जब सत्य की नदी बहती है
तो, झूठ के पत्थर
अपना वजूद खो देते है ॥
जब सत्य की आंधी आती है
तो, झूठ के बांस -बल्लियों से
बने मकान ढह जाते है ॥
जब सत्य के रामचन्द्र आते है
तो झूठ का रावण
भस्म हो जाता है ॥
और जब सत्य से प्यार हो जाता है
तो , हम शबरी की तरह
जूठे बैर भगवान को भोग लगाते है ॥
Added by baban pandey on July 12, 2010 at 7:39am —
2 Comments
**********
" आँगन "
**********
अब कोई चिड़िया नहीं आती मेरे आँगन के दरख़्त पर...
बेटे को गाँव के मेले से एक गुलेल दिलाई थी मैंने...
अब कोई तितली नहीं मंडराती
मेरे आँगन में बने कुए के पास लगे गेंदे के पौधे पर...
बेटे ने कुछ तितलियाँ पकड़ कर अपनी कॉपी में दबा ली थीं..
अब गैया नहीं खड़ी होती मेरे द्वार पर...
भगवान को लगे भोग की रोटी खाने...
बहुएं अब आँगन को गोबर से…
Continue
Added by Dinesh Choubey on July 11, 2010 at 6:58pm —
6 Comments
दोस्ती ... एक कलम
और मित्रों का प्यार .....एक अमित स्याही
दोस्तों से गुजारिश
ये स्याही मुझे देते रहो
इस स्याही से लिखना है मुझे
एक ऐसी कहानी
जिसे पढ़कर ......
कोई कभी ना कहे
"दोस्त , दोस्त ना रहा " ॥
दोस्त .... एक कुदाल
और दोस्ती ....मेहनत
आओ ... साथ मिलकर
मोहब्बत के कुछ ऐसे पेड़ लगायें
जिसके फल
प्रभु के चरणों में रखे जा सकें ॥
दोस्त है.... फूल
और दोस्ती ...उसकी खुशबू
आओ ! मेरे दोस्त
दिल…
Continue
Added by baban pandey on July 11, 2010 at 8:45am —
3 Comments
वो इक अलाव सा जिगर में लिए फिरते हैं ,
चिराग महल के झोपडी के खूँ से जलते हैं !
बंद भारत ने ठंडे कर दिए चूल्हे लाखों ,
है किस तरह की जंग रहनुमा जो लड़ते हैं
रोटियां सेंकते लाशों पे आपने लालच की,
ये कर्णधार मुझे तो जल्लाद लगते हैं !
वो ढूँढते है भगवान को मंदिर की ओट से,
हमारी आस्था ऐसी जो चक्की भी पूजते हैं !
अपना जाना जो उन्हें जान जाएगी "बागी"
वो ज़हरी नाग हैं जो आस्तीं में रहते है !
( मैं आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,…
Continue
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 11:30pm —
10 Comments
श्वेत धवल सी ओ झरना
जीवन मेरा सहज कर देना
कैसे तुम वेगमय हो
इसका राज मुझे बतला देना .... ॥
सब कहते है ऊपर जाओ
पर तुम नीचे क्यों आती हो
क्यों अपने साथ -साथ
पथ्थरो पर कहर बरपाती हो ॥
जीवों के तुम तृप्तिदायक
माना , संगीत तुम्हारा है पायल
पर , अपने थपेड़ों से तुमने
वृक्षों को क्यों कर दिया घायल ॥
भर बरसात उछलती हो तुम
पक्षियो जैसी साल भर नहीं कूकती
गर्मियों में जब हलक हो आतुर
उसी समय तुम क्यों सूखती… Continue
Added by baban pandey on July 10, 2010 at 5:30pm —
3 Comments
महानुभावों "नौ" की महत्ता तो जगजाहिर है ।
यह सबसे बड़ा अंक है । (० से ९)
नौ का गुणनफल करने पर भी प्राप्त संख्या के
अंकों का योग नौ ही होता है । जैसे- अठारह (१+८=९),
सत्ताईस (२+७=९),छत्तीस (३+६=९),पैंतालिस (४+५=९),
चौवन (५+४=९),तिरसठ (६+३=९),बहत्तर (७+२=९),
एकासी (८+१=९),नब्बे (९+०=९) ..........जहाँ तक जाएँगे...वहाँ तक...(९०+९=९९= ९+९=१८= ९)..........अनंत......
