ओबीओ को समर्पित एक क़त'आ
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जब से तेरी मेहरबानी हो गई
ख़ूबसूरत ज़िन्दगानी हो गई
हम हुए तेरे दिवाने इस तरह
जिस तरह 'मीरा' दिवानी हो गई
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फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
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जिंदगी को गुनगुना कर चल दिए
मौत को अपना बना कर चल दिए
oo
उम्र भर की दोस्ती जाती रही
आप ये क्या गुल खिलाकर चल…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on April 2, 2019 at 10:00am — 6 Comments
1212 1222 1212 22
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अदा में शोखियाँ मस्ती गुलाबी रंग धरे
ये कौन आया है महफ़िल में चाँदनी पहने
ये हुस्न है या कोई दरिया ही चला आया
है दिल डुबोने को गालों पे इक भँवर ले के
ठुमकने लगते हैं सपने सलोने सरगम पर
वो खिलखिला के हँसे तो लगे सितार बजे
नज़र उसी पे ही सबकी टिकी है महफ़िल में
ये बात और है उसकी निगाहें बस मुझ पे
ज़रा सा छू ने पे छुई मुई समेटे ज्यूँ खुद को
नज़र पड़े तो वो खुद को समेटती…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 17, 2019 at 7:30pm — 4 Comments
1222 1222 2121
तेरे रुख़्सार हैं या दहके ग़ुलाब
ये तेरी ज़ुल्फ़ है या तेरा हिज़ाब
हटा के ज़ुल्फ़ का पर्दा, उँगलियों से
बिखेरो चाँदनी मुझ पर माहताब
करीब आ तो, निगाहों के पन्ने पलटूँ
मैं पढ़ना चाहूँ तेरे मन की किताब
महज़ चर्चा तुम्हारा, बातें तुम्हारी
इसे ही सब कहें, चाहत बे-हिसाब
ज़माना तुहमतें चाहे जितनी भी दे
ग़ज़ल पंकज की, है तुझको इंतिसाब
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कठिन शब्दों के…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 8, 2019 at 8:24am — 2 Comments
1212 1222 1212
हमारे वार से जब अरि दहल गए
क्यूँ जाने लोग कुछ अपने ही जल गए
ख़बर ख़बीस के मरने की क्या मिली
वतन में कईयों के आँसू निकल गए
वो बिलबिला उठे हैं जाने क्यूँ भला
जो लोग देश को वर्षों हैं छल गए
नसीब-ए-मुल्क़ पे उँगली उठाए हैं
सुकून देश का जो खुद निगल गए
मिलेगा दण्ड ए दुश्मन ज़रु'र
वो और ही थे, जो तुझ पर पिघल गए
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 5, 2019 at 4:30pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
मीडिया भारत का या तो वायरस यक बन गया
दीमकों के साथ मिलकर या के दीमक बन गया
मीडिया का काम था जनता की ख़ातिर वो लड़े
किन्तु वो सत्ता के उद्देश्यों का पोषक बन गया
दोस्तों टी वी समाचारों का चैनल त्यागिए
क्योंकि उनके वास्ते हर दर्द नाटक बन गया
क्या दिखाना है, नहीं क्या क्या दिखाना चाहिए
कुछ न, जाने मीडिया, सो अब ये घातक बन गया
ज़ह्र भर कर शब्द में, वो वार जिह्वा से…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 3, 2019 at 10:00pm — 9 Comments
बह्र-
2122-2122-1221-222
सुन! जो उनसे हो मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।
दरमियाँ फिर हो वही बात जाये तो क्या होगा।।
पर कहीं वो रूठ कर नजरें अपनी घुमा ली तो ।
बेबजह यूँ इश्क जजबात जाये तो क्या होगा।।
छोड़ उसको फिर न ये दर्द उलफत का देना अब।
रो के गर उसकी भी ये रात जाये तो क्या होगा।।
जानते हो ,वो यूँ मीलों सफर के जैसा है।
दो कदम चल के मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।
मुझसे वो अच्छे से मिलना नहीं चाहती…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 7, 2019 at 6:37pm — 4 Comments
बह्र : 1222 1222 122
तुम्हारे शहर से मैं जा रहा हूँ
बिछड़ने से बहुत घबरा रहा हूँ
वहाँ दुनिया को तू अपना रही है
यहाँ दुनिया को मैं ठुकरा रहा हूँ
उठा कर हाथ से ये लाश अपनी
मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ
