For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रहमत में हरम मागा- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१ १२२२ २२१ १२२२


जितना भी सनम माँगा यूँ हमने है कम माँगा
मरने की नहीं हिम्मत जीने का ही दम माँगा।१।


होते ही सवेरा  नित  साया  भी डराता है
घबरा के उजाले से यूँ रात का तम माँगा।२।


सुनते हैं सभी कहते कम अक्ल हमें लेकिन
खुशियों में अकेले थे इस बात से गम माँगा।३।


चौपाल से बढ़ शायद महफूज लगा हो कुछ
ऐसे  ही  नहीं  उसने  रहमत  में  हरम माँगा।४।


ऐसे ही  नहीं  शबनम  पड़  जाती है रातों को
धरती का रह इक कोना बीजों ने है नम माँगा।५।


जीवन या मरण इस दर अपनी ये नहीं फितरत
इस बुत से कसम खायी उस बुत से करम माँगा।६।


मजबूर बड़ा उससे है कौन "मुसाफिर" कह
जो मौत के साये  से  जीने  का भरम माँगा ।७।


मौलिक/अप्रकाशित

Views: 857

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 13, 2018 at 9:35pm

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by vijay nikore on July 13, 2018 at 10:02am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल लिखी है। बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2018 at 12:14pm

आ. भाई राज नवादवी जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by राज़ नवादवी on July 6, 2018 at 11:33am

जनाब लक्ष्मण धामी जी, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए बधाई क़ुबूल करें. सादर. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 7:49pm

आ. भाई गुमनाम जी, सादर अभिवादन । गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 5, 2018 at 7:27pm

वाह भाई जी वाह,,,,-&७बहुत खूब,

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 6:41pm

आ. भाई बृजेंद्र जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 6:38pm

आ. भाई आरिफ जी, सादर अभिवादन । गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 6:36pm

आ. भाई सुरेंद्र जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार । 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 5, 2018 at 5:54pm

वाह बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
4 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
57 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service