For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,138)

ग़ज़ल को सँवारा है इन दिनों.- ग़ज़ल

मापनी 221 2121 1221 212 

 

हर आदमी ही वक़्त  का मारा है इन दिनों.  

प्रभु के सिवा न कोई सहारा है इन दिनों.  

 

फिरते सभी नक़ाब में चेहरा छुपा-छुपा, 

चारों तरफ अजीब नज़ारा है इन दिनों. 

 

मिलना गले न हाथ मिलाना किसी…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on August 5, 2020 at 5:30pm — 10 Comments

अछूतों सा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२



अछूतों से भी मत करना कभी व्यवहार अछूतों सा

समय तुम को न इस से दे कहीं दुत्कार अछूतों सा।१।

**

कहोगे भार जब उनको तुम्हें कोसेगा अन्तस नित

कहोगे तब स्वयम् को ही यहाँ पर भार अछूतों सा।२।

**

करोना  वैसा  ही  लाया  करें  व्यवहार  जैसा  हम

उसी का भोगता अब फल लगे सन्सार अछूतों सा।३।

**

पता पाओगे  पीड़ा  का  उन्हें  जो  नित्य  डसती है

कहीं पाओगे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2020 at 6:30am — 10 Comments

ग़ज़ल

212 1212 1212 1212



ख़ाक हो गयी खुशी, था आग का पता नहीं ।

ख़्वाब सारे जल गए, मगर धुआँ उठा नहीं ।

पूछिये न हाले दिल यूँ बारहा मेरा सनम ।

ये हमारे दर्दोगम का सिलसिला नया नहीं ।।

इक नज़र से दिल मेरा वो लूट कर चला गया ।

इस सितम पे क्यूँ अभी तलक कोई खफ़ा नहीं ।।

रूबरू था हुस्न …

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2020 at 11:31pm — 7 Comments

वक़्त ने हमसे मुसल्सल इस तरह की रंजिशें (११९ )

एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल 

(2122 2122 2122 212 )

वक़्त ने हमसे मुसल्सल इस तरह की रंजिशें

ख़ुदक़ुशी को हो गईं मज़बूर अपनी ख़्वाहिशें

अजनबी जो भी मिले सारे मुहब्बत से मिले

और की हैं ख़ास अपनों ने हमेशा साज़िशें

क्या ख़ुदा नाराज़ है कुछ आदमी से इन दिनों

गर्मियोँ के बाद आईं थोक में हैं बारिशें

क्यों नुज़ूमी को दिखाता हाथ है तू बार बार

क्या लकीरें हाथ की रोकेंगीं तेरी…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 4, 2020 at 9:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल

2212 2212 2212 2212

मैं ठोकरें खाता रहा मुझ पर तरस आता था कब ।

इस ज़िंदगी पर सच बताएं आपका साया था कब ।।1

जीता रहा मैं बेखुदी में मुस्कुरा कर उम्र भर।

अब याद क्या करना कि मैंने होश को खोया था कब ।।2

वो कहकशां की बज़्म थी, उन बादलों के दरमियां ।

मुझको अभी तक याद है वो चाँद शर्माया था कब ।।3

जलते रहे क्यूँ शमअ में परवाने सारी रात तक ।

तू वस्ल के अंज़ाम का ये फ़लसफ़ा समझा था कब ।।4

जो अश्क़ में डूबा मिला था…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2020 at 5:44pm — 4 Comments

कितना मुश्किल होता है - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



रात से बढ़कर दिन में जलना कितना मुश्किल होता है

सच कहता हूँ निज को छलना कितना मुश्किल होता है।१।

**

जब रिश्तों के बीच में ठण्डक हद से बढ़कर पसरी हो

धूप से बढ़कर छाँव में चलना कितना मुश्किल होता है।२।

**

पेड़ हरे में जो भी मुश्किल सच में हल हो जाती पर

ठूँठ बने तो धार में गलना कितना मुश्किल होता है।३।

**

साथ समय तो लक्ष्य सरल पर समय हठीला होने से

सच में धारा संग भी चलना कितना मुश्किल होता है।४।

**…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2020 at 5:00pm — 8 Comments

गजल- कोख में आने से साँसों के ठहर जाने तक

बह्र- 2122   1122   1122  112/22

कोख में आने से साँसों के ठहर जाने तक

ज़िन्दगी में सकूँ मिलता नहीं मर जाने तक

मुफ़लिसी नेक दिली और ज़माने का दर्द

ये सभी सिर्फ़ सियासत में उतर जाने तक

शादी लड्डू ही नहीं एक बला है इसका

होता अहसास नहीं पंख कतर जाने तक

यार बरसात किसे अच्छी नहीं लगती मगर

खेत खलियान नदी ताल के भर जाने तक

हर तरफ़ शह्र में ख़ूँख़ार दरिन्दे घूमें

बेटियाँ ख़ौफ़ज़दा लौट के घर जाने…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on August 4, 2020 at 6:11am — 10 Comments