तुम्हारे इश्क़ में बन कर मैं काँटा
सभी की आँख में चुभता रहा हूँ
नहीं मालूम जाना है कहाँ पर
न जाने मैं कहाँ से आ रहा हूँ
मुहब्बत रात दिन करनी थी तुमसे
तुम्हीं से…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:51pm — 8 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22/112
मैंने देखा है कि दुनिया में क्या क्या होता है
मुझसे मत बोलिए मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
इश्क़ ही सबसे बड़ा ज़ुर्म है इस दुनिया में
ये ख़ता कर लो तो हर शख़्स ख़फ़ा होता है
जो गलत करते हैं, वो लोग सही होते हैं
और जो अच्छा करे तो वो बुरा होता है
मैं भी इस ज़ख़्म को नासूर बना डालूँगा
दर्द बतलाओ मुझे कैसे दवा होता है
कभी दिखता था ख़ुदा मुझको भी मेरे अन्दर
और अब इस पे भी…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:30am — 10 Comments
बह्र
1222-1222-1222-12
चलो हमदर्द बन जाओ, ख़यालों की तरह।।
कोई खुश्बू ही बिखराओ गुलाबों की तरह।।
बहुत थक सा गया हूँ जिंदगी से खेल कर।
कजा आगोश में भर लो दुशालों की तरह।।
मुझे बंजर में नफरत से कहीं भी फेंक दो।
वही उग आऊंगा मैं भी, अनाजों की तरहा।।
मुझे पढ़ना अगर चाहो तो पढ़ लेना यूँ ही ।
हुँ यू के जी के बस्ते में, किताबों की तरह।।
मेरी तुलना न कर उल्फ़त, गुलों की बस्ती' से।
मैं काफिर मैकदे में…
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 20, 2019 at 7:00am — 1 Comment
बह्र 1222-1222-1222-1222
बता हर सिम्त तेरा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुझे लेकर अकेला बनके मुझमे कौन रहता है।।
अगर अब मुस्कुराते हो मेरी जद्दोजहद से तुम।
तो बोलो आज तुम सा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुम्हारा प्यार, तुम सा यार तेरी यादें वो सारी।
भुला हर कुछ अवारा बनके मुझमे कौन रहता है।।
गरीबी के दिये सा गर्दिशों में भी मैं जगमग हूँ।
मेरे घर अब उजाला बन के मुझमें कौन रहता है।।
बहा कर खत तेरे सारे यूँ गंगा के…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on January 17, 2019 at 6:35pm — 2 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
अशआर मेरे जिनको सुनाने के लिए हैं
वो लोग किसी और ज़माने के लिए हैं
कुछ लोग हैं जो आग बुझाते हैं अभी तक
बाकी तो यहाँ आग लगाने के लिए हैं
यूँ आस भरी नज़रों से देखो न हमें तुम
हम लोग फ़क़त शोर मचाने के लिए हैं
हर शख़्स यहाँ रखता है अपनों से ही मतलब
जो ग़ैर हैं वो रस्म निभाने के लिए हैं
अब क्या किसी से दिल को लगाएँगे भला हम
जब आप मेरे दिल को दुखाने के लिए…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 4:00pm — 14 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22
कैसे बनता है कोई शख़्स तमाशा देखो
आओ बैठो यहाँ पे हश्र हमारा देखो
कैसे हिन्दू को किया दफ़्न वहाँ लोगों ने
एक मुस्लिम को यहाँ कैसे जलाया देखो
जिस तरह लूटा था दिल्ली को कभी नादिर ने
उसने लूटा है मेरे दिल का ख़ज़ाना देखो
आदमी वो नहीं होता जो दिखा करता है
जो नहीं दिखता हो जैसा उसे वैसा देखो
नूर से जल के, फ़लक से कोई साज़िश करके
चाँद को कैसे सितारों…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 13, 2019 at 7:30pm — 18 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था
दुनिया की तरफ़ आपको जाना ही नहीं था
कानों में यहाँ रूई सभी बैठे हैं रख के
ऐसे में तुम्हें शोर मचाना ही नहीं था
खेतों में लहू देख के करते हो शिकायत
हथियार ज़मीनों में उगाना ही नहीं था
ये कौन जगह है कि जहाँ होश में सब हैं
हम रिन्द हैं हमको यहाँ लाना ही नहीं था
ताउम्र उसी शहर में ही भटका किया मैं
रहने को जहाँ कोई ठिकाना ही नहीं…
Added by Mahendra Kumar on January 4, 2019 at 8:00pm — 12 Comments
बह्र : 2122 2122 2122
याद आ आ कर तुम्हारी, जानते हो?
