For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Abid ali mansoori's Blog (11)

अजनबी की तरह (नज़्म) // आबिद अली मंसूरी!

जब चले थे कभी 

हम 
अनजान राहों पर..
एक दूसरे के साथ
हमसफ़र बनकर,
कितनी कशिश थी
मुहब्बत की..
उस
पहली मुलाकात में,
चलो..! फिर चलें हम
आज
उसी मुकाम पर
जहां मिले थे कभी..
हम
अजनबी की तरह!
===========
(मौलिक व अप्रकाशित)
___ आबिद अली  मंसूरी!

Added by Abid ali mansoori on November 9, 2016 at 10:25pm — 4 Comments

जैसी तुम हो मॉंं // आबिद अली मंसूरी!

तुमसे ही तो है

यह जीवन मेरा
तुम्हारी ही अमानत है
हर सांस मेरी
कर्ज़दार है
तुम्हारी ममता की
आत्मा हो तुम मेरी
तुमसे ही
संसार है मॉंं........
क्या लिखूं
मैं इससे आगे
असमर्थ हूं
एक मैं ही क्या
यह
सारा संसार भी
मॉं की ब्याख्या
नहीं कर सकता
क्योंकि मॉंं..
मॉंं होती है
जैसी, तुम हो…
Continue

Added by Abid ali mansoori on November 5, 2015 at 9:00pm — 8 Comments

जीवन पथ पर..//गीत!

जीवन पथ पर चारो ओर फैला हुआ बस प्यार हो

आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!

-

जाति-धर्म का न भेदभाव जहां हो

मानवता का बस बर्ताव वहां हो,

रहेँ हम सब मिलकर ऐसा एक घर-बार हो

...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!

-

स्वयं को समझेँगे जब एक समान

तभी बनेँगे हिन्दु,मुस्लिम,सिक्ख महान,

सब धर्मोँ की लागी एक कतार हो

...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!

-

जहां प्रेम हो पूजा, प्रेम जीवन हो

तन,मन,धन सब इसे अर्पण होँ,

सत्य,अहिँसा और प्रेम जीवन… Continue

Added by Abid ali mansoori on November 5, 2015 at 1:23pm — 11 Comments

आलोचना के स्वर // आबिद अली मंसूरी!

कौन सुनता है

कौन सुनना चाहता है
किसे पसन्द है आलोचना अपनी
एक कड़वा सच
छिपा होता है
आलोचना के शब्दों में
जिसे
नहीं चहते हम
स्वीकार करना,
जानते हैं
अपने अन्दर फ़ैले
खरपतवारों को सभी
पर नहीं चाहते
उखाड़ना
उनकी जड़ों को,
कभी-कभी
अकारण ही
करना पड़ता है
सामना
आलोचनाओं के बबंडर…
Continue

Added by Abid ali mansoori on November 3, 2015 at 8:30pm — 18 Comments

क्या मैं..आकाश नहीँ छू सकती?

जब तक कि रुक नहीँ जाता

बेटियोँ के संग

भेदभाव का सिलसिला

मैँ पूंछती हूं..मैँ पूंछूंगी और पूंछती ही रहूंगी,

मैँ एक बेटी हूं

क्या बेटी होना कोई गुनाह है?

क्या मैँ माँ-बाप की

आशाओँ को

पूरा नही कर सकती?

क्या मैँ उनकी कसौटी पर

खरा नहीँ उतर सकती?

क्या मैँ वह नहीँ कर सकती..

जो एक बेटा करता है

माँ-बाप,भाई,बहन

और समाज के लिए?

क्या मैँ अपनी मेहनत से

इस बंजर जमीन को

हरा भरा नहीँ कर सकती?

क्या मैँ

किसी के जीवन… Continue

Added by Abid ali mansoori on June 12, 2013 at 2:01pm — 20 Comments

अक्स तेरा..//आबिद अली मंसूरी!

