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मैं जिंदगी हूँ ,मेरा वजूद बहुत हसींन और सौम्य हैं | ताजे खूबसूरत खिलते गुलाब या मुस्कुराते/खिलखिलाते बच्चे सा खूबसूरत मेरा अस्तित्व हैं |वैसे तो मैं दुनिया के हर प्राणी में हूँ ,पर मैं खुद को इस पृथ्वी के सबसे खतरनाक जानवर ....इंसान के माध्यम से खुद को यहाँ व्यक्त कर रही हूँ |ज्यादातर इंसान मुझे ऑटोपायलट मोड पर रखते हैं ,उनकी जिन्दंगी में अगली क्या चीज होंगी इसका फैसला परिस्थितियां या लोग करते हैं ,कुछेक मुझे खुद आपरेट करते हैं ,जिनके साथ मैं बहुत खुशी और सुखी रहती हूँ |मेरा जीवन काल तो असीम और अनंत हैं पर तुम मनुष्य लोग इसे औसतन ९६० महीने या २९००० दिन जैसा छोटा जीवन काल की मान्यता रखते हों ,और जानते हों जिसकी जैसी मान्यता उसको वैसा ही फल,इस बात को प्राचीन ऋषि मुनि समझते थे|इस छोटे ग्रह पर ,इस अल्प जीवन काल में भी कुछ लोग अपना जीवन ऐसे जीते हैं जैसे उन्हें यहाँ हमेशा रहना हैं ..किन्तु मेरी {जिंदगी}मंजिल ही मौत हैं ,इस बात पर ध्यान नही देते ,आप के रहने न रहने से कोई फर्क नही पड़ता ,दुनिया वैसी ही चलती रहेंगी शिवाय इसके की दुनिया को आपकी देंन क्या हैं ?आप क्या छोड़ के जा रहे हैं ?आपका योगदान {contribution}क्या हैं ?

मैं आपकी जिन्दंगी हमेशा आपके भीतर के नेता को बिना किसी उपाधि के बेस्ट कार्य करने को प्रेरित करती हूँ |मैं  हमेशा आपसे ,आपके मौन अवस्था में बोलती हूँ ,पर आपके पास मुझे सुनने का वक्त ही नही होता ,मौन की  अवस्था में आप इस ब्रम्हांड की फ्रीक्वेंसी से जुड़ने लगते हों,वही फ्रीक्वेंसी मेरी भी हैं ,क्यूंकि इसी उन्ही तत्वों से मैं भी बनी हूँ जिनसे यह ब्रम्हांड बना हैं |नार्मन कजिम्स ने कहा भी हैं “जिंदगी की त्रासदी मौत में नही,बल्कि जीते जी अंतर्मन को मारने में हैं”मैं तुम्हारी जिन्दंगी कोई ट्रायल बाल नही हूँ ,बल्कि ऐसी गेम हूँ जिसे खेलने का सिर्फ एक मौका मिला हैं और परफार्मेंस भी उम्दा दर्जे की करनी हैं ,क्यूंकि दाँव पर आने वाली कई पीढियाँ होती हैं |

 वैज्ञानिकों के अनुसार एक दिन में लगभग ६० हज़ार विचार हमारे मन में आते हैं |जिसमे ज्यादातर घिसे-पिटे ,नकारात्मक चिंतन और फ़ालतू के विचार होते हैं ,जो लगातार चलते हैं |लगातार चलते हुए विचार आपको सृजन कि अवस्था में ले जाते हैं,मन को परिपक्व बनाओ  ,हर घटना को उसकी सही कीमत दो|आप वैसे बिना किसी कार्य के  किसी को दस रूपये तो देने से पहले दस बार सोचते हों,पर यदि उसने आपको गाली दी तो आप कम से कम दस दिन तक उसे मजा चिखाने का मौका ढूढते रहते हों,क्यों भई ! वों तो आपको गाली देकर आपके आत्मसंयम को परख रहा हैं|देखो तुम्हारे विचार शक्तिशाली जीवित बस्तुये हैं |जितना तुम अच्छा एहसास रखोंगे ,उतनी ही ज्यादा खूबसूरत मुझे देख पाओंगे |

मैं जिन्दंगी हूँ !मैंने देखा हैं की कुछ लोग हमेशा भय में ही जीते हैं प्रशंसा या स्वीकृति की जरूरत ,चीजों को नियंत्रित करने की जरूरत ...से सब भी भय से ही आते हैं |भय तुम्हारी खुद की निर्मित वस्तु हैं ,जैसे तुम किसी भी निर्मित वस्तु को नष्ट करते हों ,वैसे इसे भी नष्ट कर दो |जैसे ही भयमुक्त जीवन जीने लगोंगे...मैं और खूबसूरत दिखने लगूंगी |

