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वो इक अलाव सा जिगर में लिए फिरते हैं ,
चिराग महल के झोपडी के खूँ से जलते हैं !

बंद भारत ने ठंडे कर दिए चूल्हे लाखों ,
है किस तरह की जंग रहनुमा जो लड़ते हैं

रोटियां सेंकते लाशों पे आपने लालच की,
ये कर्णधार मुझे तो जल्लाद लगते हैं !

वो ढूँढते है भगवान को मंदिर की ओट से,
हमारी आस्था ऐसी जो चक्की भी पूजते हैं !

अपना जाना जो उन्हें जान जाएगी "बागी"
वो ज़हरी नाग हैं जो आस्तीं में रहते है !

( मैं आदरणीय योगराज प्रभाकर जी , प्रधान संपादक , ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट काम का शुक्रगुजार हूँ जिनके निगेहबानी में इस ग़ज़ल को इस स्वरुप मे प्रस्तुत कर पा रहा हूँ | )

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Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 23, 2014 at 5:41pm

आदरणीय बागी जी
अचानक इस पोस्ट पर नज़र पड़ी..अच्छा लगा पढ़कर.. मुबारकबाद

Comment by guddo dadi on September 28, 2010 at 5:09pm
क्षमा करना कुछ दिन शल्य्कारी के कारण उपस्तिथ न हो सकुंगी
धन्यवाद
Comment by Hilal Badayuni on September 23, 2010 at 1:37am
choti munh badhi baat , achchi rachna /kavita hai ghazal k liye wazan ka khyaal rakha keriye shukriya
Comment by आशीष यादव on July 18, 2010 at 2:14pm
bahut khub. yes its a very sensitive

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 13, 2010 at 12:22am
आदरणीया गुड्डो दादी, आदरणीय बब्बन भैया , गुरु जी , मित्र राणा जी , विवेक जी आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद , जो मेरी पहली ग़ज़ल पर अपनी टिप्पणी देकर मेरी हौसला अफजाई किये ,
Comment by Rash Bihari Ravi on July 12, 2010 at 4:22pm
वो ढूँढते है भगवान को मंदिर की ओट से,
हमारी आस्था ऐसी जो चक्की भी पूजते हैं !

अपना जाना जो उन्हें जान जाएगी "बागी"
वो ज़हरी नाग हैं जो आस्तीं में रहते है !

jai ho kam hain jai jai kar hooooooooooooooo

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 11, 2010 at 5:51pm
बागी भैया अब जो ग़ज़ल संपादक जी के हांथो से होकर गुज़री हो तो उसे तो अच्छा होना ही है. बड़े सुन्दर भावों को समेटा है आपने. मुझे ग़ज़ल का मतला और दूसरा शेयर खासा पसंद आया.
Comment by baban pandey on July 11, 2010 at 8:21am
बंद भारत ने ठंडे कर दिए चूल्हे लाखों ,
है किस तरह की जंग रहनुमा जो लड़ते हैं......bandh ke pichhe ka sach in do lines me ....shukriya ganesh bhai .....guru prabkhakar bhai aashirvad hai hamlogo par ...jai ho
Comment by विवेक मिश्र on July 11, 2010 at 12:33am
waah-waah.. bahut khoob..
Comment by guddo dadi on July 11, 2010 at 12:14am
कितनी बड़ी बात लिखी
बहुत ही जी के लिखा
वो ढूंढते है भगवान को मंदिर की ओट में
हमारी आस्था ऐसी है जो चक्की भी पूजते हैं कि

प्रधान मंत्री वाहिट हाउस अमेरिका में खाना खाते है
,२०० टन सोना खारीदते है चीनी बेचते हैं
उन्ही के विमान से शाराब की बोतले भी चोरी होती हैं
अपने देश में निर्धन की रोटी रोत्ती है
पाटिल को सिल्क की परिधान ही पहनती हैं
निर्धन की लड़की दहेज के आभाव में बिन ब्याही रह जाती है

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