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ग़ज़ल _(रहबरी उनकी मुझको हासिल है)

(फाइ ला तुन _मफा इलुन _फ़ेलुन)

रहबरी उनकी मुझको हासिल है l

अब भला किसको फिकरे मंज़िल है l

दे सफ़ाई न क़त्ल पर वर्ना

लोग समझेंगे तू ही क़ातिल है l

उस हसीं से गिला है सिर्फ यही

वो वफ़ाओं से मेरी गाफिल है l

दोस्तों से वो राय लेते हैं

सिर्फ़ उलफत में ये ही मुश्किल है l

ढूँढ कर लाए तो कोई ऎसा

मेरा महबूब माहे कामिल है l

जो बचाता है बदनज़र से उन्हें

उनके रुखसार का ही वो तिल है…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 15, 2019 at 12:00pm — 11 Comments

पलकों पे ठहर जाता है - ग़ज़ल

मापनी - 2122, 1122,1122, 22(112)

 

दूर साहिल हो भले, पार उतर जाता है

इश्क में जब भी कोई हद से गुज़र जाता है

 

है तो मुश्किल यहाँ तकदीर बदलना लेकिन    

माँ दुआ दे तो मुकद्दर भी सँवर जाता है  

 

हमसफ़र साथ रहे कोई…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on April 15, 2019 at 9:30am — 6 Comments

संविधान शिल्पी

भीमराव बहुजन के त्राता

जनजीवन के भाग्य विधाता

सदा विषमता से टकराए

ज्वलित दलित हित आगे आए ll

लड़कर भिड़कर भेद मिटाए

पग पीछे को नहीं हटाए

सहकर ठोकर राह बनाए

तम से गम से ना घबराए ll

बोधिसत्व भारत के ज्ञानी

भारतरत्न भीम हैं शानी

दूर किये अश्पृश्य बुराई

वर्णभेद की पाटे खाई ll

छुआछूत का भूत भगाए

समरसता समाज में लाए

बहुजन हित की लड़े लड़ाई

वंचित को अधिकार दिलाई ll

शोषित कुचले जन के…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on April 14, 2019 at 6:47pm — 8 Comments

राजनीति - लघुकथा -

राजनीति - लघुकथा -

आज शहर में देश के जाने माने और सबसे बड़े नेता जी की चुनावी रैली थी। समूचा शहर उमड़ पड़ा था। हर तबके और हर समुदाय के लोग मौजूद थे। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी लोगों ने नेता जी से बड़ी आशायें लगा रखी थीं।

एक तो पहले ही नेताजी तीन घंटे देरी से आये। धूप और गर्मी से लोग परेशान थे। मगर फिर भी सब डटे हुए थे क्योंकि अधिकाँश लोग तो पैसे लेकर सभा में आये थे। बचे हुए लोग भविष्य में कुछ मिलने की आशायें लगाये थे। नेताजी ताबड़तोड़ डेढ़ घंटे अपना चिर परिचित  भाषण देकर चले…

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Added by TEJ VEER SINGH on April 14, 2019 at 11:22am — 8 Comments

डाटा रिकवरी! (लघुकथा) :

कई दिनों से टल रहा काम निबटा कर, थके-हारे मिर्ज़ा मासाब अपने अज़ीज़ दोस्त पंडित जी के साथ अपने घर वापस पहुंचे। अपनी नाराज़ बेगम साहिबा को कुछ इस अंदाज़ में देखने लगे कि बेगम का ग़ुस्सा फ़ुर्र से उड़ गया!



"क्या बात है पंडित जी! आज ये हमें इस तरह क्यूँ घूर रहे हैं!" कुछ शरमा कर मुस्कराते हुए बेगम ने अपने पल्लू की आड़ लेकर कहा।



"डाटा रिकवरी करवा कर आये हैं मिर्ज़ा जी के लेपटॉप की!" पंडित जी ने दोस्त का कंधा दबाते हुए कहा।



"अच्छा! वो तो बहुत बढ़िया किया आपने। बहुत…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 13, 2019 at 11:30pm — 5 Comments

नवगीत- राजनीति के पंडे

लेकर आये

हैं जुगाड़ से,

रंग-बिरंगे झंडे

सजा रहे

हर जगह दुकानें,

राजनीति के पंडे

 

खंडित जन

विश्वास हो रहा…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on April 13, 2019 at 10:07pm — 6 Comments

'आम चुनाव और नेता'

आल्हा छंद (16, 15 अंत में गुरु लघु)

लोकतंत्र के महापर्व में, हुए सभी नेता तैयार

शब्द बाण से वार करें वे, छोड़ छाड़ के शिष्टाचार।।

युध्द भूमि सा लगता भारत, जहाँ मचा है हाहाकार

येन केन पाने को सत्ता, अपशब्दों की हो बौछार।।

खून करें वे लोकतंत्र का, जुमले हैं इनके हथियार

हित जनता का भूल गए वे, ऐसा इनका है आचार

हे जन मन तुम जाग उठो अब, व्यर्थ न जाये यह त्योहार

ऐसा कुछ इस बार करो तुम, राजनीति बदले आकार ।।

रंग बराबर बदलें ऐसे,…

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Added by Vivek Pandey Dwij on April 13, 2019 at 8:27am — 6 Comments