नौ की महत्ता को प्रतिपादित करती हैं ये मेरी पंक्तियाँ -
राम के नाम को… Continue
Added by Prabhakar Pandey on July 10, 2010 at 5:26pm —
2 Comments
वृक्ष की जड़े मांगती धूप
धूप मांगती बरसा
घर से बाहर , मेरे साजन
सावन में मन तरसा ॥
गोलियां रोज खाती हू
तुम्हारे आने की आस का
गालियां रोज सुनती हू
ननद- ससुर -सास का ॥
देश के दुश्मन तुम भगाओ
मैं जुझू , घर के आँगन से
मेरी गदराई जवानी
कब तक बचेगी , रावण से ॥
पायल की झंकार अब सुनी
गीत नहीं निकलता कंगन से
बुला रही है मुझे गोपियां
अब मथुरा -वृन्दावन से ॥
जोगन बन मैं भाग चलुगी
तुम देश -देश को…
Continue
Added by baban pandey on July 10, 2010 at 7:42am —
1 Comment
जब चारों ओर केवल अन्धकार का अस्तित्व था, न सूर्य था न चन्द्रमा और न कहीं ग्रह-नक्षत्र या तारे थे, दिन एवं रात्रि का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था, अग्नि, पृथ्वी, जल एवं वायु का भी कोई अस्तित्व नहीं था, तब एकमात्र भगवान शिव की ही सत्ता विद्यमान थी; और यह वह सत्ता थी जो अनादि एवं अनंत है।
एक बार भगवान शिव की इच्छा सृष्टि की रचना करने की हुई। उनकी एक से अनेक होने की इच्छा हुई। मन में ऐसे संकल्प के जन्म लेते ही भगवान शिव ने अपनी परा शक्ति अम्बिका को प्रकट किया। उन्होंने उनसे कहा, ‘‘हमें सृष्टि…
Continue
Added by Neelam Upadhyaya on July 9, 2010 at 4:07pm —
6 Comments
ज़िन्दगी जो भी तेरे अहकाम रहे
..वो सब के सब मिरे मुक़ाम रहे |
अय्यार कम नहीं हर बशर-ए-मौजूदा
पर तेरी जिद के आगे सब नाकाम रहे |
हर रास्ता खत्म था इक दोराहे पर..
क्या कहें किस तलातुम बेआराम रहे |
रंग-ए-खूं की खबर हर सम्त थी फैली
हम फिर भी गफ़लत में सुबहोशाम रहे |
इक मौत ही है जो बेख़ौफ़ तुझसे
वरना जो लड़े गुजरे अय्याम रहे |
हर शख्स ख्वाहिशमंद है केवल इतना
कुछ न हो बस वो चर्चा-ए-आम रहे |
सतर ना छुप सकेगी…
Continue
Added by विवेक मिश्र on July 9, 2010 at 3:30pm —
6 Comments
श्री सूर्य नमस्कार मन्त्र
~~
ॐ मित्राय नम:॥1॥
ॐ रवये नम:॥2॥
ॐ सूर्याय नम:॥3॥
ॐ भानवे नम:॥4॥
ॐ खगाय नम:॥5॥
ॐ पूष्णे नम:॥6॥
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:॥7॥
ॐ मरीचये नम:॥8॥
ॐ आदित्याय नम:॥9॥
ॐ सवित्रे नम:॥10॥
ॐ अर्काय नम:॥11॥
ॐ भास्कराय नम:॥12॥
-:##############:-
श्री गायत्री मन्त्र
~~
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम्
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on July 9, 2010 at 3:16pm —
9 Comments
आज फैसन का जमाना हैं ,
सारा जग माना हैं ,
हम सब अब ये भूल गए हैं ,
सच्चाई से दूर गए हैं ,
जिसको छुपाना हैं ,
उसकी नुमाइस होती हैं ,
जिसको दिखाना हैं ,
