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दबे  पाप  ऊपर  जो  आने  लगे  हैं- गजल


१२२ १२२ १२२ १२२

दबे  पाप  ऊपर  जो  आने  लगे  हैं
सियासत में सब तिलमिलाने लगे हैं।१।


घोटाले वो सबके गिनाने लगे हैं
मगर दोष अपना छिपाने लगे हैं।२।


वतन डूबता है तो अब डूब जाये
सभी खाल अपनी बचाने लगे हैं।३।


रहे कोयले की दलाली में खुद जो
गजब  वो भी उँगलीउठाने लगे हैं।४।


दिया था भरोसा कि लुटने न देंगे
वही बेबसी  अब  जताने  लगे हैं।५।

दसक भर जो पाले हुए थे लुटेरे
कुटिलता से वो मुस्कुाने लगे हैं।


पुरानी  हुई  चौथे  खम्भे  की रीतें
वहाँ भी तो यारी निभााने लगे हैं।७।


कभी सीना छप्पन जो हुंकारते थे
वही  आज  आँसू  बहाने  लगे  हैं।८।


मौलिक-अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on February 26, 2018 at 9:16pm

ठीक है,लेकिन 4थे शैर का सानी मिसरा भी बदलने का प्रयास करें,भाव स्पष्ट नहीं है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 6:41pm

आ. भाई समर जी अभिवादन, आपके मशविरे का अनुपालन करते हुए बदलाव का प्रयास किया है । राय दें । हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 7:17am

आ. भाई सुरेन्द्र जी प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 7:16am

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 7:13am

आ. भाई बृजेश जी, उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 7:12am

आ. भाई बलराम जी, प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 7:10am

आ. भाई नरेंद्र जी उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on February 22, 2018 at 2:34pm

आद0 लक्ष्मण जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बढिया प्रयास। शेष आद0 समर साहब कह चुके हैं। इस ग़ज़ल पर बधाई लीजिये

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 22, 2018 at 1:41pm

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें । मुहतरम समर साहिब के मश्वरे पर ध्यान जरूर दें ।

Comment by रामबली गुप्ता on February 22, 2018 at 12:04pm

भाई लक्ष्मण जी ग़ज़ल पर बढियाँ प्रयास हुआ है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। समर भाई साहब की बातों का। संज्ञान लें।सादर

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