सूरज बोला रात से, आना नदिया पास।
घूँघट ओढ़े मैं मिलूँ , मिल खेलेंगे रास । ।
गोद निशा रवि आ गया , सोया घुटने मोड़ ।
चन्दा भी अब चल पड़ा , तारा चादर ओढ़ । ।
पीड़ा वो ही जानता , खाए जिसने घाव ।
पाटन दृग रिसत रहे ,कोय न समझा भाव । ।
विरह मिलन दो पाट हैं, जानत हैं सब कोय ।
सबहि खुशी गम सम रहे, दुःख काहे को होय। ।
नदिया धीरे बह रही ; पुरवइया का जोर ।
चाँद ठिठोली कर रहा , चला क्षितिज जिस ओर । ।
बदरा घूँघट…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 23, 2015 at 8:00pm — 4 Comments
अपराधी सब एक हैं, धर्म कहाँ से आय|
सजा इन्हें कानून दे, करें न स्वयम उपाय||
कल तक जो थी मित्रता, आज न हमें सुहाय|
तूने छेड़ा है मुझे, अब खुद लियो बचाय||
सूनी सड़कें खौफ से, सायरन पुलिस बजाय|
बच्चे तरसे दूध को, माता छाती लगाय||
शहर कभी गुलजार था, धरम बीच क्यों आय|
कल तक जिससे प्यार था, फूटी आँख न भाय!!
पत्थर गोली गालियाँ, किसको भला सुहाय|
अमन चैन से सब रहें, फिर से गले लगाय ||
(मौलिक व अप्रकाशित)
जवाहर लाल सिंह
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 23, 2015 at 6:58pm — 7 Comments
राष्ट्र वाद पर हो रही, जाति वाद की मार ।
ज़हर घोलने के लिये, सहमत है सरकार ।।
ज़हर जाति का कर रहा, जनमत पूर्व प्रचार ।
भला नहीं आवाम का, डालेगी ये रार ।।
जनगणना के आंकड़े, नहीं राष्ट्र अनुकूल ।
भूल गये इतिहास क्यूँ , बंग भंग का मूल ।।
जांत पांत की धारणा, संख्या सोच अजीब ।
निर्धनता से जूझ कर , संभला कहां गरीब ।।
जाति प्रथा का नाश हो, सबकी इक पहचान ।
भारत के सब नागरिक, सारे है इन्सान…
ContinueAdded by Ravi Shukla on July 20, 2015 at 4:30pm — 8 Comments
भूले से मत कीजिये, नारी का अपमान
नारी जीवन दायिनी, नारी है वरदान II 1 II
माँ बनकर देती जनम, पत्नी बन संतान
जीवन भर छाया करे, नारी वृक्ष समान II 2 II
नारी भारत वर्ष की, रखे अलग पहचान
ले आई यमराज से, वापस पति के प्रान II 3 II
नारी कोमल निर्मला, होती फूल समान
वक्त पड़े तो थाम ले, बरछी तीर कमान II 4 II
नारी के अंतर बसे, सहनशीलता आन
ये है मूरत त्याग की, नित्य करे बलिदान II…
ContinueAdded by Sachin Dev on July 20, 2015 at 2:30pm — 13 Comments
बन कान्हा की बाँसुरी, अधरों को लूँ चूम
रस पी कान्हा प्यार का ,नशे संग लूँ झूम ।।
ऐसा तेरी प्रीत का ,नशा चढ़ा चितचोर
अधर चूम के बाँसुरी ,करे ख़ुशी से शोर ।।
बन कान्हा की बाँसुरी, खुद पर कर लूँ नाज
जन्म सफल होगा तभी ,छू लूँ उसकोआज ।।…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on June 26, 2015 at 10:36pm — 1 Comment
जीवन के जिस राग का अनुभव में था ताप l
बिन उसके जीवन वृथा, धन-वैभव या शाप ll
भय वश मैं झिझका रहा प्रेम न फटका पास l
गहरी नदिया पास थी अमिट और भी प्यास ll
मैं क्या जानूं उसे जो, छिप कर करता वार l
जीवन-रस अमृत सही, छलक रहा हो सार ll
कुछ तो फूटा है यहाँ, फैला है अनुराग l
बिन बदली भीगा बदन, ठंढी-ठंढी आग ll
यह सुगंध अनुराग की बढ़ा रही है चाह…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 24, 2015 at 6:00am — 8 Comments
दिवस तीस औ पक्ष दो, छह रितु बारह मास।
होली उत्सव को सभी, बता रहे हैं खास।१।
