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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (503)

कैसे करता है ये निर्धन भी गुजारा देखो - तरही गजल ( लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

2122     1122      1122     22



तम की रातों में कहीं दूर उजाला देखो

डूबती नाव को तिनके का सहारा देखो।१।



दिन जो तपता हो तो रोओ न उसे तुम ऐसे

धूप कोमल सी हो जिसमें वो सवेरा देखो।२।



कहने वालों ने कहा है कि ये दुनिया घर है

हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो।३।



आप हाकिम हो रहो दूर तरफदारी से

न्याय के हक में न अपना न पराया देखो।४।



सिर्फ कुर्सी की सियासत में रहो मत डूबे

कैसे करता है ये…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2018 at 7:00pm — 18 Comments

नदिया  पोखर सब सूखे - गजल ( लक्ष्मण धामी " मुसाफिर"

२२२२ २२२२ २२२२ २२२



पोथा पढ़ना पंडित  भूले  शुभ मंगल  में आग लगी

जो माथे को शीतल करता उस संदल में आग लगी।१।



जहर  भरा  है  खूब हवा  में  हर मौसम दमघोटू  है

पंछी अब क्या घर लौटेंगे जिस जंगल में आग लगी।२।



कैसी  नफरत  फैल  गयी  है  बस्ती  बस्ती  देखो तो

जिसकी छाँव तले सब खेले उस पीपल में आग लगी।३।



धन दौलत  की  यार पिपासा  इच्छाओं का कत्ल करे

चढ़ते यौवन जिसकी चाहत उस आँचल में आग लगी।४।



किस्मत फूटी है हलधर की नदिया  पोखर सब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2018 at 4:55pm — 19 Comments

मातृ दिवस पर दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



घर को घर सा कर रखे, माँ का अनुपम नेह

बिन माँ  के  भुतहा लगे, चाहे  सज्जित गेह।१।



माँ ही जग का मूल  है, माँ  से ही हर चीज

माता ही धारण करे, सकल विश्व का बीज।२।



सुत के पथ में फूल रख, चुन लेती हर शूल

हर चंदन से बढ़ तभी, उसके पग की धूल।३।



शीतल सुखद बयार बन, माँ हरती सन्ताप

जिसको माँ का ध्यान हो, करे नहीं वो पाप।४।



रखे  कसौटी  पाँव  को, कंटक  बो  संसार

करे सरल  हर …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2018 at 7:30am — 8 Comments

नेता जी - दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



बढ़ते ही नित जा रहे, खादी पर अब दाग

नेता जी तो सो रहे, जनता तू तो जाग।१।



जन सेवा की भावना, आज बनी व्यापार

चाहे केवल लाभ को, कुर्सी पर अधिकार।२।



मालिक जैसा ठाठ ले, सेवक रखकर नाम

देश तरक्की का भला, कैसे हो फिर काम।३।



नेता जी की चाकरी, तन्त्र करे नित खूब

किस्मत में यूँ देश की, आज जमी है दूब।४।



मुखर हुए निज स्वार्थ हैं, गौंण हो गया देश

नेता खुद  में  मस्त  हैं, क्या  बदले परिवेश।५।



जाति धर्म तक हो गये, सीमित नेता…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2018 at 3:30pm — 10 Comments

मजदूर के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर



करे सुबह से शाम तक, काम भले भरपूर।

निर्धन का निर्धन रहा, लेकिन हर मजदूर।१।



कहने को सरकार ने, बदले बहुत विधान।

शोषण से मजदूर का, मुक्त कहाँ जहान।२।



हरदम उसकी कामना, मालिक को आराम।

सुनकर  अच्छे  बोल दो, करता  दूना काम।३।



वंचित अब भी खूब है, शिक्षा से मजदूर।

तभी झेलता रोज ही, शोषण हो मजबूर।४।



आँधी  वर्षा या  रहे, सिर  पर  तपती धूप।

प्यास बुझाने के लिए, खोदे हर दिन कूप।५।



पी लेता दो घूँट मय, तन जब थककर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2018 at 7:39pm — 13 Comments

मूर्ख दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर

सूँघा हमने फूल को, महज समझ कर फूल

था कागज का तो मना, अपना 'अप्रैल फूल'।१।



हम में  दस  ही  मूर्ख हैं, नब्बे  हैं  हुशियार

लेकिन ये दस कर रहे, हर दुख का उपचार।२।



मूरख कब देता भला, मूर्ख दिवस को मान

 इस पर कृपा कर रहा, सहज भाव विद्वान।३।



भोले भाले का उड़ा, खूब कुटिल उपहास

मूर्ख दिवस पर सोचते, वो हैं खासमखास।४।



दसकों से सर पर रहा, बेअक्लों  का…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 7:28am — 20 Comments

