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वह शौक से मेरी जान लेगा,
हर कदम पे मेरा इम्तेहान लेगा,


पिघलेगा एक दिन मोम की तरह,
वह संगदिल मुझे जब पहचान लेगा,

गिर ही जायेँगी दीवारेँ नफरतोँ की,
मोहब्बत से काम जब इंसान लेगा,

मिलेगी 'आबिद' यहां मंजिल उसी को,
हौसलोँ से अपने जो भी उड़ान लेगा!

(मौलिक व अप्रकाशित)

_______आबिद

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Comment by Abid ali mansoori on June 6, 2013 at 9:23am
हार्दिक आभार आदरणीय वीनस जी,आपकी टिप्पणी पाकर प्रसन्नता हुयी,आशा है आगे भी आप मेरा उचित मार्गदर्शन करते रहेँगे,धन्यवाद!
Comment by वीनस केसरी on June 6, 2013 at 12:49am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति
बने रहें, अन्य रचनाओं का इंतज़ार रहेगा 
शुभकामनाएं

Comment by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 3:13pm
आदरणीय विजय जी धन्यवाद!
Comment by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 3:12pm
हार्दिक आभार अरुन जी,आपने ठीक कहा कम से कम पाँच शेर होते,आगे से ख्याल रखूंगा!
Comment by Abhinav Arun on June 4, 2013 at 3:01pm

गिर ही जायेँगी दीवारेँ नफरतोँ की,
मोहब्बत से काम जब इंसान लेगा,

मंसूरी जी ख़याल अच्छे हैं पर बस चार ही शेर ?? खैर बहुत शुभकामनाएं !!

Comment by विजय मिश्र on June 4, 2013 at 1:47pm
"गिर ही जायेँगी दीवारेँ नफरतोँ की,
मोहब्बत से काम जब इंसान लेगा," - खूब कही .बधाई
Comment by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 12:16pm
अवश्य ही आदरणीय सौरभ जी,हार्दिक आभार!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 4, 2013 at 9:04am

आप ग़ज़ल की वधा पर गंभीर अध्ययन करें भाई जी

Comment by Abid ali mansoori on June 3, 2013 at 7:01pm
आदरणीय श्याम जी एवं आदरणीय रविकर जी हार्दिक आभार!
Comment by Shyam Narain Verma on June 3, 2013 at 5:17pm

Bahot khoob......................

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