उसको छुपाई जाती हैं,
मैं नहीं ये तो ,
सारा जग माना हैं ,
आज फैसन का जमाना हैं ,
खाने में भी इसकी ,
अब होती नुमाइस हैं ,
भुट्टे को भूलने लगे ,
पापकोन की चोवाइस हैं ,
थोड़े में पेट भर जाये ,
खर्चा भी कम आये ,
मगर रोटी चावल नहीं ,
रेडी फॉर इट लाना हैं ,
आज…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on July 9, 2010 at 1:42pm —
1 Comment
गरीबी और भ्रष्टाचार
एक तरह से देखे तो गरीबी और भ्रष्टाचार शास्वत समस्या है | यह समस्या सृष्टि के उद्भव से ही है और शायद सृष्टि के अंत तक रहेगी | जब हमारा राष्ट्र विश्व गुरु हुआ करता था तब भी ये समस्या किसी न किसी रूप में विद्यमान थी | शास्त्रों में भी इसका वर्णन मिलता है | समय के साथ ये समस्या बढती गई और अब इसने उग्र रूप ले लिया है | आज समाज का कोई भी कोना और वर्ग इससे अछूता नहीं है |
अगर हम चिंतन करे तो पता चलता है कि गरीबी और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पूरक है | गरीबी से त्रस्त ब्यक्ति…
Continue
Added by BIJAY PATHAK on July 9, 2010 at 1:30pm —
3 Comments
एक लड़का था । बचपन में ही उसके माता-पिता गुजर गए । उसका लालन-पालन उसके नाना ने किया । लड़का अभी आठ-नौ साल का था तभी उसपर दुनिया देखने का भूत सवार हो गया । वह बार-बार अपने नाना से कहता कि मैं दुनिया देखना चाहता हूँ ? नाना समझाते कि बेटा अभी तो तुम्हारे पास बहुत समय है, जब तू बड़ा होगा, दुनियादारी में लगेगा तो तूझे खुद मालूम हो जाएगा कि दुनिया क्या है ? पर लड़का अपने नाना की एक न सुनता और बार-बार दुनिया देखने की रट लगाता ।
एक दिन लड़के के नाना ने कहा, "चलो आज मैं तुमको दुनिया दिखाता हूँ" ।…
Continue
Added by Prabhakar Pandey on July 9, 2010 at 10:08am —
4 Comments
समर्थन मूल्य पर अनाज बेचकर , किसान हुए बेहाल
उत्पादों का स्वं मूल्य लगाकर , पूंजीपति हुए निहाल ॥
अरहर दाल ९० रूपये किलो , बोल- बोलकर लोग खूब चिल्लाते
५ रूपये के टैबलेट को , पूंजीपति १०० रूपये का मूल्य दिखाते ॥
मंहगाई का दीया दिखाकर , पूंजीपति खूब कमाते
कड़े -कड़े नोटों की माला , नेताओं को पहनाते ॥
चुनाव के वक़्त दिया था , नेताओं को चंदा
जी भर कर दाम बढाओ , कर लो गोरखधंधा ॥
दवा, सीमेंट और लोहा पर , सरकार की कुछ नहीं चलती
मंहगाई…
Continue
Added by baban pandey on July 9, 2010 at 8:22am —
4 Comments
ताजे फल , ताज़ी सब्जियां
बनाती है , स्वस्थ खून
ताजे विचार , ताज़ी सोच
बनाती है , स्वस्थ रिश्ते ॥
स्वस्थ रिश्ते
चढ़ाती है सीढिया
सफलता की ॥
और फिर
चंचल बनते है हम
लक्ष्मी बरसने लगती है ॥
फिर एक दिन ....
हमें जाना होता है
शाश्वत सत्य की दुनियां में
साथ नहीं जाती लक्ष्मी ॥
दुनियां .....