यह दिलकशी का आलम
यह ख़्यालोँ की अंजुमन,
हमसफर बन गयी हैँ जैसे
हिज़्र की तन्हाइयां..
हसरतोँ की आगोश मेँ
ली हैँ धड़कनोँ ने
फिर
अंगड़ाइयाँ चाहत की..
फूलोँ मेँ निहित खुश्बू की तरह
एक नयी सहर की आस लिए
आँखोँ मेँ उतर आया है जैसे
झिलमिल-झिलमिल
अक्स तेरा..!
>¤<>¤<>¤<>¤<>¤br /> (मौलिक व अप्रकाशित)
----->_आबिद अली मंसूरी

Added by Abid ali mansoori on June 8, 2013 at 3:15pm — 3 Comments

तेरे इन्तेज़ार का मौसम!

सजी हैँ ख़्वाब बनकर
जुगनुओँ की तरह
मासूम हसरतेँ दिल की
हिज़्र की पलकोँ पर...


यह टीसती हवायेँ
यह लम्होँ की तल्खियां
मचलने लगी है
हर तमन्ना
वक्त की आगोश मेँ..

मुन्तज़िर है आज भी दिल
किसी मख़्सूस सी
आहट के लिए..


यह मंज़र यह फ़िज़ायेँ
यह प्यार का मौसम
कितना है हसीँ
तेरे इन्तेज़ार का मौसम..!

*******************************

(मौलिक व अप्रकाशित)
___आबिद अली मंसूरी

Added by Abid ali mansoori on June 7, 2013 at 11:00am — 24 Comments

ग़ज़ल// कोई मौसम नहीँ होता!

किसी की याद आने का,कोई मौसम नहीँ होता,

अश्क फुरकत मेँ बहाने का,कोई मौसम नहीँ होता!



कौन जाने कब वफा से,बेवफा हो जाये को

फ़रेब इश्क मेँ खाने का,कोई मौसम नहीँ होता!

राहे उल्फ़त मेँ देखा है,हमने आसियां बनाकर,

दिल पे चोट खाने का,कोई मौसम नहीँ होता!

उम्र भर का निभाई साथ कोई,यह ज़रुरी तो नहीँ,

पल मेँ बिछड़ जाने का,कोई मौसम नहीँ होता!

अजनबी सी राहोँ मेँ हमसफर मिल जाते…

Continue

Added by Abid ali mansoori on June 6, 2013 at 11:30am — 22 Comments

बिन तेरे//आबिद अली मंसूरी

कितने तल्ख हैँ लम्हे
तेरे प्यार के वगैर
यह ग़म की आंधियां
यह तीरगी के साये
जैसे कोई ख़लिश
हो हवाओँ मेँ..
डसती हैँ मुझको पल-पल
पुरवाइयां
तेरी यादोँ की
बे रंग सी लगती है
ज़िंदगी अब तो
कुछ भी तो नहीँ जैसे
इन फिज़ाओँ मेँ...बिन तेरे!

(मौलिक व अप्रकाशित)

__आबिद अली मंसूरी

Added by Abid ali mansoori on June 5, 2013 at 9:54am — 17 Comments

तेरी यादोँ के सिलसिले!

तुझे पाने की जुस्तजू मेँ
तेरा एहसास लिए,
रोज लड़ता हूं मैँ
तन्हाइयोँ से अपनी,
चाहत की रहगुजर पर,
अक्सर दे जाते हैँ
ग़म की सौगात,
और हवा मेरे जख्मोँ को,
कितने संगदिल हैँ
यह
तेरी यादोँ के सिलसिले!
(मौलिक व अप्रकाशित)
__आबिद अली मंसूरी

Added by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 12:28pm — 14 Comments

ग़ज़ल

वह शौक से मेरी जान लेगा,
हर कदम पे मेरा इम्तेहान लेगा,


पिघलेगा एक दिन मोम की तरह,
वह संगदिल मुझे जब पहचान लेगा,

गिर ही जायेँगी दीवारेँ नफरतोँ की,
मोहब्बत से काम जब इंसान लेगा,

मिलेगी 'आबिद' यहां मंजिल उसी को,
हौसलोँ से अपने जो भी उड़ान लेगा!

(मौलिक व अप्रकाशित)

_______आबिद

Added by Abid ali mansoori on June 3, 2013 at 1:30pm — 11 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
9 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service