महाभुजंगप्रयात सवैया-रामबली गुप्ता

सूत्र-आठ यगण प्रति पद; 122x8

चुनो मार्ग सच्चा करो कर्म अच्छे जहां में तुम्हारा सदा नाम होगा।

करो यत्न श्रद्धा व निष्ठा भरे तो न पूरा भला कौन सा काम होगा।।

न निर्बाध है लक्ष्य की साधना जूझना मुश्किलों से सरे-आम होगा।

इन्हें जीतना पीढ़ियों के लिए भी तुम्हारा नया एक पैगाम होगा।।1।।

करे सामना धैर्य से मुश्किलों का न कर्तव्य से पैर पीछे हटाए।

नहीं हार से हार माने जहां में कभी कोशिशों से न जो जी चुराए।।

अँधेरा घना या निशा हो घनेरी…

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Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2019 at 7:32am — 4 Comments

मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है (४२ )

(१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२ )

.

मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है 

उक़ूल पर ज्यों पड़े हैं ताले अदब का ख़ुर्शीद ढल रहा है 

**

किसी की माँ का नहीं है रिश्ता किसी भी दल से मगर यहाँ पर

ये पाक रिश्ता भरी सभा में बिना सबब ही उछल रहा है

**

किसी ने की याद सात पुश्तें किसी को कह डाले चोर कोई

जुबान बस में नहीं किसी की जुबाँ का लहज़ा बदल रहा है …

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 13, 2019 at 1:00am — 3 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 12

मुहब्बत की ख़ातिर ज़िगर कीजिये ।

अभी से न यूँ चश्मे तर कीजिये ।।

गुजारा तभी है चमन में हुजूऱ ।

हर इक ज़ुल्म को अपने सर कीजिये ।।

करेगी हक़ीक़त बयां जिंदगी ।

मेरे साथ कुछ दिन सफ़र कीजिये ।।

पहुँच जाऊं मैं रूह तक आपकी ।

ज़रा थोड़ी आसां डगर कीजिये ।।

वो पढ़ते हैं जब खत के हर हर्फ़ को ।

तो मज़मून क्यूँ मुख़्तसर कीजिए ।।

लगे मुन्तज़िर गर…

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Added by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2019 at 10:34pm — 2 Comments

कुण्डलिया छंद-

ढलती जाती उम्र में, डगमग होती नाव।

कभी-कभी नैराश्य के, आ जाते हैं भाव।।

आ जाते हैं भाव, और दुख होता भारी।

लगने लगती व्यर्थ, तभी यह दुनियादारी।।

जीर्णशीर्ण यह नाव,चले हिचकोले खाती।

घिरता है अवसाद, उम्र जब ढलती जाती।।

2-

माला फेरी उम्रभर, तीरथ किए हजार।

काम क्रोध मद मोह से, पाया कभी न पार।।

पाया कभी न पार, जिन्दगी व्यर्थ गँवाई।

बीत गई अब उम्र, विदा की बेला आई।।

मन में रखकर द्वेष, बैर अपनों से पाला।

धुला न मन का मैल,जपी निसदिन ही…

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Added by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:22pm — 6 Comments

उम्र....

उम्र ...



गर्भ से चलती है

धरती पर पलती है

आँखों को मलती है

संग साँसों के चलती है

उम्र

जिस्म की दासी है

युग युग से प्यासी है

ख़ुशी और उदासी है

छलती ही जाती है

उम्र

मस्तानी जवानी है

अधूरी सी कहानी है

लहरों की रवानी है

रेत सी फिसल जाती है

उम्र

काल की दुपहरी है

चिताओं पर ठहरी है

ज़माने से बहरी है

धधक जाती है चुपके से

उम्र

कल तक जो चलती थी

आशाओं…

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Added by Sushil Sarna on April 12, 2019 at 5:16pm — 4 Comments

देशभक्ति का चोला

देशभक्ति का चोला पहन

देश का युवा घूम रहा

मतवाला होके डोल रहा

ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||

 

घूम घूम कर,

झूम झूम कर

वीरो की गाथा खोज रहा

ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||

 

बलिदान को अपने वीरो के

हर पल हर क्षण को

रम रमा कर यादों में अपनी

खोया-खोया फिर रहा||

ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||

 

"मौलिक और अप्रकाशित"

 

Added by PHOOL SINGH on April 12, 2019 at 3:30pm — No Comments

कर्म ओर किस्मत

उम्र संग ये बढती है

कर्म से अपने चलती है

परीक्षा धैर्य की लेकर

मार्ग प्रशस्त ये करती है||

 

कर्म के पथ पर चढ़कर

ये, अगले कदम को रखती है

हार-जीत के थपेड़े दे देकर

निखार हुनर में करती है||

 

त्रुटी को सुधार के तेरी

आत्मविश्वास से बढ़ती है

उतार चढ़ाव के मार्ग बना

हर परस्थितियो लड़ने को  

तैयार हमें ये करती है||

 

तरक्की की सीढी चढ़े सदा

लक्ष्य निर्धारित करती है

उठा-गिरा…

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Added by PHOOL SINGH on April 12, 2019 at 3:05pm — 2 Comments

कुछ क्षणिकाएं :

कुछ क्षणिकाएं :

उल्फ़त की निशानी

आँख में

थिरकता

बूँद भर पानी

...........................

