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मिलना तो दिल खोल के, मिल लो मेरे यार।

छोटी सी है ज़िन्दगी, तुम छोड़ो तकरार ।।

 

बहुत दिनों से गर्म है, सपनो के बाज़ार ।

बदल रहे है देखकर, रिश्तो के आसार।।

 

आँखे भर भर आ गई, छूकर उनके पाँव।

यादों में फिर छा गया, बरगद वाला गाँव।।

 

मौसम की पदचाप भी, गुमसुम और उदास।

आँगन की तुलसी डरी, सहमा देख पलाश ।।

 

रहने दो गुल बाग में, गुंचा और बहार ।

हरियाली का इस तरह, ना बाटो सिंगार।।

 

मालिक के  दीदार से,  खिलते सबके दीद

दीप जला मांगे दुआ, दीवाली में ईद  ।।

 

रावण वध तो लक्ष्य है, सच्चाई के नाम ।

फिर काहे का सोचना, किसके कितने राम ।।

 

बहुत कठिन है प्रेम की, राह करे बदनाम ।

 फिर मीरा क्या सूर क्या, क्या राधा क्या श्याम ।।

 

पाई पाई जोड़कर, क्या करना मिथिलेश ।

इक दिन सब कुछ छोड़कर, जाना है परदेश ।।

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  - मिथिलेश वामनकर 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 8:41pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय योगराज प्रभाकर सर।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 3:06pm

दोहावली बहुत सुन्दर हुई है भाई मिथिलेश वामनकर की, हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 8, 2014 at 11:14pm

आदरणीय सौरभ पांडे जी आपने मेरी रचना पर टिप्पणी की एवं पसंद किया आभार धन्यवाद . आदरणीया राजेश कुमारी जी ने त्रुटियों को चिन्हित भी किया और सुधार भी सुझाए, उनका ह्रदय से आभारी हूँ. आप लोगो के मार्गदर्शन से मेरा लेखन अनुशासित हो रहा है और सीखने भी मिल रहा है. आप सभी गुनीजनो का बहुत बहुत आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2014 at 4:28pm

आदरणीया राजेश कुमारीजी..

मीरा सूर कबीर क्या, क्या राधा क्या श्याम ।।----विषम चरण में गेयता भंग है

नहीं, ऐसा प्रतीत तो नहीं हो रहा है.
मीरा (चौकल) सूर क(चौकल) बीर क्या (रगण) .. सारा कुछ व्यवस्थित दिखा मुझे आदरणीया.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2014 at 4:26pm

बहुत बढिया दोहे हुए हैं. आदरणीया राजेशकुमारीजी के सुझावों पर आपने अमल किया तो आपके दोहे और निखर उठे हैं.
हार्दिक बधाई स्वीकार करें, भाईजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2014 at 8:11pm

परम आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपको दोहे पसंद आये मेरा अहोभाग्य बहुत बहुत धन्यवाद आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2014 at 8:10pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2014 at 3:59pm

मौसम की पदचाप भी, गुमसुम और उदास।

आँगन की तुलसी डरी, सहमा देख पलाश ।।  बहुत सुन्दर , बधाइयाँ आदरणीय ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2014 at 10:39am

बहुत सुंदर दोहे रचे  है, हार्दिक  बधाई  स्वीकारे - विशेषकर इन दोहों के लिए -

आँखे भर भर आ गई, छूकर उनके पाँव।

यादों में फिर छा गया, बरगद वाला गाँव।।----- लाजवाब दोहा 

मालिक के  दीदार से,  खिलते सबके दीद

दीप जला मांगे दुआ, दीवाली में ईद  ।।------- सौहार्दपूर्ण 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 5, 2014 at 8:36pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपने विस्तृत टिप्पणी कर जो मार्गदर्शन किया उसका ह्रदय से आभारी हूँ . आपके निर्देशानुसार वांछित संशोधन कर दिया है. भविष्य में इसकी सावधानी रखूँगा. चूंकि तीनो क़िस्त एक ही दिन पोस्ट की है इसलिए केवल एक किश्त में सुधार कर पाया हूँ . शेष क़िस्त 2 और 3 में भी आपके मार्गदर्शन अनुसार सुधार कर लूँगा 

कृपया ध्यान दे...

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