आता समता को लिए, होली का त्यौहार।
सारे जग को बांटता, नेह भरा उपहार ।२।
खुशियाँ खूब उलीचता, फाल्गुन पूनम रात।
ख़ुशी साल भर ना खले, यही सोच मन…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on February 28, 2015 at 8:54pm — 23 Comments
आम्र मंजरी झूमती ,मादक महके बाग
-हर्षित कोयल कूकती,बौराया सा काग ।
बाबा देवर बन गए, फागुन में वो बात
ललचाये हर बाल मन,…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 24, 2015 at 10:30am — 17 Comments
ऋतु बसंत का आगमन,शीतल बहे सुगंध,
खलिहानों से आ रही, पीली पीली गंध |
जाडा जाते कह रहा, आते देख बसंत,
मधुर तान यूँ दे रही, बनकर कोयल संत |
वन उपवन सुरभित हुए, वृक्ष धरे श्रृंगार
माँ वसुधा का मनिएँ, बहुत बड़ा आभार |
कलरव करते मौर अब, देखें उठकर भोर,
अद्भुत कुदरत की छटा, करती ह्रदय विभोर |
फूलों पर मंडरा रहे, भँवरे गुन गुन गान
मतवाला मौसम सुने, कुहू कुहू की तान |
पुष्प जड़ी चुनरियाँ…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2015 at 12:30pm — 21 Comments
मेरा जीवन पी गया, तेरी कैसी प्यास । |
पनघट से पूछे नदी, क्यों तोड़ा विश्वास ।१। |
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मन में तम सा छा गया, रात करे फिर शोर। |
दिनकर जो अपना नहीं, क्या संध्या क्या भोर ।२।… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:30pm — 33 Comments
नये साल की ये सुबह, सुन कोयल का गान ।
मन में ऊर्जा भर गई, तन में आई जान ।।
सर्द हवा की ले छुअन, मुख से निकले भाप।
भला-भला सा लग रहा, अंगारों का ताप।।
समय वक्र की ऊर्ध्व गति, अधो उम्र की चाल।
जीवन जो है हाथ में, गड्ढे में ना डाल।।
बीत गया जो वर्ष तो, देखें ना लाचार।
अपने सपनों को मिले, एक नया आधार।।
मोहक आँखों को लगे, एक सुहाना दृश्य।
पीछे क्या सौंदर्य के, हो मालूम…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 12:30pm — 18 Comments
पूरब से जैसे चले, शीतल मंद बयार ।
मैं रोया तुम रो पड़ी, समझो जीवन पार ।१।
जीवनसाथी तू सखी, इक मंदिर का छंद ।
तेरे सहचर में मिला, पूजा का आनंद ।२।
तेरी फूलों-सी हंसी, कलियों सी मुस्कान ।
जीवन को जैसे मिला, खुशियों का सामान।३।
ईश्वर ने कैसा रचा, तेरा मेरा साथ ।
मेरी ताकत बन गए, मेंह्दी वाले हाथ ।४।
रिश्ता अपना खूब है, तू शाखा मैं पात ।
बिन बोले क्या खूब तू, समझे मेरी…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 10:30pm — 17 Comments
मुट्ठी में कब रेत भी, ठहरी मेरे यार।
चार पलों की जिंदगी, बाकी सब बेकार।।
जीवन की इस भीड़ में, सबके सब अनजान।
सिर्फ फलक ही जानता, तारों की पहचान।।
पाप पुण्य जो भी किया, सब भोगे इहलोक।
जाने कैसा कब कहाँ, होगा वो परलोक।।
आँखों ने जाहिर किया, कुछ ऐसा अफ़सोस।
आँखों पे कल धुंध थी, अब आँखों में ओंस।।
व्यर्थ मशालें ज्ञान की, प्रेम पिघलते दीप।
बिखरी है हर भावना, सिमटा दिल का सीप।।
सागर से…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 3:00am — 11 Comments
घर बदला, बदला जहां, बदले बदले लोग ।
अर्थ बदलते देखिए, क्या जोगी क्या जोग ।।
पलकों से उतरी जरा, धीरे धीरे रात ।
शामों की दहलीज पे, साए करते बात ।।
धुंधली धुधली हो गई, यादों की सौगात।
