुझाव हैं. मैं अवश्य ही इस पर ध्यान देकर अपनी रचना में सुधार का प्रयास करूँगा. आपके इस महती कार्य के लिए आपका हृदय से धन्यवाद. सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 27, 2021 at 4:36pm

जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, कुछ अशआर पर अपनी राय का इज़हार करने की जसारत कर रहा हूँ। 

महब्बत नाम से हर दिन जिहालत की

सुकूँ था एक आँचल खो दिया हमने. - इस शे'र के ऊला मिसरे का शिल्प कसावट चाहता है सानी मिसरा भी मामूली बदलाव का हामिल है। चाहें तो शे'र यूँ कर सकते हैं-

"हवस को ही महब्बत मान बैठे हैं 

सुकूँ का अब वो आँचल खो दिया हमने" 

सवालों पर सवालों की थीं बौछारें

जवाब आए तो संबल खो दिया हमने. - इस शे'र का भाव स्पष्ट नहीं है चाहें तो ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं - 

"सवालों की हमीं ने की थीं बौछारें" 

चली है जब हवा थर्रा गया आलम

बरसता मस्त बादल खो दिया हमने. - इस शे'र के मिसरों में रब्त नहीं है, ऊला का भाव भी स्पष्ट नहीं है चाहें तो ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं - 

"हवा बारिश उड़ाकर ले गई फिर से" 

सादर।

Comment by Samar kabeer on September 27, 2021 at 4:03pm

जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service