उसे और लक्ष्मी को भूल जाती है
याद रहती है
सिर्फ ...उसके द्वारा बनाये गए
स्वस्थ रिश्ते ॥
Added by baban pandey on July 9, 2010 at 7:48am —
3 Comments
कृति चर्चा:
चुटकी-चुटकी चाँदनी : दोहा की मन्दाकिनी
चर्चाकार : संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कृति विवरण : चुटकी-चुटकी चाँदनी, दोहा संग्रह, चन्द्रसेन 'विराट', आकार डिमाई, सलिल्ड, बहुरंगी आवरण, पृष्ठ १५६, समान्तर प्रकाशन, तराना, उज्जैन, म.प्र.
*
हिंदी ही नहीं विश्व वांग्मय के समयजयी छंद दोहा को सिद्ध करना किसी भी कवि के लिये टेढ़ी खीर है. आधुनिक युग के जायसी विराट जी ने १२ गीत संग्रहों, १० गजल संग्रहों, ३ मुक्तक संग्रहों तथा ६ सम्पादित काव्य संग्रहों के प्रकाशन के बाद…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on July 9, 2010 at 12:21am —
1 Comment
बंद ,
कितना छोटा शब्द ,
कितना बड़ा असर ,
मगर ,
इसकी पुकार पर ही ,
कितनो की .
धड़कन बढ़ जाती हैं ,
कितनो की ,
सांसे रुक जाती हैं ,
कितने
ये सोच कर परेशान,
कहा से कल ,
रोटी आयेगे ,
बच्चे क्या खायेंगे ,
लेकिन ,
कुछ को मिलती हैं ,
छुट्टी का आनंद ,
तो कुछ को ,
मिलता हैं ,
तांडव करने में आनंद ,
Added by Rash Bihari Ravi on July 8, 2010 at 2:00pm —
1 Comment
महानगर में
सड़क के किनारे खड़ा था
१२ रूपये प्रति दर्जन की दर से
केले लेने पर अड़ा था ॥
कार से एक सज्जन आये
दुकानदार ने
२५ रूपये प्रति दर्जन की दर से
सब केले बेच दिए .... ॥
मैं बेवश था
सोच रहा था ....
कहां है महँगाई
खोज ही लिया मैं
महँगाई मेरे पर्स में रहती है
और जब
पर्स नोटों से भरी हो
मंहगाई पास भी नहीं फटकती
Added by baban pandey on July 8, 2010 at 10:43am —
5 Comments
एक दुआ
--------
वोह उम्र के उस रुपहले दौर से
गुज़र रही है
जब दिन सोने के और
रातें चांदी सी
नज़र आती हैं
जब जी चाहता है
आँचल में समेट ले तारे
बहारों से बटोर ले रंग सारे
जब आईने में खुद को निहार
आता है गालों पर
सिंदूरी गुलाब सा निखार
और खुद पर ही गरूर हो जाता है
जब सतरंगी सपनों की दुनिया मे खोये
इंसान खुद से ही बेखबर नज़र आता है
जब तितली सी शोख उड़ान लिए
बगिया में इतराने को जी चाहता है
जब पतंग सी पुलकित उमंग…
Continue
Added by rajni chhabra on July 8, 2010 at 12:30am —
6 Comments
वे इटे थापते है
बाल-बच्चो सहित
वर्षा ने कहर बरपाया
पानी ...
सर्वत्र पानी
वे वेरोजगार है आज से ॥
इधर सरकार का बेरोजगारी
दूर करने की योजना
मनरेगा भी बंद हो गया
२८ जून के बाद
हर साल की तरह ॥
मगर उनके बच्चो का
सुनहला दिन लौट आया है
केकड़ा पकड़ना
और ....दिन भर
खेतों में /तालाबों में
मछली मारना ॥
शाम को
माँ को मछली देना
और रात के खाने में
मछली -चावल का इंतज़ार॥
उन…
Continue
Added by baban pandey on July 7, 2010 at 8:02pm —
1 Comment