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अरु नदिया पछताय ( कुछ दोहे )

नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |

उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||

नदिया जल मल मूत्र सब, कैसा बढ़ा विकार |

मानव अवलम्बित धरा, सहती अत्याचार ||

क्षुधा तृप्त करता…

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Added by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2013 at 8:07am — 22 Comments

!!! हे मां !!!

!!! हे मां !!! 

मां अर्थात् गुरू !

गुः - गुप अंधेरा, गहन तिमिर।

रूः - प्रकाशमय, अतिशय उजियारा।

अर्थात् तमसो मा जोतिर्गमय!

अंधकार से प्रकाश की ओर प्रेरित करने वाली

जननी! मां!

अनादि काल से

सब कुछ सहती आ रही है।

हां! प्रसव पीड़ा के सम 

नवजात के जन्म सरीखा ही।

नरक में उलटे टंगे को

स्वर्ग में सीधे पैरों पर खड़ा करने तक,

अन्धकार-अज्ञान को

प्रकाशवान-ज्ञानमय '

बनाने के लिए उद्वेलित…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2013 at 12:38am — 11 Comments

जागो भारत माँ के जवान |

जागो भारत माँ  के जवान , सीमा पर बैरी आया |
और अधिक पाने की चाहत ,  बढ़ने का राह दिखाया |  
दोस्त का दिखावा करके ही , अपना वो जाल बिछाया | 
सखा की ही नियत बिगड़ी जब , भाई को भी  भूलाया | …
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Added by Shyam Narain Verma on April 29, 2013 at 3:27pm — 6 Comments

एक हकीकत बस वह जाने-----

तेरे मन में स्वार्थ भले हो

वह  इसको सौभाग्य मानती----

 

मानव की है फिदरत देखो

सब्ज बाग़ दिखा  पत्नी  को 

बाते करके चुपड़ी चुपड़ी

क्षणभर में ही खुश कर देता |

सिद्ध करने को मतलब अपना

प्यार भरी बातो से उसका 

क्षण भर में ही आतप हरकर 

गुस्सा उसका ठंडा करता |

तेरे मन में स्वार्थ भले हो

वह इसको सौभाग्य मानती------

 

अति लुभावन वादे करके

बातो ही बातो में पल में

उसके भोले मन को ही

वह…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 29, 2013 at 2:58pm — 15 Comments

तेरे युग में, मेरे युग में/पापा कोई मेल नहीं है

अलसाई

आंखों से उठना

जूते, टाई

फंदे कसना

किसी तरह से

पेट पूरकर

पगलाए

कदमों से भगना

ज्ञान कुंड की इस ज्‍वाला में

निश दिन जलना खेल नहीं है

तेरे युग में .....................

पंछी, तितली

खो गए सारे

धब्‍बों से

दिखते हैं तारे

फूल, कली भी

हुए मुहाजि़र

प्राण छौंकते

कर्कश नारे

धक्‍के खाते आना-जाना

धुआं निगलना खेल नहीं है

तेरे युग…

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Added by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 1:55pm — 15 Comments

जीने की बात करता हूँ

जीने की बात करता हूँ

मै हर इंसान से जीने की बात करता हूँ

औरों के गम पीने की बात करता हूँ

चिंदी ,चिंदी हुई है, जो जीवन की किताब

हर चिंदी को सीने की बात करता हूँ

बचा जो डूबने से, उसे खुदाहाफिज

डूबे भंवर मै, सफीने की बात करता हूँ

दौलत की चमक से मचल रही दुनिया

मै बिन तराशे नगीने की बात करता हूँ

हुए शहीदे-बतन जो मिटाकर अपनी हस्ती

मै उनके खून पसीने की बात करता हूँ

जिन्दगी अपनी कटी बे हिसाब बे तरतीव

औरों से मै करीने…

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Added by Dr.Ajay Khare on April 29, 2013 at 12:53pm — 9 Comments