कविता दिवस के दोहे

कविता कोरी कल्पना, कविता मन का रूप

कविता को कवि ले गया, जहाँ न पहुँचे धूप।१।



किसी फूल की पंखुड़ी, किसी कली का गाल

कविता  रंगत  प्यार की, नहीं शब्द  का जाल।२।



आँचल में रचती रही, सुख दुख कविता रोज

पड़ी जरूरत जब कभी, भरती सब में ओज।२।



भूखों की ले भूख जब, दुखियों की ले पीर

कविता सबकी तब भरे, आँखों में बस नीर।४।



युगयुग से भाये नहीं, कविता को अनुबंध

हवा  सरीखी  ये बहे, लिए  अनौखी  गंध।५।



कविता सुख की थाल तो, है…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2018 at 3:30pm — 12 Comments

नारी दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

माता भगिनी  संगिनी, सुता  रूप  में नार

विपदा दुख पीड़ा सहे, बाँटे लेकिन प्यार।१।



रही जन्म से नार तो, सदा शक्ति का रूप

समझे कैसे खुद रहा, मर्द हवस का कूप।२।



जो नारी का नित करें, पगपग पर सम्मान

संतो सा उनका रहा, सचमुच चरित महान।३।



नारी को जो  कह गये, यहाँ  नरक का द्वार

सब जन उनको जानिए, इस भू पर थे भार।४।



मुझ मूरख का है नहीं, गीता का यह ज्ञान

देवों से बढ़  नार का, कर  मानव सम्मान।५।



बन जायेगा सच कहूँ,…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 11:30am — 15 Comments

होली के दोह - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

होली के दोह

मन करता है साल में, फागुन हों दो चार

देख उदासी नित डरे, होली  का त्योहार।१।

चाहे जितना भी  करो, होली  में हुड़दंग

प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।

तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल

रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।

फागुन  में  गाते  फिरें, सब  रंगीले फाग

उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।

घोट-घोट के पी  रहे, शिव बूटी कह भाँग

होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 7:43pm — 23 Comments

इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम - तरही गजल- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



221   2121     1221      212



सुनता खुदा  न यार  सदाएँ  तो क्या करें

करती असर न आज दुआएँ तो क्या करें ।१।



इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम 

हरदिन का खौफ अब न बताएँ तो क्या करें।२।



इक वक्त था कि लोग बुलाते थे शान  से

देता न  कोई  आज  सदाएँ  तो क्या करें।३।



शाखों लचकना सीख लो पूछे बगैर तुम 

तूफान बन  के  टूटें  हवाएँ तो  क्या करें।४।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 6:30pm — 6 Comments

दबे  पाप  ऊपर  जो  आने  लगे  हैं- गजल



१२२ १२२ १२२ १२२

दबे  पाप  ऊपर  जो  आने  लगे  हैं

सियासत में सब तिलमिलाने लगे हैं।१।



घोटाले वो सबके गिनाने लगे हैं

मगर दोष अपना छिपाने लगे हैं।२।



वतन डूबता है तो अब डूब जाये

सभी खाल अपनी बचाने लगे हैं।३।



रहे कोयले की दलाली में खुद जो

गजब  वो भी उँगलीउठाने लगे हैं।४।



दिया था भरोसा कि लुटने न देंगे

वही बेबसी  अब …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2018 at 4:00pm — 20 Comments

दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर -- (गजल)-- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२ २१२२ २१२२ २१२



खूब नजरें  जो  गढ़ाये  हैं  पराये  माल पर

है भरोसा खूब उनको दोस्तो घड़ियाल पर।१।



भूख बेगारी औ'  नफरत है पसारे पाँव बस

अब भगत आजाद रोते हैं वतन के हाल पर ।२।



आज सम्मोहन  कला  हर नेता को आने लगी

है फिदा जनता यहाँ की हर सियासी चाल पर।३।



खुद  पहन  खादी  चमकते पूछता हूँ आप से

दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर।४।



ऐसा होता तो सुधर  जाते  सभी हाकिम यहाँ

वक्त जड़ता पर कहाँ है अब तमाचा गाल…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2018 at 10:25pm — 8 Comments

फितरत नहीं छिपती है - (गजल)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१ १२२२ २२१ १२२२



नफरत के बबूलों को आँगन में उगाओ मत

पाँवों में स्वयं के अब यूँ शूल चुभाओ मत।१।



ऐसा न हो यारों फिर बन जायें विभीषण वो

यूँ दम्भ में इतना भी अपनों काे सताओ मत।२।



फितरत नहीं छिपती है कैसे भी मुखौटे हों

समझो तो मुखौटे अब चेहरों पे लगाओ मत।३।



माना कि तमस देता तकलीफ बहुत लेकिन

घर को ही जला डाले वो दीप जलाओ मत।४।



ढकने को कमी अपनी आजाद बयानों पर

फतवों के मेरे  हाकिम  पैबंद  लगाओ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2018 at 6:00am — 15 Comments

शीत के दोहे - लक्ष्मण धामी ' मुसाफिर'

