For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं अर्जुन भौतिक अनूसारा। तिरगुण पुट अखण्ड लाचारा।।

नाथ हृदय अति दीर्घ संदेहू। नश्वर देहि आपहु धरेहू ।।
तुम प्रभु सर्व समर्थ सनाथा। अष्ट योग-चैबिस तत्व गाथा।।
त्रिअवस्था अखण्डहि बृन्दा। होइ कोउ तुम्हारा गोविंदा ।।
हम भीरू कल्मष अनुरागी । मेरे ईष्ट कुटुम्ब अभागी ।।
हम गुरू पितु मातु बंधु के हंता।केहि विधि सुफल राज के संता।।
आपहु भौतिक रूप आचारू। गुरू पितु मात बंधु व्यवहारू।।
कस होइ हित बधे कुटुम्बा। क्षत्रिय नाम विलास अचम्भा।।
आपहु अंश-भिन्नांश न जानें । औरहु कहा आपु न माने ।।
कस जानहि हित राम भजे ना। मोहि संदेहू आप प्रभू ना।।
इतना सुनि प्रभु ज्ञान बुझानी। गृह को अग्नि जहर खुरानी।
जर जमीन जोरू जो छीना। क्रूर बधे कछु पाप न हीना ।।
शस्त्रहि आत्मा काट न जाईं। अग्नि जारे न वायु सुखाई।।
भीगे नहि बरषे ऋतु सारी। अस आत्म चहु विधी सुखारी।।
जन्म धन्य मृत्यु अटल रासी। पुर्नजन्म दृ़ढ़ मिलत ह्रासी।।
त्रिगुण मूल प्रकृति अनुसरहीं। राग द्वेष माया वश रहहीं।।
जब जहॅ होय धर्म के नासा। बाढे़ अधम असुर संत त्रासा।।
तब तहॅ प्रभु धरि नर तनु रूपा। हरैं पाप भव धर्म सद्रूपा।।
तब प्रभु धरि विराट स्वरूपा। योगि प्रभु असीम विश्व रूपा।।
अखण्ड ब्रहमाण्ड अनन्त अंशा। असंख्य सूर लौ विशेष मंशा।।
विशद् रूप कण-कारण-कारक। समस्त जीव स्थूल संभारक।।
अंश-भिन्नांश अखिल ब्रहमासा।समस्त सृष्टि मुख कालहि गासा।।
पार्थ अचेत सनकादिक आर्त। त्राहि-त्राहि मम देवादि भार्त।।
शांति-शांति प्रभु निज विस्तारा। लखे न दृष्टि तेज अपारा।।
तब प्रभु रखि शीतल स्वरूपा। अभिन्न ब्रहम देवादि रूपा ।।
पालत-सृजत प्रलय न्यारी। प्रभु गुरू पितु मातु बंधु हत्यारी।।
हम कण कारन शरण अभारी। प्रभु कुटुम्ब क्षण भंगुर तारी ।।
आर्त हरण सर्व मंगल कारी। दीन-हीन दुःख भव भय हारी।।
जय जय जय प्रभु हरे मुरारी। जय जय जय प्रभु दया पुरारी।।
धरम विजय अधरम कर नासा। करूण सखा रहि हरदम पासा।।
धर्म-कर्म-आत्म ज्ञान विहीनंा। लोभ-क्रोध -मोह नहि चीन्हा।।
दया सिंधु प्रभु शम्भु अस भोले। कृपा भक्ति वर क्षमा सुडोले।।
सगुण भक्ति निष्कपट पुजारी। जपत निरन्तर हरे मुरारी ।।
सह्रस नाम गोलोक स्वामी । दया करूणा भक्त वक्षल रामी।।
विषय तम प्रभु चित प्रकासा। लोभ क्रोध काम करे नासा।।
प्रभु सुमिरन चित सतसंग वारी। सदा बसे हिय हरे मुरारी।।
इन्दिय ज्ञेमय चैबिस तत्व , ता पर डोले मान।
काम हीन नर प्रभु भक्ति, चहु दिश भोरे भान।।
सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 505

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 8:53pm

चौपाई के अंत में अशुद्ध दोहा.. . !!??

चौपाइयों भी अभी और मेहनत की मांग कर रही हैं.   प्रयासरत रहें.. . शुभेच्छाएँ.. .

Comment by Yogi Saraswat on March 16, 2013 at 11:25am

रम विजय अधरम कर नासा। करूण सखा रहि हरदम पासा।।
धर्म-कर्म-आत्म ज्ञान विहीनंा। लोभ-क्रोध -मोह नहि चीन्हा।।
दया सिंधु प्रभु शम्भु अस भोले। कृपा भक्ति वर क्षमा सुडोले।।
सगुण भक्ति निष्कपट पुजारी। जपत निरन्तर हरे मुरारी ।।
सह्रस नाम गोलोक स्वामी । दया करूणा भक्त वक्षल रामी।।
विषय तम प्रभु चित प्रकासा। लोभ क्रोध काम करे नासा।।
प्रभु सुमिरन चित सतसंग वारी। सदा बसे हिय हरे मुरारी।।

बहुत सुन्दर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service