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गरीबी और भ्रष्टाचार

गरीबी और भ्रष्टाचार
एक तरह से देखे तो गरीबी और भ्रष्टाचार शास्वत समस्या है | यह समस्या सृष्टि के उद्भव से ही है और शायद सृष्टि के अंत तक रहेगी | जब हमारा राष्ट्र विश्व गुरु हुआ करता था तब भी ये समस्या किसी न किसी रूप में विद्यमान थी | शास्त्रों में भी इसका वर्णन मिलता है | समय के साथ ये समस्या बढती गई और अब इसने उग्र रूप ले लिया है | आज समाज का कोई भी कोना और वर्ग इससे अछूता नहीं है |
अगर हम चिंतन करे तो पता चलता है कि गरीबी और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पूरक है | गरीबी से त्रस्त ब्यक्ति जब सही मार्ग से अपने गरीबी को दूर नहीं कर पता है तो वह गलत मार्ग का चुनाव करता है और ठीक यहीं भ्रष्टाचार का जन्म होता है | आज भ्रष्टाचार हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है | भ्रष्टाचार के फलस्वरूप गरीबी और अमीरी की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है | जो समर्थ है वे भ्रष्टाचार की सहायता से जहा निरंतर आगे बढ़ रहे है वही लाचार और असमर्थ निरंतर गरीबी के दल-दल में गिरते जा रहे है | देश काल और परिस्थिति इसके मूक गवाह बन रहे है |
अभी पिछले दिनों हमने एक बहुचर्चित समाचार चैनल पर एक ह्रदयविदारक दृश्य देखा, जिसमे दिखाया गया कि पंजाब के एक सरकारी अनाज के भंडार में किस बेदर्दी से अनाज को बर्बाद किया जा रहा है | सोचिये जिस देश की अधिकांश गरीब जनता बिना खाए रह रही है वही पर कुछ भ्रष्ट लोगो के चलते अनाज बर्बाद हो रहा है |
हम किस दुनिया में जी रहे है | मेरे समझ से अब इंसानियत की बात करना ही बेमानी है | हर सक्षम व्यक्ति अपना- अपना झोला भरने के फिराक में है |चाहे वो किसी भी पद पे क्यों न आसीन हो उसे अपने अलावां कुछ सूझता ही नहीं है |
अंत में इतना ही कहूँगा अपने देश का भविष्य अंधकार ही अंधकार नज़र आ रहा है

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Comment by Rash Bihari Ravi on July 12, 2010 at 4:26pm
अगर हम चिंतन करे तो पता चलता है कि गरीबी और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पूरक है | गरीबी से त्रस्त ब्यक्ति जब सही मार्ग से अपने गरीबी को दूर नहीं कर पता है तो वह गलत मार्ग का चुनाव करता है और ठीक यहीं भ्रष्टाचार का जन्म होता है | आज भ्रष्टाचार हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है | भ्रष्टाचार के फलस्वरूप गरीबी और अमीरी की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है | जो समर्थ है वे भ्रष्टाचार की सहायता से जहा निरंतर आगे बढ़ रहे है वही लाचार और असमर्थ निरंतर गरीबी के दल-दल में गिरते जा रहे है | देश काल और परिस्थिति इसके मूक गवाह बन रहे है | bahut badhia

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 10:17pm
बिजय भईया बहुत ही सुंदर लेख आपने लिखा है, पर मुझे लगता है कि गरीबी और भ्रष्टाचार दोनों दो अलग अलग कारक है जिसमे कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, अमीर होने से अगर व्यक्ति भ्रष्टाचार को त्याग देता तो भ्रष्टाचार के केस मे आज कोई अमीर नहीं फसता किन्तु यहाँ तो उल्टा दिखता है, भ्रष्टाचार कि शुरुवात ही अमीरों के कर कमलो से होता है,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 10, 2010 at 1:32am
विजय पाठक जी एक विचारोत्तेजक लेख लिखा है आपने...........परन्तु आपकी एक बात से सहमत नहीं हूँ...कि भ्रष्टाचार का जन्म गरीबी की कोख से होता है.........स्थिति तो बिल्कुल इसके उलट है...जिसके पास जितना धन है वह उतना ही ज्यादा भ्रष्टाचारी है.......जितनी बड़ी कुर्सी है उतना ही बड़ा भ्रष्टाचार भी.......हमें निराशावादी ना बनकर एकता के साथ इस सामाजिक बुराई को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयत्न करना चाहिए................

****लेख में वर्तनी एवं व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियों को सुधारकर नीचे चस्पा कर रहा हूँ...आप यहाँ से कॉपी करके अपना ब्लॉग एडिट कर लीजिये.(और समय निकाल कर इसे अवश्य पढ़िए)
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:6761

गरीबी और भ्रष्टाचार
एक तरह से देखे तो गरीबी और भ्रष्टाचार शास्वत समस्या है | यह समस्या सृष्टि के उद्भव से ही है और शायद सृष्टि के अंत तक रहेगी | जब हमारा राष्ट्र विश्व गुरु हुआ करता था तब भी ये समस्या किसी न किसी रूप में विद्यमान थी | शास्त्रों में भी इसका वर्णन मिलता है | समय के साथ ये समस्या बढती गई और अब इसने उग्र रूप ले लिया है | आज समाज का कोई भी कोना और वर्ग इससे अछूता नहीं है |
अगर हम चिंतन करे तो पता चलता है कि गरीबी और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पूरक है | गरीबी से त्रस्त ब्यक्ति जब सही मार्ग से अपने गरीबी को दूर नहीं कर पता है तो वह गलत मार्ग का चुनाव करता है और ठीक यहीं भ्रष्टाचार का जन्म होता है | आज भ्रष्टाचार हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है | भ्रष्टाचार के फलस्वरूप गरीबी और अमीरी की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है | जो समर्थ है वे भ्रष्टाचार की सहायता से जहा निरंतर आगे बढ़ रहे है वही लाचार और असमर्थ निरंतर गरीबी के दल-दल में गिरते जा रहे है | देश काल और परिस्थिति इसके मूक गवाह बन रहे है |
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हम किस दुनिया में जी रहे है | मेरे समझ से अब इंसानियत की बात करना ही बेमानी है | हर सक्षम व्यक्ति अपना- अपना झोला भरने के फिराक में है |चाहे वो किसी भी पद पे क्यों न आसीन हो उसे अपने अलावां कुछ सूझता ही नहीं है |
अंत में इतना ही कहूँगा अपने देश का भविष्य अंधकार ही अंधकार नज़र आ रहा है

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