शीत के दोहे



बालापन सा हो गया, चहुँदिश तपन अतीत

यौवन सा ठिठुरन लिए, लो आ पहुँची शीत।१।



मौसम बैरी  हो  गया, धुंध ढके हर रूप

कैसै देखे अब भला, नित्य धरा को धूप।२।



शीत लहर के तीर नित, जाड़ा छोड़े खूब

नभ  के  उर  में  पीर  है, आँसू  रोती दूब।३।



हाड़  कँपाती  ठंड  से , सबका  ऐसा हाल

तनमन मागे हर समय, कम्बल स्वेटर शॉल।४।



शीत लहर फैला रही, जाने क्या क्या बात

दिन घूँघट  में  फिर रहा, थरथर काँपे रात।५।



लगी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2018 at 7:27am — 8 Comments

नए साल के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

विपदा  से  हारो  नहीं,  झेलो  उसे  सहर्ष

नित्य खुशी औ' प्यार से, बीते यह नववर्ष।१।



नभ मौसम सागर सभी, कृपा  करें  अपार

जनजीवन पर ना पड़े, विपदाओं की मार।२।



इंद्रधनुष के  रंग सब, बिखरे हों हर बाग

नये वर्ष में मिट सके, भेद भाव का दाग।३।



खुशियों का मकरंद हो, हर आँगन हर द्वार

हो  सब  में  सदभावना, जीने  का  आधार।४।



विदा  है  बीते  साल को, अभिनंदन नव वर्ष

ऋद्धि सिद्धि सुख…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2018 at 8:00am — 12 Comments

हमारी सोच को लाचार कर देगा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२



रवैया  हाकिमों  का  देश  को  बीमार  कर देगा

यहाँ मिलजुल के रहना और भी दुश्वार कर देगा।१।



फँसाया जा रहा है यूँ  अविश्वासों में हमको अब

न जाने कब सखा ही झट पलटके वार कर देगा।२।



सियासत तेल छिड़केगी हमारी बस्तियों में फिर

जलाने का बचा जो काम वो अखबार कर देगा।3।



परोसे झूठ सच जैसा बनाकर मीडिया जो नित

किसी दिन ये हमारी सोच को लाचार कर देगा ।४।



अबोला  शक  बढ़ाता है  रखो  सम्वाद  भाई से…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2018 at 8:30pm — 18 Comments

हार का अहसास उसको खा गया- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122    212


जीतने की जिस किसी ने ठान ली
मंजिलों की राह खुद पहचान ली ।1।


हार का अहसास उसको खा गया
पूछ मत अब ये कि क्यों कर जान ली।2।


है वचन शीशा न कोई टूटेगा
पत्थरों की बात चाहे मान ली ।3।


कोयलों ने होंठ अपने सी लिये
झुंड में आ मेंढकों ने तान ली ।4।


भ्रष्ट जब सारी सियासत है यहाँ
क्या है कैसे कितनी राशी दान ली।5। 

मौलिक अप्रकाशित

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2017 at 1:54pm — 23 Comments

वही वंशज है सूरज का - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

1222 1222 1222 1222



न जीवन राख कर लेना किसी की डाह में यारो

हमेशा सुख सभी का हो तुम्हारी चाह में यारो।1।



विचारों की गहनता हो न हो व्यवहार उथला ये

सुना मोती ही मिलते हैं समुद की थाह में यारो ।2।



वही वंशज है सूरज का बुजुर्गों ने कहा है सच

जलाए दीप जिसने भी तिमिर की राह में यारो ।3।



किसी को देके पीड़ा तुम न उसकी आह ले लेना

न जाने कैसी ज्वाला हो किसी की आह में यारो।4।



गगन के स्वप्न तो देखो धरा लेकिन न त्यागो तुम

हवा में… Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 4:02pm — 22 Comments

अब की बारिश में - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" (गजल)

1222 1222 1222 1222



बहा कर ले गई नदिया खजाना अब की बारिश में

न बच पाया मुहब्बत का ठिकाना अब की बारिश में।1।



डुबो कर घर गए मेरा किसी की आँखों के आँसू

है आई बाढ़ समझे ये जमाना अब की बारिश में।2।



जहाँ मिलते थे तन्हा नित खुदा से आरजू कर हम

न जाने क्यों खुदा भूला बचाना अब की बारिश में।3।



हैं बाहर बदलियाँ रिमझिम कि भीतर आँखों से जलथल

बहुत मुश्किल है सीले खत सुखाना अब की बारिश में।4।



पहुँच हम तक भी जाएगी तुम्हारे तन की हर… Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2017 at 11:13am — 11 Comments

कभी गम के दौर में भी हुई आखें नम नहीं पर- लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

गजल

2121    1221    1212    122



मेरे  रहनुमा  ही   मुझसे  मिले  सूरतें  बदल  के

भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।

न सितारे बोले  उससे  मेरा  हाल क्या है या रब

न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।



खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हूँ मैं

जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।

कहूँ लाल कह के  उसने न  गले  लगाया क्यों मैं

न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यूँ मचल के।4।



बड़ा ख्वाब  था  खिलाऊँ  उसे मोल की भी रोटी

न खरीद…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2017 at 1:10pm — 18 Comments

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