For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे - सलीम रज़ा रीवा

212 212 212 212

छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे
बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे

 -

चाँद भी देख कर उनको शरमाएगा 
मेरे महबूब जिस दम संवर जाएँगे

 -
बन संवर के उन्हें आज आने तो दो 
बज़्‍म में सब के चहरे उतर जाएँगे

 -

बंदा परवर अगर आप आएँ इधर
बन के गुल राह में हम  बिखर जाएँगे 

 -

इश्क़ की राह मुश्क़िल बहुत है मगर 

बे - ख़तर दोस्तों हम गुज़र जाएँगे

 -

तूने   छोड़ा अगर साथ मेरा कभी 
हिज्र मे तेरे घुट घुट के मर जाएँगे

 -

याद हमको  भी रख्खेगी दुनिया रज़ा 
काम ऐसा भी इक रोज़ कर जाएँगे

  -

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on January 3, 2018 at 7:37pm
आ. विजय जी,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया
Comment by vijay nikore on November 23, 2017 at 11:36am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल। हार्दिक बधाई।

Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 4:54pm
जनाब आरिफ साहब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया महब्बत सलामत रहे.
Comment by Mohammed Arif on November 21, 2017 at 12:15pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब,
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र लाजवाब । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:16am
आ. सुरेंद्र नाथ जी,
ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:14am
जनाबे मुहतरम समर साहिब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया,
आपकी महब्बत के बिना ग़ज़ल अधूरी होती.. अपना प्यार नाचीज़ पर बनाए रखें...
Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:11am
आली जनाब तस्दीक अहमद साहिब,
आपकी महब्बत और मशविरे का शुक्रिया यूँ ही महब्बत बनाए रखें,
Comment by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 9:48pm
तूने छोड़ा अगर साथ मेरा कभी
हिज्र मे तेरे घुट घुट के मर जाएँगे
वऐश वाह,
आद0 सलीम भाई जी मतले से लेकर मकते तक बेह्तरीन ग़ज़ल कही आपने। दिल से हार्दिक बधाई निवेदित है आपको।
Comment by Samar kabeer on November 20, 2017 at 9:10pm
बहुत ख़ूब वाह, इस तब्दीली से ग़ज़ल में निखार आ गया ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 20, 2017 at 9:07pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या है अपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले…"
9 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
27 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
40 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service