एक अजन्मा दर्द

॥ एक अजन्मा दर्द ॥

माँ मुझको भी जीवन दे दे, मै भी जीना चाहती हू ।

सखी सहेली वीरा के संग, मै…

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Added by बसंत नेमा on April 29, 2013 at 12:00pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तनाव भरे कुछ घण्टे - आँखों देखी 2

तनाव से भरे कुछ घण्टे – “ आँखों देखी 2 “

भूमिका : मैं जिस घटना का वर्णन करने जा रहा हूँ उसे समझने के लिये आवश्यक है कि घटना से सम्बंधित स्थान, काल, परिवेश का एक संक्षिप्त परिचय दे दूँ.

अंटार्कटिका हमारे ग्रह – पृथ्वी – का वह सुदूरतम महाद्वीप है जहाँ मानव की कोई स्थायी बस्ती नहीं है. हैं तो कुछ देशों के वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र जिनमें अस्थायी रूप से रहकर काम करने के लिये वैज्ञानिक तथा अन्य अभियात्रियों का हर वर्ष समागम होता है. लगभग 1.4 करोड़ वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैले इस…

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Added by sharadindu mukerji on April 28, 2013 at 10:30pm — 9 Comments

कैसे बचें....

जो बुरा है

जो बदनाम है

जो ज़ालिम है

उससे सावधान रहना आसान है

क्योंकि वो तो जग-जाहिर है....



लेकिन जो बुरा दीखता नही

जो नाम वाला हो

जो नरमदिल बना हुआ हो

ऐसे लोगों को पहचानना

हर किसी के बस की बात नहीं...

क्या आप ऐसे लोगों को पहचान…

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Added by anwar suhail on April 28, 2013 at 9:11pm — 5 Comments

सुनो युवाओं....कुण्डलिया

नौटंकी का खेल है, दरबारों का आज

सत्ता चोर छिछोर की, डाँकू का है राज

डाँकू का है राज, झपट यह माल बनाते

पावन धरती खोद, उसे पाताल बनाते

कहते है कविराय, शुरू है उलटी गिनती

युवा आज के समझ रहे सारी नौटंकी

-------

नवपीढी के हाँथ मे, रहे धर्म की डोर

आकर्षित कुछ हो रहे, जो पश्चिम की ओर

जो पश्चिम की ओर, सभ्यता अपनी भूले

कैसे तुम हो पुत्र, प्रिय ! जो जननी भूले

कहते हैं कविराय, चुनो अब ऐसी सीढी

करो राष्ट्र निर्माण, धर्म से हे… Continue

Added by manoj shukla on April 28, 2013 at 8:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,

आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,

बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,

चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,

देश का नेता हमारा…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 28, 2013 at 4:17pm — 16 Comments

दीवारों पर लकीरें !!!

गाँव के कच्चे घरों में…

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Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 28, 2013 at 11:26am — 22 Comments

अंतस के शब्द....हाइकू

हाइकू का प्रथम प्रयास.....
------
---------
बिंदी काजल
नर के ही कारण
मैला आँचल
---------
बहे पसीना
नही चोख मजूरी
मुश्किल जीना
-------
गुडिया गिट्टी
दानव नर कामी
कर दी मिट्टी
--------
मौलिक व अप्रकाशित

Added by manoj shukla on April 27, 2013 at 9:00pm — 11 Comments

एक लड़की पगली सी

एक लड़की पगली सी -

खड़ी रहती हर सुबह छ्त पर अकेली,

कभी बालों को सँवारती,

होंठों में कुछ गुनगुनाती रहती.

सूरज जब दहलीज पर आता

दे जाता आभा रेशम सी,

सुनहरी किरणों से नहाती औ’

खुशियों से झूम झूम जाती.

एक लड़की भोली सी -

टहलती हुई छ्त पर भरी दोपहर

बालों को फूलों से सजाती,

पवन का झोंका आता ठहर-ठहर

डोल जाती वह कोमलांगिनी

शर्माती, हुई जाती कुछ सिहर-सिहर.