मैं जिन्दंगी हूँ ,तुम्हे लोगों स्थितियो और घटनाओं को उसी रूप में स्वीकार करने का हुनर आना चाहिए जिस रूप में हैं ,क्यूंकि यह परफेक्ट क्षण हैं ,इस क्षण को बनाने में ब्रम्हाड  की पूरी भूमिका हैं |इस क्षण को पूरी तरह जी लों ,निचोड़ लो,ताकि अगर यमराज भी आये तो,साथ चलने को कहें तो,साथ हँसते हुए निकल सको |

 मैं जिन्दंगी हूँ ,मैं असीम हूँ पर तुम तथाकथित बुद्धिमान ,अहंकारी  मानव मुझे सीमाओं में बांधकर अपने ही पैरों पर कुल्हारी मारते रहते होंकि तुम ये नही कर सकते,वों नही कर सकते,हमेशा कमी का रोना रोते हों|तुम जान लो की तुम अपनी सीमाओं से उपर कभी नही उठ सकते |जितनी ज्यादा तुम चादर फैलाओगे,उतनी ज्यादा ही ज्यादा यह फैलती जायेंगी |समाधी की अवस्था में हवा में उड़ने वाले महर्षि योगी या ऐसे अनेक ऐसे लोगों को तुम जानते हों जिन्होंने हर सीमाओं को तोडा,यकींन मानो हर सीमा तुम्हारी खुद की निर्मित वस्तु हैं,खुद को वह देखने दो जो तुम्हारा दिल महसूस करता हैं न की वह जो तुम्हे दुनिया दिखाती हैं|तुम्हारे मस्तिष्क की हर झूठी सीमा भय आधारित हैं बस ,और भय चेतना की नकारात्मक धारा के अतिरिक्त कुछ भी नही हैं | भौरा एक छोटा कीट ,वायुगतिकी के सिद्धांत के अनुसार उसके पंख इतने छोटे होते हैं की उसके शरीर के भार को वहन नही कर सकते ..किन्तु भौरे को यह बात पता नही हैं ..उसे भौतिकी नही आती ....वह उड़ता रहता हैं |तुम जो हाड़-मांस दीखते हों उससे कही अधिक हों ,सारे संसार की शक्ति तुममे समाहित हैं !समझे तुम |हर एक बीज में जंगल बनने कि प्रत्याशा समायी हुयी होती हैं |

   जब तुमसे जुदा होने का वक्त आता हैं,जिसे तुम एक उत्सव यानि -मौत कहते हों ,तब तुमको अक्सर याद आता हैं की, तुमने अभी तो मुझे {जिन्दंगी कों}ठीक से पहचाना ही नही |आखिरी समय में तुम्हे लगता हैं की कोई जीवनराग अभी अधूरा ही रह गया जो तुम गा ही नही सके |आखिरी समय में तुम पाते हों की हर आपदा को जीत में और शीशे को सोने में बदलने का हुनर तुमने सीखा ही नही |अब आखिरी वक्त में तुम्हे इस बात पर पक्का यकींन  हों गया की वर्तमान का कार्य ,वर्तमान में ही किया जा सकता हैं{पर इस समय तुम्हारे पास वर्तमान का ज्यादा वक्त ही नही हैं } अतीत और भविष्य का जन्म तो कल्पना से होता हैं ,अतीत को तुम केवल याद कर सकते हों और भविष्य की सिर्फ कल्पना कर सकते हों |

कुछ ऐसे लोग हैं जिनके साथ रहने में हर क्षण हर पल मेरा मान ,मेरी खूबसूरती केवल बढती हैं ,दुनिया के लोग,इन लोगों को सम्मान में अपना सिर झुकाते हैं ,ये लोग मुझे गेम की तरह खेलते हैं ,इनका गेम खेलना सचमुच मुझे रोमांचित कर जाता हैं ,ये लोग अपनी पूरी प्रतिभा ,संसाधन ,युक्ति एवं उपाय तथा अपनी सर्वोत्कृष्ट क्षमता महान कार्यों में लगाते हैं ,हर कार्य को श्रेष्ठता और निर्दोष मानकों के अनुसार करते हैं ,हमेशा हर परिस्थिति में आशावादी बने रहते हैं,मैं खूबसूरत जिन्दंगी ! इन लोगों की स्वामिनी नही.... दासी हूँ |

मैं आपकी जिंदगी हूँ ,मुझे आपसे और बहुत कुछ कहना हैं,शेष अगले भाग में ....

लेखन –अजय यादव

@मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

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