For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मुझसे मत बोलिए मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है

बह्र : 2122 1122 1122 22/112

मैंने देखा है कि दुनिया में क्या क्या होता है

मुझसे मत बोलिए मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है

 

इश्क़ ही सबसे बड़ा ज़ुर्म है इस दुनिया में

ये ख़ता कर लो तो हर शख़्स ख़फ़ा होता है

 

जो गलत करते हैं, वो लोग सही होते हैं

और जो अच्छा करे तो वो बुरा होता है

 

मैं भी इस ज़ख़्म को नासूर बना डालूँगा

दर्द बतलाओ मुझे कैसे दवा होता है

 

कभी दिखता था ख़ुदा मुझको भी मेरे अन्दर

और अब इस पे भी शक है कि ख़ुदा होता है

उम्र गुज़री है मेरी आदमी को पढ़ने में

वो नहीं पढ़ते जो चेहरे पे लिखा होता है

 

जिसके साये में हमें बैठ के भी धूप मिले

आदमी दुनिया में बस वो ही बड़ा होता है

 

वो किताबें जिन्हें दीवाने लिखा करते हैं

शहर में मेरे उन्हें पढ़ना मना होता है

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 752

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on February 1, 2019 at 1:33pm

'मैंने देखा है कि इस दुनिया में क्या होता है'

ये मिसरा ठीक है ।

'जो गलत करते हैं, वो लोग सही होते हैं'

इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'जो ग़लत करते हैं,वो लोग भले होते हैं'

आख़री शैर हटाना उचित होगा ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 31, 2019 at 9:26pm

आदरणीय Mahendra Kumar जी ,मैं इस्लाह के लायक तो अपने आप को नहीं समझ... शायरों को 'कि ' इस्तेमाल करते देखा है और मुझे भी यह सही लगा | हर संयुक्ताक्षर के लिए दो मात्रा ही उचित लगता है | ज्यों का इलाज शायरों ने जूँ में ढूँढ लिया है | हालाँकि ये सभी कंफ्यूजिंग है क्योंकि इनका प्रयोग करने पर भी लय में कोई रूकावट नहीं आती है | अगर उच्चारण के अनुसार ही ग़ज़ल कही जाये तो फिर ये बंधन होने नहीं चाहिए | लेकिन फिर शहर और शह्र ,अम्न और अमन उम्र और उमर की बात भी उठेगी | वो नहीं पढ़ते जो चेहरे पे लिखा होता है-इस शेर को ठीक से न समझने के लिए क्षमा चाहता हूँ | सादर नमन | 

Comment by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:48pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेन्द्र जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:48pm

सादर आदाब आदरणीय समर कबीर सर. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और बेशकीमती इस्लाह का हमेशा की तरह शुक्रगुजार हूँ. दो बिन्दुओं पर आपकी राय जानना चाहूँगा :

1. "मैंने देखा है कि इस दुनिया में क्या होता है" क्या मतले का यह ऊला सही रहेगा?

2. क्या "सहीह" और "मन'अ" वाले शेर ग़ज़ल से हटा देना चाहिए?

सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:44pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिगंबर नासवा जी. //कुछ शेर दुबारा गौर करना मांगते हैं// यदि आप खुल कर बताते कि किन अशआर पर गौर करना है तो आपका बेहद शुक्रगुजार रहता. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:43pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी. 

1. जहाँ तक मुझे पता है "या" और "क्यों" की मात्रा 1 ले सकते हैं "ज्यों" की नहीं. "क्या" के विषय में मुझे संशय है पर आदरणीय समर कबीर सर के जवाब से लगता है कि "क्या" की मात्रा 2 नहीं ली जा सकती.

2. //वो नहीं पढ़ते जो चेहरे पे लिखा होता है// इस (सानी) मिसरे में शाइर दूसरों को हिदायत दे रहा है कि चेहरे को कैसे पढ़ा जाता है जबकि इसके ऊला मिसरे में शाइर अपने बारे में कह रहा है. इसलिए यहाँ पर "पढ़ते" सही है. हाँ, यदि वह सानी मिसरे में भी अपने बारे में कह रहा होता तो यहाँ "पढ़ता" ही सही होता है.

ग़ज़ल में आपकी गहराई से शिरकत और कीमती इस्लाह का हृदय से आभारी हूँ. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on January 30, 2019 at 10:25pm

आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शेष तुरन्त जी और आद0 समर साहब ने बता दी हैं। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Samar kabeer on January 29, 2019 at 11:15am

जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले और छटे शैर के बारे में जनाब तुरंत जी कह चुके हैं ।

'जो गलत करते हैं, वो लोग सही होते हैं'

इस मिसरे में 'सही' शब्द का शुद्ध रूप है "सहीह"ग़ौर करें ।

'शहर में मेरे उन्हें पढ़ना मना होता है'

इस मिसरे में 'मना' शब्द लिया है,आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की सहीह शब्द है "मन'अ"।

Comment by दिगंबर नासवा on January 27, 2019 at 7:28pm

महेंद्र जी ... कुछ शेर दुबारा गौर करना मांगते हैं ... पर सोच मौलिक होना जरूरी है जोआपके पास है ... 

शिल्प उस्तादों के सानिध्य में निखरता रहेगा ... प्रयास जारी रखें ... निरंतर लिखें ... 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 27, 2019 at 5:29pm

लाजवाब अशआर हुए हैं जनाब Mahendra Kumar जी | दो जगह  शुबहा है कि सही है कि नहीं | (१) मैंने देखा है कि दुनिया में क्या क्या होता है(क्या को एक मात्रा में लेना क्या सही है ? मुझे तो बतलाया गया है ,या, क्या, ज्यों ,क्यों, को एक मात्रा में नहीं ले सकते )(२)

उम्र गुज़री है मेरी आदमी को पढ़ने में

वो नहीं पढ़ते जो चेहरे पे लिखा होता है( उम्र गुज़री है मेरी -के साथ- वो नहीं  पढ़ते होगा या पढता ? 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

ajay sharma shared a profile on Facebook
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service