For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,138)

टूथ-पेस्ट की ट्यूब

टूथ-पेस्ट की ट्यूब

 

और एक दिन ऐसा भी आता है

खूब खूब दबाने से निकलता

चने के दाने बराबर

इत्ता सा टूथ-पेस्ट...

कि बने झाग थोडा सा

मुंह की बदबू दूर हो जाए

मुहलत मिले इतनी कि

शाम खदान से लौटते वक्त

ज़रूर खरीद लाना है

एक नया टूथ-पेस्ट...

 

अगली सुबह

हड़बड़ी में

वाश बेसिन के सामने

ब्रुश उठाते ही हाथ में

दिख जाता वही

पिचका

चिपटा

तुडा-मुडा टूथपेस्ट

मुंह…

Continue

Added by anwar suhail on March 13, 2013 at 9:31pm — 4 Comments

बस यूँ ही.....काश ये हलके होते.....

बस यूँ ही.....काश ये हलके होते.....

 

बचपन के सपने

खुली आँखों के सपने

खुला आकाश 

आज़ाद पंछी

बहुत से उड़ गए

कुछ सफ़र पूरा कर

वापस पलकों पर आ गए 

 

और अब...

बंद आँखों में नींद कंहा

नींद कभी आई तो

सपने…

Continue

Added by pawan amba on March 13, 2013 at 7:43pm — 11 Comments

कर पनीर तैयार (दोहा छंद)

अपनी गलती को प्रिये! मत समझो तुम भार।

दूध फटा तो क्या हुआ, कर पनीर तैयार॥



जीवन का उद्देश्य क्या, मिला हमें क्यों जन्म।

परमपिता को याद कर, करें निरन्तर कर्म॥



घृणा और पर डाह से, हो खुशियों का नाश।

प्रेम और सद्भाव से, मन में भरे प्रकाश॥



प्रेम और विश्वास हैं, दोनों एक समान।

जबरन ये न हो सके, चाहे जाये जान॥



दृश्य बदलते हैं प्रिये! बदलो अपनी दृष्टि।

निज नजरों के दोष से, दोषी दिखती सृष्टि॥



मेरी गलती भूलते, प्रतिदिन ही… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 7:30pm — 11 Comments

पाधारो म्हारा देश

पाधारो म्हारा देश, पलक पावणा  बिछा देंगे

तुम जवानों के सिर काट लो, हम चुप नहीं बैठेंगे,कहकर सो जायेंगे



आतंक का नंगा नाच दिखाओ ,भेदिये  जुटा  देंगे  

कोई हमारे सब्र कि परीक्षा ना ले, और हम एक बार फिर फेल हो जायेंगे



खूब रेल जलाओ ,अपहरण करो ,आतंकी रिहा करा देंगे

शोर शराबा किया तो, सम्प्रदाइकता का  आरोप लगा ,ध्यान बटा देंगे…

Continue

Added by Dr Dilip Mittal on March 13, 2013 at 6:30pm — 9 Comments

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (2)

 चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (2) की द्वितीय कड़ी में सब अतिथि  blogers का स्वागत है. आप के पर्संसात्मक comments का धन्यवाद यह एक लम्बी काव्या कथा है कृपया बने रहें. कोशिश करूंगा आप को निराश न करूं. यदि रचना बोर करने लगे तो कह देना. मैं दुसरे टॉपिक्स में शिफ्ट हो जाऊंगा.

Dr. Swaran J Omcawr

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (2)

ज्ञानी



दिग्भ्रमित!…

Continue

Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 13, 2013 at 5:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल "उड़ा न देना कहीं आँख से ये तू पानी"

====== ग़ज़ल========

वो दौर और था जिसमे था आबरू पानी

नहीं उबाल रहा अब के है लहू पानी

नदी में फेंक दिए हमने आज कुछ कंकर

दिखा रहा था मेरा अक्स हू-ब-हू पानी

नया है दौर हुई रस्में यहाँ भाप मगर

उड़ा न…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 3:00pm — 8 Comments

बसन्त


सरसों तू क्यों फूली-फूली है, सरसो कि मधुमास रसी!
आमन के बिरवा बौराये गये,फगुआ बयार पगलाये रही।।
पीली-पीली सरसों हरषों ज्यों फगुआ बयार हरहराये रही।
धरती के सूनी आॅचल में बसन्त बनो मुस्कराये रही।।

भौंरे गुंजन कर गाये रहे कलियाॅ-तरूणी इठलाये रही।
पवन मलय मद गंध पिेये,बहकाय तू मस्त झूम रही।।
कोयलिया कूक फिरै वन मा,विरहणियाॅ कन्तन खोज रही।
बगिया फूलन की बेल चढ़ी, पुष्पवाण जियन को भेद रही।।
के पी सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 10:17am — 4 Comments

चलो अच्छा हुआ ये भ्रम भी टुटा मेरा ....