समाज

अंधेरों के घेरों में

सभ्यता

न साँझ में

न सवेरों में

..........................

माँ की लाश

बिलखता विश्वास

टूटा आकाश

बेटी के पास

.............................

जीवन रंग

हुए बदरंग

रिश्तों के संग

...............................

दृष्टि में विकार

बढ़ता व्यभिचार

नारी…

Added by Sushil Sarna on April 11, 2019 at 7:51pm — 2 Comments

जीना हमकों सिखा दिया

वक्त की उठक बैटक ने

जीना हमकों सिखा दिया

जिन्दगी की पेचीदा परिस्थितयों से

लड़ना हमकों सिखा दिया

जीना हमकों सिखा दिया||

 

मुखौटों में छुपे चहरों से

रूबरू हमकों करा दिया

क्या कहेगी ये दुनियाँ

इस उलझन से जो छुड़ा दिया   

जीना हमकों सिखा दिया ||

 

लोग कहे तो हंसे हम

और कहे तो रोये

लोगों के हाथो चलती, जिंदगी को

खुल के जीना सिखा दिया

जीना हमकों सीखा दिया ||

 

साथ ना छोड़ेगे के…

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Added by PHOOL SINGH on April 11, 2019 at 5:21pm — 3 Comments

पांच दोहे :

पांच दोहे :

माँ की पूजा जो करे, तज कर सारे काम।

उसके जीवन में सदा ,पूरन होते काम।।

जयकारों से गूँजता, है माँ का दरबार।

दरस मात्र से जीव का, होता बेड़ा पार।।



माँ के पावन नाम की, महिमा अपरम्पार।

बाल न बाँका भक्त का, कर पाता संसार।।



माँ की पूजा-अर्चना, करता जो निष्काम।

मिल जाता उस भक्त को , माँ का पावन धाम।।

चलकर नंगे पाँव जो, आता तेरे धाम।

पूरन होते जीव के, मुश्किल सारे काम।।

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on April 10, 2019 at 5:44pm — 8 Comments

नवरात्र पर दोहे

घर- घर हो घट स्थापना, लगे नए पंडाल

हर मन उल्लासित दिखे, ले पूजा की थाल।।

चैत्र मास नवरात्र में, हो माँ का गुण गान

दुर्गुण सारा जल उठे, हो इसका भी ध्यान।।

यह सारा संसार ही, माँ का है दरबार

माँ ही बस इक सत्य है, बाकी सब बेकार।।

बालक बृंद अबोध मैं, माँ ममता की खान

जैसा भी हूँ मैं अभी, रखना माँ तू ध्यान।।

माँ के ही सब लाल हम, माँ ही खेवनहार

दया दृष्टि जब माँ करे, हों भवसागर पार।।

(मौलिक व…

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Added by Vivek Pandey Dwij on April 9, 2019 at 7:00pm — 6 Comments

संस्कार- लघुकथा

"हम तो आज भी पल्लू सरक जाए तो तुरंत ठीक कर लेते हैं. लेकिन ये आजकल की बहुरिया, मजाल है कि पल्लू सर पर टिके", रुक्मणि को नई बहू का कपड़ा पहनना बिलकुल नहीं भा रहा था और वह रवि के सामने भी कहने से नहीं चूकीं.

रवि ने पलटकर उनकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए. वह भी नई बहू को पिछले दो दिन से बमुश्किल साड़ी सँभालते देख रहे थे.

"अब हर आदमी तुम्हारी तरह तो नहीं बन सकता ना राजेश की अम्मा, तुमको पता तो है कि बहू शहर में नौकरी करती है और इसके नीचे कई लोग काम भी करते हैं", रवि ने बात सँभालने की कोशिश…

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Added by विनय कुमार on April 9, 2019 at 6:18pm — 12 Comments

'आह क्या सीन है!' (लघुकथा) :

कई दिनों देश-विदेश यात्राएं कर भिन्न-भिन्न परिस्थितियों और परिदृश्यों की साक्षी होने के बाद एक मशहूर पुस्तकालय का मुआयना करते हुए उन दोनों ने अपनी लम्बी चुप्पी यूं तोड़ ही दी :



"यह भी सभ्य लोगों का ही एक अड्डा है!"



"बाहर से इंसान कुछ भी दिखे, अंदर से तो प्राय: उसका चरित्र भद्दा है!" सभ्यता की बात पर असभ्यता ने कहा।



"संक्रमण-काल है! वैश्वीकरण में मिलावट का दौर है! स्वार्थी तकनीकी तरक़्क़ी का मुद्दा है!" एक आह भरते हुए सभ्यता ने कहा और पुस्तकालय में सलीके से…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2019 at 9:23pm — 7 Comments

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