रात भर मुझको नचाती, जानते हो?
प्यार करने वाला होता है जमूरा
इश्क़ होता है मदारी, जानते हो?
शाइरी में चाँद को कहते हैं सूरज
आग को कहते हैं पानी, जानते हो?
हर किसी को मैं समझ लेता हूँ अपना
मुझ में है ये ही ख़राबी, जानते हो?
बन्द कमरे की तरह अब हो गया हूँ
मुझमें दरवाज़ा न खिड़की,…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 1, 2019 at 2:30pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
बे-ख़्वाब आँखों में दबे लम्हात से अलग
गुज़री है ज़िन्दगानी अलामात से अलग
दस्तार रह गई है रवाजों के दरमियाँ
पर इश्क़ खो गया है रिवायात से अलग
जीने की चाह में हुआ बंजारा आदमी
बस घूमता दिखे है मक़ामात से अलग
किस रिश्ते की दुहाई दूँ अहल ए जहाँ को मैं
है क्या यहाँ पे कहिये फ़सादात से अलग
वो वक़्त और ही था कि मौसम बदलते थे
मौसम रहा न अब कोई बरसात से अलग
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2018 at 1:26pm — 13 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 112/22
अश्क़ आँखों में कभी भूल के लाते भी नहीं
और बर्बादियों का शोक मनाते भी नहीं
पूछ कर ज़िन्दगी में लोग जो आते भी नहीं
इतने बेदर्द हैं जाएँ तो बताते भी नहीं
वो ख़ुशी थी कि जिसे रास नहीं आए हम
और वो ग़म हैं जो हमें छोड़ के जाते भी नहीं
लोग चाहत का गला घोंट तो देते हैं मगर
दफ़्न करते भी नहीं और जलाते भी नहीं
जाइए आपका मैख़ाने में क्या काम है जब
ख़ुद भी पीते नहीं औरों को पिलाते भी…
Added by Mahendra Kumar on October 26, 2018 at 11:52am — 21 Comments
बह्र - 1222-122-2212-22
कोई यूँ खुश हुआ हो अपना खुदा पाकर।।
बहुत पछताएंगे वो मेरा पता पाकर।।
सफर चलना है कैसे ,लेकर चलन कैसा।
उन्हें अहसास होगा ,आबोहवा पाकर।।
वो अपनी ज़द में ही अपना आशियाँ चुन लें ।
कहाँ होता है आदम से बा वफ़ा पाकर।।
मुझे अब मुल्क़ से ये मजहब ही निकालेगा ।
बहुत खुश है मुझे यह जलता हुआ पा कर ।।
मैं अपनी आरजू अब अपना कहूँ कैसे ।
ये तो खुश है मेरे बच्चों से दगा पा कर…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on October 18, 2018 at 7:29pm — No Comments
वक़्त आने दो ज़रा फ़िर न झुकूंगा देख लेना ।
एक दिन पत्थर पे पानी से लिखूंगा देख लेना ।
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मैं तेरे रहमोकरम की काफिरी करता नही हूँ ।
हूँ मुकम्मल एक तूफ़ां जब उडूँगा देख लेना ।
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हौसला रख चल पड़ा हूँ रौशनी लाने दिलों में ।
एक जुगनू सा अँधेरों से लड़ूँगा देख लेना ।
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रास्तों में हूँ यक़ीनन दूर मुझसे मंज़िलें, पर ।
चल रहा हूँ मंजिलों पर ही रुकूँगा देख लेना ।
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वक़्त का क्यावक़्त गुज़रेगा अँधेरी रात का भी ।
जगमगाता भोर का…
Added by रकमिश सुल्तानपुरी on October 17, 2018 at 3:00am — 4 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on October 7, 2018 at 11:06pm — 4 Comments
उनके आने से सांस चल रही है
वर्ना लगता था सांझ ढल रही है
अपनी किस्मत कहाँ थी ऐसी पर
जो मांगी थी दुआ फल रही है
हौसले भी थे और यकीं भी था
बुझने वाली थी शमा जल रही है
वक़्त का क्या है कुछ नहीं मालूम
दिक्क़त आजकल तो टल रही है
एक दिन ख़त्म होगी मायूसी
ऐसी उम्मीद दिल में पल रही है !!
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on September 20, 2018 at 4:57pm — 4 Comments
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