चलो अच्छा हुआ ये भ्रम भी टुटा मेरा

वो हमे प्यार करते थे ये झूठ निकला



चलो अच्छा हुआ धोखा जो खा ही लिया

प्यार एतबार से होता है ये भी झूठ निकला 



चलो अच्छा हुआ जो गम ही मेरे दामन में आया 

कोशिश हमेशा कामयाब होती है ये भी झूठ निकला…



Continue

Added by Sonam Saini on March 13, 2013 at 10:08am — 14 Comments

कृष्ण कहाँ तुम मौन (दोहा छंद)

और नहीं कुछ दीजिये,हे! आगत नववर्ष।

मेरा भारत खुश रहे,सदा करे उत्कर्ष॥



ईश अलख लख जायगा,लख अंखिया निर्दोष।

मान बड़ाई ताक रख,ईश दिये संतोष॥



भूमि गगन वायू अनल,और संग में नीर।

अग्र वर्ण भगवान बन,विरचित मनुज शरीर॥



दुर्भागी तुम हो नहीं,मत रोओ हे! तात।

भाग्य सितारे चमकते,गहन अंधेरी रात॥



राम चंद्र के देश में,छाया रावण राज।

रामसिंह ही कर रहे,हरण दामिनी लाज॥



दुखियारी मां भूख से,मांग मधुकरी खाय।

बेटा बसे विदेश मे,खरबपती… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 8:49am — 23 Comments

दोहा

दोहा

तुलसी तुलसी सब कहे, दास न कहता कोए!

राम चरित मानस पढ़े, दोनहु परगट होए !!

तुलसी के जस राम हैं, सूर कहें घनशाम !!

राम रामायण दिनकर, सूर सागर सुभान!!

मोल बड़ा अनमोल है, राम चरित के बोल!

घट घट में बस जात है, दया.दान रस घोल!!

मंगल मेरी कामना, जड़. चेतन चित लाय!

मन की ऐसी भावना, मंगल दोष न जाय !!

मंगल मूरति दास की, चित बैठाये राम !

क्षण ही संकट.दोस मिटे, सुमरे जस हनुमान!!

बन बड़वानल उभरे ,…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 7:30am — 10 Comments

अटक गया विचार

माथे पर सलवटें;

 

आसमान पर जैसे

बादल का टुकड़ा थम गया हो;

समुद्र में

लहरें चलते रूक गयीं हों,

 

कोई ख्याल आकर अटक गया।

 …

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 7:17am — 18 Comments

रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !

रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !

नगर का शोर छोड़ कर ध्याऊ !

जहाँ बजे शंख और ढोल !!

रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !

प्यार का घर ममता सब छोडूँ !

फसूं मंदिर और दरगाह !!

रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !

पाहन पूजूं गिरि पर चढ़ि .चढ़ि !

भूखे रहे दिन और रात !!

रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !

दर .दर ढ़ूं ढ़ूं नगर .सगर में !

ढ़ूं ढ़ूं वन और रेगिस्तान !!

रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !

‘सत्यम‘शिव मन में ही निहित है !

छोडो द्वेष और अभिमान !!

रे सजनी…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 6:56am — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आशंका

ज़िंदगी की राह के किनारे लगी

ऊंचे दरख्तों की झुकी डालें नंगी हैं.

एक बेचैन सन्नाटे को पछाडकर,

मैं, एक खामोश कोलाहल में,

परेशान भटक रहा हूँ.

शायद अकारण ही!

शायद आगे उस मोड़ पर

कोई तूफ़ान मिल जाए;

शायद उन कँटीली झाड़ियों के पीछे

कोई झुरमुट मिल जाए -

पर आह,

मेरे सपनों के गुलमोहर

इन राहों में बिखरे पड़े हैं.

