For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

**********
" आँगन "
**********

अब कोई चिड़िया नहीं आती मेरे आँगन के दरख़्त पर...

बेटे को गाँव के मेले से एक गुलेल दिलाई थी मैंने...

अब कोई तितली नहीं मंडराती
मेरे आँगन में बने कुए के पास लगे गेंदे के पौधे पर...

बेटे ने कुछ तितलियाँ पकड़ कर अपनी कॉपी में दबा ली थीं..

अब गैया नहीं खड़ी होती मेरे द्वार पर...

भगवान को लगे भोग की रोटी खाने...

बहुएं अब आँगन को गोबर से नहीं लीपती हैं...

गोबर की महक को फिनायल से दूर कर दिया गया है...

गैया के रंभाने की आवाज़ से
मेरा बेटा डंडा लेकर दौड़ता है उसके पीछे...

अब इकतारा लेकर लच्छू दाऊ नहीं आते राम-राम गाने...

बरामदे में बज रहे स्पीकर में उनके इकतारे की टुन्न..टुन्न दब जाती है..
अब नन्ही काकी नहीं आती उबले बेर और बिरचुन की टुकानिया लेकर....

मेरे बच्चों के हाथ गंदे और चिपचिपे हो जाते हैं उबली बेर खाकर...

अब न तो डाकिया आता है तिवहार का इनाम लेने....

न ही कपड़े से बने खिलोने बेचने कजरी आती है...

न ही पुतला पुतलिया की शादी होती है...

आँगन में अब कोई पिट्टू या चीटी धप्प नहीं खेलता...

न ही आँगन में बहुएं पापड़ बनाकर सुखाती हैं....

न ही अब आँगन में मट्टी के मटके हैं पानी के...

न ही आँगन में खाट बिछा कर सोता है कोई...

अब सूने सूने खूंटे गड़े हुए हैं आँगन में...

गैया और बकरियां बेच दी गईं हैं...

आँगन भी बरसात तक अपना दर्द छिपाए सूखा पड़ा रहता है....

आँगन के दर्द का अंत होने वाला है अब...

छोटा भाई अब आँगन पूर के दो दुकाने निकल रहा है...

जिसमे शहर से लाकर
जींस.. टी शर्ट ...और कैसेट बेचेगा....

शहर अब गाँव में ही आ गया है....

न चिड़िया...न गैया....न गोबर.... न इकतारा....न कुआ...न गेंदा....

........न 'आँगन'.....!
***********************************

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rash Bihari Ravi on July 12, 2010 at 3:41pm
मन को मोहने वाला मनमोहक
Comment by baban pandey on July 12, 2010 at 7:51am
waah dinesh bhai ...pahli baar padha ....aangan....ko aangan kahne me bhi ab sharm aati hai ...prabhakar bhai sach kahte hai ....we are going towards india from Aryabart.......thanks
Comment by Admin on July 11, 2010 at 8:54pm
आदरणीय दिनेश चौबे जी, सादर अभिवादन ,
सर्वप्रथम मैं ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपके पहले ब्लॉग का हृदय से स्वागत करता हूँ , आप की यह रचना बरबस बचपन की यादों मे ले जाती हैं तथा वही गाँव का मंज़र दिखाती है, अब तो अपार्टमेंट वाली संस्कृति मे ना वो आँगन है और ना ही वो गोबर और मिट्टी की भिनी महक, सरल शब्दो का प्रयोग करते हुए बहुत ही सुंदर और उत्कृष्ण कविता प्रस्तुत किये है, बधाई स्वीकार करे , धन्यवाद,
Comment by Dinesh Choubey on July 11, 2010 at 8:22pm
राणा भाई और योगी भैया... आपलोगों का इतना अच्छा प्रतिसाद मिला है तो और लिखने कि शक्ति मिली है...

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 11, 2010 at 7:41pm
दिनेश भाई, सीधे दिल से निकले हुए जज़्बात हैं ये ! कितनी दफा पढ़ चुका हूँ, मगर विश्वास करें दिल ही नहीं भर रहा ! यह देश के "भारत" से "इंडिया" तक के सफ़र का खामियाजा है जिसको बहुत ही भावुक मगर मार्मिक ढंग से आपने चित्रित किया है ! बात इतनी मासूमियत से कही गई है कि किसी चलचित्र की तरह पूरा मंज़र ज़ेहन पर उभर आता है आपकी यह कविता पढ़कर, यही इस कविता की खासियत है ! पूरी की पूरी रचना एक विलक्षण लय लिए हुए आगे बढती है बिना किसी रुकावट के, जो बहुत अच्छा लगा ! लेकिन कहीं कहीं कविता महज़ बयानबाजी होते होते भी बची है, लेकिन कोमल भावों ने उसको बहुत ज्यादा उभरने नहीं दिया ! सिर्फ एक सलाह अवश्य देना चाहूँगा कि थोडा भाषा की परिपक्वता और व्याकरण/स्पेलिंग की गलतियों पर ध्यान दीजिये तो लेखनी में और निखार आएगा ! इस दिलकश रचना के लिए में आपको दिल से मुबारकबाद देता हूँ !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 11, 2010 at 7:06pm
दिनेश भैया..आपकी ये कविता दूर कहीं खींच कर ले जाती है. किन्ही मीठी स्मृतियों में गोता लगाने को मज़बूर करती है. शहरीकरण और झूठी आधुनिकता के दिखावे में हम अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे है. जो कि एक शुभ संकेत नहीं है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
24 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service