दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्य
कैसे क्यों को छोड़ कर, करते रहो प्रयास ।
लक्ष्य भेद का मंत्र है, मन में दृढ़ विश्वास ।।
करते हैं जो जीत से, लक्ष्यों का शृंगार ।
उनको जीवन में कभी, हार नहीं स्वीकार ।।
आज किया कल फिर करें, लक्ष्य हेतु संघर्ष ।
प्रतिफल है प्रयासों का , लक्ष्य प्राप्ति पर हर्ष ।।
देता है संघर्ष ही, जीवन को उत्कर्ष ।
आज नहीं तो जीत का, कल छलकेगा हर्ष ।।
सच्ची कोशिश हो अगर, मंज़िल आती पास ।
दे जाता संघर्ष को, एक…
Added by Sushil Sarna on April 30, 2025 at 7:53pm — No Comments
२१२२/२१२२/२१२२
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आग में जिसके ये दुनिया जल रही है
वह सियासत कब तनिक निश्छल रही है।१।
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पा लिया है लाख तकनीकों को लेकिन
और आदम युग में दुनिया ढल रही है।२।
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क्लोन का साधन दिया विज्ञान ने पर
मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है।३।
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मान मर्यादा मिटाकर पाप करती
(भूल जाती मान मर्यादा सदा वह)
भूख दौलत की जहाँ भी पल रही है।४।
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गढ़ लिए मजहब नये कह बद पुरानी
पर न सीरत एक की उज्वल रही है।५।
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दौड़ती नफरत हमेशा फिर रही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2025 at 11:41am — 1 Comment
रक्त रहे जो नित बहा, मजहब-मजहब खेल।
उनका बस उद्देश्य यह, टूटे सबका मेल।।
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जीवन देना कर सके, नहीं जगत में कर्म।
रक्त पिपाशू लोग जो, समझेंगे क्या धर्म।।
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छीन किसी के लाल को, जो सौंपे नित पीर।
कहाँ धर्म के मर्म को, जग में हुआ अधीर।।
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बनकर बस हैवान जो, मिटा रहे सिन्दूर।
वही नीच पर चाहते, जन्नत में सौ हूर।।
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मंसूबे उनके जगत, अगर गया है ताड़।
देते है फिर क्यों उन्हें, कहो धर्म की आड़।।
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पहलगाम ही क्यों कहें, पग-पग मचा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2025 at 11:26am — No Comments
२१२२ २१२२ २१२
गुफ़्तगू चुप्पी इशारा सब ग़लत
बारहा तुमको पुकारा सब ग़लत
ये समंदर ठीक है, खारा सही
ताल नदिया वो बहारा सब ग़लत
रोज़ डूबे, रोज़ लाया खींच कर
एक दिन क़िस्मत से हारा, सब ग़लत
एक क्यारी को लबालब भर दिये
भोगता जो बाग़ सारा, सब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 30, 2025 at 11:00am — No Comments
1212 1122 1212 112/22
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गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
नशा उतार ख़ुदाया नशा उतार मेरा.
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बना हुआ हूँ मैं जैसा मैं वैसा हूँ ही नहीं
मुझे मुझी सा बना दे गुरूर मार मेरा.
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ये हिचकियाँ जो मुझे बार बार लगती हैं
पुकारता है कोई नाम बार बार मेरा.
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मेरी हयात का रस्ता कटा है उजलत में
मुझे भरम था फ़लक को है इंतज़ार मेरा.
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पड़े जो बेंत मुझे उस की, दौड़ पड़ता हूँ
मैं जैसे हूँ कोई घोड़ा ये मन सवार मेरा.
.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2025 at 3:30pm — 6 Comments
रिश्तों का विशाल रूप, पूर्ण चन्द्र का स्वरूप,
छाँव धूप नूर-ज़ार, प्यार होतीं बेटियाँ।
वंश के विराट वृक्ष के तने पे डाल और,
पात संग फूल सा शृंगार होतीं बेटियाँ।
बाँधती दिलों की डोर, देखती न ओर छोर,
रेशमी हिसार…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 28, 2025 at 8:19am — 11 Comments
नहीं दरिन्दे जानते , क्या होता सिन्दूर ।
जिसे मिटाया था किसी , आँखों का वह नूर ।।
पहलगाम से आ गई, पुलवामा की याद ।
जख्मों से फिर दर्द का, रिसने लगा मवाद ।।
कितना खूनी हो गया, आतंकी उन्माद ।
हर दिल में अब गूँजता,बदले का संवाद ।।
जीवन भर का दे गए, आतंकी वो घाव ।
अंतस में प्रतिशोध के, बुझते नहीं अलाव ।।
भारत ने सीखी नहीं, डर के आगे हार ।
दे डाली आतंक को ,खुलेआम ललकार ।।
कर देंगे…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 26, 2025 at 1:00pm — 4 Comments
2122 1122 1122 22
आप भी सोचिये और हम भी कि होगा कैसे,,
हर किसी के लिए माहौल ये उम्दा कैसे।।
क्या बताएं तुम्हें होता है तमाशा कैसे,,,
वास्ते इसके लिए होता दिखावा कैसे।।
लोग उलझन में मुझे देखके होते ख़ुश हैं,,,,
कुछ तो इस सोच में रहते हैं रहेगा कैसे
मैं भी कामिल हूँ यहाँ और हो तुम भी कामिल,
कोई आमिल ही नहीं तो मैं…
ContinueAdded by Mayank Kumar Dwivedi on April 20, 2025 at 1:30pm — 4 Comments
एक धरती जो सदा से जल रही है
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२१२२ २१२२ २१२२
'मन के कोने में इक इच्छा पल रही है'
पर वो चुप है, आज तक निश्चल रही है
एक चुप्पी सालती है रोज़ मुझको
एक चुप्पी है जो अब तक खल रही है
बूँद जो बारिश में टपकी सर पे तेरे
सच यही है बूंद कल बादल रही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 19, 2025 at 5:46pm — 6 Comments
दोहा सप्तक. . . . उल्फत
याद अमानत बन गयी, लफ्ज हुए लाचार ।
पलकों की चिलमन हुई, अश्कों से गुलजार ।।
आँखों से होते नहीं, अक्स नूर के दूर ।
दर्द जुदाई का सहे, दिल कितना मजबूर ।।
उल्फत में रुसवाइयाँ, हासिल हुई जनाब ।
मिला दर्द का चश्म को, अश्कों भरा खिताब ।।
उलझ गए जो आँख ने, पूछे चन्द सवाल ।
खामोशी से ख्वाब का, देखा किए जमाल ।।
हर करवट महबूब की, यादों से लबरेज ।
रही सताती रात भर, गजरे वाली सेज ।।
हासिल दिल को इश्क में, ऐसी हुई किताब…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 18, 2025 at 5:29pm — 1 Comment
दोहा सप्तक. . . . . तकदीर
होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।
उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर ।।
भाग्य भरोसे कब भला, करवट ले तकदीर ।
बिना करम के जिंदगी, जैसे लगे फकीर ।।
बिना कर्म इंसान की, बदली कब तकदीर ।
श्रम बदले संसार में, जीने की तस्वीर ।।
चाहो जो संसार में, मन वांछित परिणाम ।
नजर निशाने पर करे, संभव हर संधान ।।
भाग्य भरोसे कब हुआ, जीवन का उद्धार ।
चाबी श्रम की खोलती, किस्मत का हर द्वार ।।
बिछा हुआ हर हाथ में,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 11, 2025 at 2:30pm — 2 Comments
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