उन्हें कुचल नहीं सकता, बटोर रहा हूँ -

आँसुओं की नमी में पलकर

वे अभी मुरझाए नहीं…

Continue

Added by sharadindu mukerji on March 13, 2013 at 3:30am — 9 Comments

शहरों की चकाचौंध

(मौलिक और अप्रकाशित रचना)



शहरों की चकाचौंध में

फीके पङे गाँव-गुवाङ

नित नये फैशन तले

पिसता युवा समाज

पक्की चौङी सङकें यहाँ

सङकों पर रौशन लाइटें

गाङियों की चिल्ल पोँ में

खोयी घोङा-गाङी आज

ऊँचे-ऊँचे मकान बने हैं

नीचे उनके दुकान बनी हैं

गाँव पलायन करता रहता

शहरों की चकाचौंध में

नहीं जानता वो ये कि

कुछ नहीं ऐसा शहरों में

आकर्षण हो जिसके प्रति

सबसे ज्यादा होता प्रदूषण

शोर-सराबा शहरों में

शान्ति ढूँढते… Continue

Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 10:42pm — 6 Comments

गोधूली वेला

(मौलिक व अप्रकाशित)



गोधूली वेला है

पर

गौ की धूली नहीं

जमाने के विकास तले

खो गयी है कहीं

गौ के खुरों की

गलीयों और

गाँव के ऊपर

उङती धूल

अब तो

नजर आती है

सिर्फ और सिर्फ

मोटरगाङियों के

टायरों की धूली

और

उनका धूम्र

चूल्हों और हारों से

उठता धूम्र भी

गाँवों से

होने लगा है गायब

नजर आता है अब

रसोई में रखा

गैस सिलेण्डर

दूध की कढावणी

और

गाय के लिए

बँटा (गर्म… Continue

Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 9:03pm — 10 Comments

समीक्षा उपन्यास पहचान

समीक्षा: उपन्यास ‘पहचान’

जद्दोजहद पहचान पाने की

-जाहिद खान

किसी भी समाज को गर अच्छी तरह से जानना-पहचाना है, तो साहित्य एक बड़ा माध्यम हो सकता है। साहित्य में जिस तरह से समाज की सूक्ष्म विवेचना होती है, वैसी विवेचना समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भी मिलना नामुमकिन है। कोई उपन्यास, कहानी या फिर आत्मकथ्य जिस सहजता और सरलता…

Continue

Added by anwar suhail on March 12, 2013 at 9:00pm — 1 Comment

जय! जय! जय! बजरंग बली!

जय! जय! जय! बजरंग बली!

हे! बजरंगी दया तुम्हारी, सदा राम नाम गुन गाया है!

तेरी ही कृपा से मैंने, प्रभु पाद सरस रस पाया है!! जय.....

तेरे अन्तरमन में ज्यों, सिया राम छवि सुख छाई है!

मन उत्कण्ठा अविकार लिये, मैंने भी अलख जगाई है!! जय.....

कृपा करो हे! पवन पुत्र, फिर वरद तुम्हारा आया है!

तेरी ही कृपा दृष्टि से, यह सम्मान पुनः मिल पाया है!!

जय जय जय बजरंग बली, जय जय जय बजरंग बली!

जय जय जय बजरंग बली, जय जय जय बजरंग बली!!

के’पी’सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 6:42pm — 4 Comments

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (1)

देश में बहती है जो गंगा वह है क्या?



वह पानी की धारा है या ज्ञान की?



भई दोनों ही तो बह रही हैं साथ साथ, शताब्दियों से!



आज इक्कीसवीं शताब्दि में लेकिन दृष्य कुछ और है.



इस महान् देश की दो महान् धारायें अब शाष्वत नहीं, शुद्ध  नहीं, मल रहित नहीं.



धारा में फंसा है ज्ञान या ज्ञान में फंस गई है धारा!



कौन…

Continue

Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 12, 2013 at 5:30pm — 14 Comments

सवैया

फागुन के रंग छंदों के संग

सवैया


गोल कपोल गुलाल लगे तन सोह रही अति सुंदर चोली
केश घने घन से लगते करते अति चंचल नैन ठिठोली
रूप अनूप धरे हँसती कह कोयल सी मन मोहक बोली
रंग फुहार करे मदमस्त लगे तन मादक खेलत होली


संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 12, 2013 at 3:30pm — 2 Comments

फागुन मन कंगाल सखी (राजेश कु0 झा)

बनिक भए

रंगरेज मेरे

बिछुआ, पायल

बेहाल सखी

फन काढ़

समीरन लाल चले

अंतर धधके सौ ज्‍वालमुखी

गठ जोड़ नयन

स्‍वादे आहट

कनखी जी का

जंजाल सखी

इत राग महावर

झाईं पड़े

उत फागुन है उत्‍ताल सखी

मन के झूमर

चुप बैठ गए

चूते अमिया

दुरकाल सखी

भ्रू-चाप चुने

महुआ नागर

मुसकै भदवा बैताल सखी

रस रस गलती

चलती चरखी

हर आस भई

पातालमुखी

अरदास…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on March 12, 2013 at 1:52pm — 11 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service