ग़ज़ल

221 1221 1221 122

शतरंज में रिश्तों की मैं हारा नहीं होता 

अपनों को बचाने में जो उलझा नहीं होता

यादें तेरी ख़ुश्बू से न दिन रात महकतीं

लम्हा जो तेरे लम्स का ठहरा नहीं होता

भीतर न उसे आने कभी देता मेरा दिल

ख़ंजर पे तेरा नाम जो लिक्खा नहीं होता 

शाख़ों से कहीं उसकी तुम्हें झाँकता बचपन

आँगन का शजर तुमने जो काटा नहीं होता

नफ़रत के समर आयेंगे नफ़रत के शजर पर 

ऐ काश बशर बीज ये बोया नहीं होता

गर…

Continue

Added by anjali gupta on August 4, 2020 at 12:30am — 5 Comments

उसने पी रखी है

2122 2122 2122 2122

वो न बोलेगा हसद की बात उसने पी रखी है

सिर्फ़ होगी प्यार की बरसात उसने पी रखी है

होश में दुनिया सिवा अपने कहाँ कुछ सोचती है

कर रहा है वो सभी की बात उसने पी रखी है

मुँह पे कह देता है कुछ भी दिल में वो रखता नहीं है

वो समझ पाता नहीं हालात उसने पी रखी है

झूठ मक्कारी फ़रेबी ज़ुल्म का तूफ़ाँ खड़ा है

क्या वो सह पायेगा झंझावात? उसने पी रखी है

जबकि सब दौर-ए-जहाँ में लूटकर घर भर रहे हों…

Continue

Added by आशीष यादव on August 3, 2020 at 12:30pm — 4 Comments

शिवत्व

जब मन वीणा के तारों पर 

स्वर शिवत्व झन्कार हुआ

चिरकालिक,शाश्वत ,असीम

प्रकटा , अमृत संचार हुआ

निर्गत हुए भविष्य  , भूत

वर्तमान अधिवास हुआ

कालातीत, निरन्तर,अक्षय

महाकाल का भास हुआ

शव समान तन,आकर्षण से

मन विमुक्त आकाश हुआ

काट सर्व बन्धन इस जग के

परम तत्व , निर्बाध हुआ

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on August 3, 2020 at 10:30am — 4 Comments

लोग घर के हों या कि बाहर के...(ग़ज़ल : सालिक गणवीर)

(2122 1212 22/122)

लोग घर के हों या कि बाहर के

प्यार करिएगा उनसे जी भर के

जाने क्या कह दिया है क़तरे ने

हौसले पस्त हैं समंदर के

जिस्म पर जब कोई निशाँ ही नहीं

कौन देखेगा ज़ख़्म अंदर के

दोस्ती उन से कर ली दरिया ने

जो थे दुश्मन कभी समंदर के

एक शीशे से ख़ौफ़ खाते हैं

लोग जो लग रहे थे पत्थर के

एक बस माँ को बाँट पाए नहीं

घर के टुकड़े हुए बराबर के

गरचे हर घर की है कहानी…

Continue

Added by सालिक गणवीर on August 2, 2020 at 3:30pm — 15 Comments

वो भी नहीं रही (ग़ज़ल - शाहिद फ़िरोज़पुरी)

बह्रे मज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

221  /  2121 /  1221  /  212



मुहलत जो ग़म से पाई थी वो भी नहीं रही

इक आस जगमगाई थी वो भी नहीं रही [1]

देकर लहू जिगर का मसर्रत जो मुट्ठी भर

हिस्से में मेरे आई थी वो भी नहीं रही [2]

शाहाना तौर हम कभी अपना नहीं सके

आदत में जो गदाई थी वो भी नहीं रही [3]

दुनिया घिरी है चारों तरफ़ से बुराई में

बंदों में जो भलाई थी वो भी नहीं रही…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on August 2, 2020 at 3:25pm — 12 Comments

राखी

राखी

"अभी आ जाएगी तुम्हारी लालची बहन हमारा बजट ख़राब करने,क्या उसे नही पता? लोकडाउन के कारण हमारी आर्थिक हालत ठीक नहीं है? अब उसका बोझ भी उठाना पड़ेगा और राखी का उपहार भी देना पड़ेगा ,"भाभी मेरे भाई से कह रही थी।

"अरे मीनू ऐसे क्यों बोल रही हो? दीदी बहुत समझदार हैं ।इस बार उन्हें हम कोई घर में रखा कोई सूट या साड़ी दे देंगे।"

"मेरी बात ध्यान से सुन लो ! मैं अपना कोई सूट उन्हें नहीं देने वाली,वो मुझे अपने मायके से मिले हैं।" मेरा भाई लाचार सा खड़ा ये सब सुन रहा था। मैं दरवाजे…

Continue

Added by Madhu Passi 'महक' on August 2, 2020 at 3:16pm — 6 Comments

मारे गए गुलफाम(लघुकथा)