अफरातफरी वक़्त की, ये कैसे हालात।।
आवाजे होती गई, सब की जब खामोश।
शहर बिचारा क्यों मढ़े, सन्नाटे को दोष।।
ढलती शामों में किया, पीपल ने संतोष।
बिछड़ गई परछाइयाँ, सूरज भी खामोश ।।
हमने जब से ले लिया, इश्क़…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 3:00am — 8 Comments
मिलना तो दिल खोल के, मिल लो मेरे यार।
छोटी सी है ज़िन्दगी, तुम छोड़ो तकरार ।।
बहुत दिनों से गर्म है, सपनो के बाज़ार ।
बदल रहे है देखकर, रिश्तो के आसार।।
आँखे भर भर आ गई, छूकर उनके पाँव।
यादों में फिर छा गया, बरगद वाला गाँव।।
मौसम की पदचाप भी, गुमसुम और उदास।
आँगन की तुलसी डरी, सहमा देख पलाश ।।
रहने दो गुल बाग में, गुंचा और बहार ।
हरियाली का इस तरह, ना बाटो सिंगार।।
मालिक के दीदार…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 2:30am — 12 Comments
धरती माँ की गोद में, फिर आया नववर्ष,
प्यार मिला माँ बाप से, जीवन में उत्कर्ष |
भाई सब देते रहे, मुझको प्यार असीम,
मित्र मिले संसार में, रहिमन और रहीम |
आई बेला साँझ की, समय गया यूँ बीत,
इतने वर्षों से यही, समय चक्र की रीत |
बचपन बीता चोट खा, माँ बापू बेचैन,
पूर्व जन्म के कर्म थे, भोगूँ मै दिन रेन |
मिला मुझे संयोग से,सात जन्म का प्यार,
मेरे घर परिवार से, दूर हुआ अँधियार…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2014 at 6:00am — 18 Comments
उत्सव लाये हैं ख़ुशी,खूब सजे बाजार
साथ मिठाई के सजे,भिन्न भिन्न उपहार |
रंग रूप लेकर नए ,चमक उठे सब गेह
उत्सव हैं सब गर्व के ,बाँटे खुशियाँ नेह |
उत्सव धनतेरस हुआ,त्रयोदशी के वार
नूतन बर्तन हैं सजे ,और स्वर्ण बाजार |
छोटी दीवाली जले,यम दीपक हर द्वार
मुक्त हुईं कन्या सभी,नरकासुर को मार |
उत्सव दीपों का सभी,मनाते संग प्यार
सबको बाँटे रोशनी ,दीवाली त्यौहार |
अन्नकूट उत्सव रचा, दीवाली पश्चात
भोग…
Added by Sarita Bhatia on October 19, 2014 at 8:00pm — 7 Comments
ये गाथा मजदूर की, जिसके नाना रूप।
पत्थर तोड़े हाथ से, बारिश हो या धूप।।
कड़ी धूप में पिस रही, रोटी की ले आस।
पानी की दो घूँट से, बुझा रही है प्यास।।
सर पर ईंटें पीठ पर, लादे अपना लाल।
मानवता कुछ ढूँढती, लेकर कई सवाल।।
वे भी जन इस देश के, करते हैं निर्माण।
पर खुद जीने के लिये, झोंके अपने प्राण।।
उनको हो सबकी तरह, जीने का अधिकार।
उनके कर्मठ हाथ हैं, विकास का आधार
-मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:04am — 10 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on September 24, 2014 at 9:00pm — 12 Comments
छै दोहे – गिरिराज भंडारी
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भाव शिल्प में आ सके , बस उतना ही बोल
मन का दरवाज़ा अभी , मत पूरा तू खोल
यदि कोशिश निर्बाध हो, सध जाता है छंद
घबरा मत , शर्मा नहीं, गलती से मति मंद
गेय बनाना है अगर , छंद , कलों को जान
और रचेगा छंद जब , कल का रखना मान
शिल्प ज्ञान को पूर्ण कर , याद रहे गुरु पाठ
इंसा होके काम तू , मत करना ज्यों काठ
चाहे बातें हों कठिन , रखना भाषा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 6, 2014 at 8:30am — 10 Comments
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