For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रिय की प्रतीक्षा

अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा में थक गए नैन,
अधरों से मेरे फूटते नहीं है बैन।
 कटती नहीं मुझसे विरह की रैन,
आता नहीं मेरे मन को कहीं चैन।
उनके बिना होता नहीं कोई काम -काज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
बिना उनके फीका सौन्दर्य तुम्हारा,
कोयल के गीतों ने भी उन्हें पुकारा।
बिना प्रिय के अधूरा श्रृंगार हमारा,
काम -बाणों ने बेध दिया तन-मन सारा।
तुमसे ये सब कहते हुए मुझे आती नहीं लाज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा करते कितने युग बीते,
फिर भी हाथ हैं मेरे अब तक रीते।
कब तक हम रहे ऐसे अश्रु -जल पीते,
उन्हें बता दो,उनके बिना कैसे हैं जीते?
आज नहीं भय कि क्या कहेगा समाज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
हे वसंत,तुम मेरे दूत बन जाओ,
मेरी ये व्यथा उन्हें जाकर सुनाओ।
हे मधुमास,उन्हें मेरे समीप ले आओ,
अन्यथा तुम मेरे प्राण हर ले जाओ।
कह दो उनसे,तोड़ दो सारे बंधन आज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on March 18, 2013 at 11:39pm

आदरणीय योगी जी, सौरभ जी,विजय जी और राम शिरोमणि जी,
                             सादर नमस्कार !
आप सभी के बधाई संदेशों एवं शुभकामनायों के लिए मैं आभारी हूँ। यदि मेरी काव्य -रचना आप सभी को पसंद आ रही हैं तो ये मेरे लिए बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि  मेरे रचना कर्म को सार्थकता मिल रही है। पुनः आभार !

Comment by ram shiromani pathak on March 18, 2013 at 10:18pm

आदरणीया सावित्री जी,

अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा करते कितने युग बीते,
फिर भी हाथ हैं मेरे अब तक रीते।
कब तक हम रहे ऐसे अश्रु -जल पीते,
उन्हें बता दो,उनके बिना कैसे हैं जीते?
आज नहीं भय कि क्या कहेगा समाज।

बहुत सुन्दर.............बधाई।

 

Comment by vijay nikore on March 16, 2013 at 10:32pm

आदरणीया सावित्री जी:

 

बहुत ही उत्कृष्ट कविता लिखी है आपने।

बधाई।

 

सादर,

विजय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 8:56pm

मेघदूत से प्रेरित प्रस्तुत रचना के बाद यह मंच कवयित्री से और उम्मीद लगाये बैठा है.

हार्दिक शुभकामनाएँ. .

Comment by Yogi Saraswat on March 16, 2013 at 11:27am

अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा करते कितने युग बीते,
फिर भी हाथ हैं मेरे अब तक रीते।
कब तक हम रहे ऐसे अश्रु -जल पीते,
उन्हें बता दो,उनके बिना कैसे हैं जीते?
आज नहीं भय कि क्या कहेगा समाज।

बहुत सुन्दर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
9 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service