फिर कौवा पहचान लिया गया ', वृद्ध काक अपने साथियों से बोला।

' उस मूर्ख काक की दुर्दशा - कथा शुरू कैसे हुई?' काक मंडली ने सवाल उछाला।

' वही रंग का गुमान उसको ले डूबा।कोयल अपने सुमधुर सुर के चलते पूजी जाती।लोग उसे सुनने का जतन करते।यह देख वह ठिंगना कौवा कोयल बनने चला।रंग कोयल जैसा था ही।बस मौका देखकर कोयलों के समूह में शामिल हो गया। उनके साथ लगा रहता। उसे गुमान हो गया कि अब वह भी कोयल हो गया। वह अन्य कौवों को टेढ़ी नजर से देखता।'

'फिर क्या हुआ दद्दा?'…

Continue

Added by Manan Kumar singh on August 2, 2020 at 6:30am — No Comments

हौंसला बुलंद कर

मुँह लटकाए बैठा है क्यूँ

हौंसला अपना बुलंद कर

गोर्वित वंश का वंशज है तू

निडर होकर आगे बढ़ ||

 

कदम चूमेगी मंजिल एक दिन

अनिश्चितता ना हृदय धर

कट जायेगी दुख की घड़ियाँ

इसकी ना तू चिंता कर ||

 

हर पल हर क्षण वक़्त बदलता

इसके संग तू खुद को बदल

 कर्तव्य धर्म की पुजा कर

कर्मठता संग तू आगे बढ़ ||

 

स्वर्ण इतिहास है तेरे वंश का

उसकों तू ना कलंकित कर

समस्याओ से यदि टूट जाएगा…

Continue

Added by PHOOL SINGH on August 1, 2020 at 1:30pm — 2 Comments

तो कोई  करे भी तो क्या करे

अनगिन हों सूरज दहकते हों तारे 

पर साँसों में भी घुल जाए अँधियारा 

तो कोई  करे भी तो क्या करे  

प्रहरी हों रक्षक पति ही पति हों 

पर फांसी हो जाये निज साड़ी किनारा 

तो कोई  करे भी तो क्या करे …

Continue

Added by amita tiwari on August 1, 2020 at 5:30am — 3 Comments

देशभक्ति

छोटी सी इस बात पर ,

हुजूर जरा गौर करें।

देश के लिए कुछ करना हो तो,

खुद से ही शुरुआत करें।।

ना सोचें कौन साथ देगा,

फर्ज अपना अदा करें।

देश के लिए,देश की खातिर,

खुद को ही अर्पण करें।।

हर जरूरतमंद के लिए ,

मसीहा बन खड़े रहें।

गर जरूरत आन पड़े तो,

जान भी कुरबां करें।।

देशभक्ति दिल में जगाकर,

खुद में परिवर्तन करें।

स्वदेशी को अपनाएं और

विदेशी का बहिष्कार…

Continue

Added by Neeta Tayal on July 31, 2020 at 1:30pm — 2 Comments

तू अपने आप को अब मेरे रू ब रू कर दे(११८ )

(1212 1122 1212 22 /112 )

तू अपने आप को अब मेरे रू ब रू कर दे

बहुत दिनों की मेरी पूरी आरज़ू कर दे

**

वबा के वार से दुश्वार हो गया जीना

ख़ुदाया अम्न को तारी तू चार सू कर दे

**

बता मैं दश्त में पानी कहाँ तलाश करूँ

चल अपनी चश्म के अश्कों से बा-वज़ू कर दे

**

ख़ुदा किसी को न औलाद ऐसी अब देना

जो वालिदेन की इज़्ज़त लहू लहू कर दे

**

मैं जानता हूँ सदाओं की भीड़…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 30, 2020 at 4:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल -दौर वह यारो गया और उसके दीवाने गए

बह्र- 2122  2122  2122  212

मीडिया की फ़ौज लेकर रह्म कब खाने गए

झोपड़ी में सिर्फ़ वे दिल अपने बहलाने गए

रेडियो से ही हुआ करती थी सुब्ह-ओ-शाम जब

दौर वह यारो गया और उसके दीवाने गए

नीम पीपल छाँछ लस्सी बाजरे की रोटियाँ

ज़िन्दगी से गाँव की ये सारे अफ़साने गए

जोड़ते थे जो दिलों को अपनी माटी से यहाँ

फ़ाग चैता और कजरी के वे सब गाने गए

पूछने पर लाल के माँ ने कहा पापा तेरे

ओढ़कर प्यारा तिरंगा चाँद को लाने…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on July 30, 2020 at 11:16am — 13 Comments

पानी गिर रहा है

2122 2122 2122 2122

इश्क बनता जा रहा व्यापार पानी गिर रहा है 

हुस्न रस्ते में खड़ा लाचार पानी गिर रहा है

चंद जुगनू पूँछ पर बत्ती लगाकर सूर्य को ही

बेहयाई से रहे ललकार पानी गिर रहा है 

टाँगकर झोला फ़कीरी का लबादा ओढ़कर अब

हो रहा खैरात का व्यापार पानी गिर रहा है 

बाप दादों की कमाई को सरे नीलाम कर वह

खुद को साबित कर रहा हुँशियार पानी गिर रहा है 

झूठ के लश्कर बुलंदी की तरफ बढ़ने लगे हैं

साँच की होने लगी…

Continue

Added by आशीष यादव on July 30, 2020 at 5:21am — 8 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
10 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service