हँसती, कभी मुसकाती एक लड़की -

भोला बचपन गया, कब आया यौवन

समझ न…

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Added by coontee mukerji on April 27, 2013 at 12:05pm — 10 Comments

!!! नारी तुम स्तुति की देवी हो !!!

नारी तुम स्तुति की देवी हो!

मां वसुधा सी प्यारी तुम,

संस्कृति की श्रध्दा देवी हो।

नारी तुम प्रगति प्रदर्शक हो!

कर में वीणा-सुरधारा तुम,

चंचलमय मृदुला देवी हो।

नारी तुम धैर्य-बलशालिनी हो!

अबला सीता क्षमा दान तुम,

मां शक्ति की दुर्गा देवी हो।

नारी तुम राधा सी प्यारी हो!

मीरा बाला सी अनुरागिनी तुम,

सती सावित्री सी देवी हो।

नारी तुम देश की कीर्ति हो!

सच्चे माने में इन्दिरा तुम,

भारत-सौभाग्य की…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 27, 2013 at 7:37am — 20 Comments

बौने मानव

आधी रात के सपने देकर

तुम मुझको बहला देते हो

जब चाहे जी

अपना लेते हो

जब चाहे जी

ठुकरा देते हो

कैसे लिखूं

तुमको पतियां

तुम वादे

झुठला देते हो

आधी रात के ................

या देवी का

जयघोष तो करते

फिर क्‍योंकर

चुभला देते हो

अपने छत पर

बाग लगाकर

कलियों को

दहला देते हो

आधी रात के ................

कहती हूं जो

तुमको…

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Added by राजेश 'मृदु' on April 26, 2013 at 2:41pm — 17 Comments

सरकारी नौकरी

सरकारी नौकरी

 

 

काश दो दिन दफ़्तर लगता ,

होती छुट्टी पाँच दिन,

खाते खेलते,सोते घर में

मौज मनाते पाँच दिन ।

 

बच्चे रोते भाग्य पर,

पर पत्नी खुश हो जाती,

हाथ बटाएगा काम में,

यह सोच मंद मुस्कुराती।

 

आ जाती तनख्वाह एक…

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Added by akhilesh mishra on April 26, 2013 at 12:45pm — 10 Comments

रोने धोने का काम नहीं |

दहाड़ते चलो सभी रण में ,  मारो दुश्मन को ललकार |
आगे बढ लक्ष्मी बाई सा , रोको इनका अत्याचार |
मानव ना ये दानव सा हैं , करते पशुवो सा व्यवहार |
रोने धोने का  काम नहीं , देख  करो इनका संहार | …
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Added by Shyam Narain Verma on April 26, 2013 at 11:38am — 5 Comments

'बदलाव'

उद्येश्य बदल गया-
भावों की पहरन
शब्द का
परिमाण बदल गया,
साहित्य,दर्पण समाज का
धुंधला हो गया।
प्रतिद्वंदी
तलवार का,कलम
लोकेष्णा का दास बन गया।
बाढ़ है, तो बारिश भी है
आऽज,भावेश का
बहाव बदल गया।
साहित्य का...
उद्येश्य बदल गया।
परिवेश बदल गया।।
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)

Added by Vindu Babu on April 26, 2013 at 11:03am — 17 Comments

डमरू घनाक्षरी

नियम : ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में .

 

प्रणय पवन बह, रस मन बरसत

बढ़त लहर जस, तन मन गद गद

चमक दमक बस, चलत नगर घर

पग पग हर पल, रहत मदन मद

 

मन भ्रमर चलत, उड़त गगन तक

इत उत भटकत, उठत बहत रह

प्रणय ललक वश, बहकत सम्हरत

चरफर महकत, चटक मटक रह

                 - बृजेश नीरज

Added by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:25am — 10 Comments

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