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मातृ दिवस पर दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'


घर को घर सा कर रखे, माँ का अनुपम नेह
बिन माँ  के  भुतहा लगे, चाहे  सज्जित गेह।१।


माँ ही जग का मूल  है, माँ  से ही हर चीज
माता ही धारण करे, सकल विश्व का बीज।२।


सुत के पथ में फूल रख, चुन लेती हर शूल
हर चंदन से बढ़ तभी, उसके पग की धूल।३।


शीतल सुखद बयार बन, माँ हरती सन्ताप
जिसको माँ का ध्यान हो, करे नहीं वो पाप।४।


रखे  कसौटी  पाँव  को, कंटक  बो  संसार
करे सरल  हर  राह माँ, आँचल उसे बुहार।५।


जायों को भर नींद दे, रातों को खुद जाग
माँ के जैसा है भला, किसमें यह अनुराग।६।


सुत को लगती  ठेस जब, माँ को  होती पीर
समझे सुत कैसे भला, सुख दुख आँखों नीर।७।


माँ का मन वो सिन्धु सा, हर दुख जहाँ समाय
लेकिन घन उठ नेह के, पलपल सुख बरसाय।८।


माँ वो पुस्तक  ईश  की, शब्द-शब्द में प्यार
जिसकी  सीखें  तारती, भवसागर  के पार।९।


सबको ममता दान दे, हरपल जिसका आब
माँ  वो  साहूकार  है,  रखती  नहीं  हिसाब।१०।


मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 17, 2018 at 10:42am

आ. भाई रमबली जी, सादर अभिवादन । उपस्थिति और उत्तम सुझाव के लिए आभार।

Comment by रामबली गुप्ता on May 17, 2018 at 8:51am

आदरणीय लक्षमण भाई जी सभी दोहे सुन्दर और सार्थक हुए हैं हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

प्रथम दोहे के प्रथम चरण को 'घर को घर जैसा रखे' करें तो कथ्य और बेहतर हो जाएगा।

तीसरे दोहे के तृतीय चरण को 'हरिचंदन सम श्रेष्ठ है' करके देखें कथ्य और सुंदर हो जाएगा।

चौथे दोहे के प्रथम पद को  'शीतल सुखद बयार माँ, हरती हर संताप।' इस प्रकार करने पर सुंदरता और बढ़ जाएगी।

शेष सब शुभ शुभ।सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2018 at 1:00pm

आ. भाई आरिफ जी, उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by Mohammed Arif on May 15, 2018 at 11:01am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

                              माँ की गरिमा-गौरव को रेखांकित करते बेहतरीन दोहे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2018 at 5:53pm

आ. भाई आषुतोश जी, उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2018 at 5:51pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से लेखन सफल हुआ । स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2018 at 4:30pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण जी बहुत ही उम्दा दोहे हुए हैं ..माँ की सार्थकता और ममता को स्थापित करते शानदार दोहों के लिए हादिक बधाई सादर 

Comment by Samar kabeer on May 14, 2018 at 3:56pm

जनाब लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी आदाब,मातृ दिवस पर बहुत उम्दा और सार्थक दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

दूसरे दोहे में 'चीज़' और 'बीज' की तुकान्तता सहीह नहीं है,देखियेगा ।

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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"सादर"
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"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
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"अवश्य, आदरणीय."
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"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
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"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर उपस्तिथि और सराहना के लिये हार्दिक आभार। "
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