माँ की सीख पापा के संस्कार
फँसी रहती हूँ इनमें मैं बारम्बार
माँ ने सिखाया था – पति को भगवान मानना
पापा ने समझाया था – गलत बात किसी की न सुनना
माँ ने कहा - कितनी भी आधुनिक हो जाना
पर अपने परिजनों का तुम पूरा ख्याल रखना
पढ़लिख आधुनिक बनकर रूढीवादी न बनना
और पुरानी परम्पराओं का भी तुम ख्याल करना......
पापा ने बताया - भारतीय संस्कृति बहुत अच्छी है
पर इसकी कुछ मान्यताएं बहुत खोखली हैं
बेटे-बेटी में भेदभाव बहुत…
ContinueAdded by vijayashree on April 5, 2013 at 3:30pm — 17 Comments
अंतिम स्पंदन
यदि मैं अर्पित करता भी स्नेह
उमड़ता रहा है जो मन में मेरे
क्षण-अनुक्षण तुम्हारे लिए,
कोई अंतरित ध्वनि कह देती है..कि
स्नेह इतना तुम सह ही न सकती,
और फिर द्वार तुम्हारे से लौट आए
…
ContinueAdded by vijay nikore on April 5, 2013 at 1:41pm — 34 Comments
कबहुँ सुखी क्या आलसी, ज्ञानी कब निद्रालु ?
वैरागी लोभी नहीं, हिंसक नहीं दयालु!! १
शक्ति क्षीण करते सदा, यदि अवगुण हों पास
दुर्गुण रहित चरित्र में, होता शक्ति निवास!!२
गुरुता का व्यवहार ही, गुरु को करे महान
पूजनीय औ श्रेष्ठ जो, पायें खुद सम्मान!!३
नैतिकता सद्चरित का, जिसमें पूर्ण अभाव
दयाहीन उस मनुज के, रहें मलिन ही भाव!!४
अवगुण निज में देखिये, रख सद्गुण पहचान
त्रुटियों से जो सीख ले, जग में वही…
Added by ram shiromani pathak on April 5, 2013 at 12:30pm — 19 Comments
तृतीय खंड
पाठक के लिए:
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on April 5, 2013 at 11:39am — 14 Comments
!!! मासूम सा बच्चा !!!
जाति-पाति और औकात नहीं!
माँ से बिछड़ा-बाप से बिछड़ा
जन-समाज ने पुचकारा नहीं !
दुनिया देख रहा अब बच्चा !
हिन्दू न मुस्लिम बिलकुल सच्चा!
जिसको देखता उसको लुभाता,
लगता जैसे अपना बच्चा !
मंदिर का घंटा ज्यो बजता,
दौड़ चहेक कर आता बच्चा !
मस्जिद की आजान को सुनकर,
रोज फूक डलवाता बच्चा!
हरी शर्ट-केसरिया नेकर,
नंगे पैर ठुमकता बच्चा !
मंदिर का प्रसाद और हलुवा,
गुरूद्वारे में लंगर चखता !
मस्जिद की मिलाद में…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 5, 2013 at 10:24am — 20 Comments
राजस्थान एसोसियेशन आफ़ नार्थ अमेरिका (राना कनाडा) तथा विश्व हिंदी संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में रविवार, दिनांक ३१ मार्च, २०१३ को स्थानीय भारत माता मंदिर, गोर रोड़, ब्रेम्प्टन, कनाडा में धूम-धाम से होली का पर्व मनाया गया। लगभग २०० सदस्यों की उपस्थिती में रंगों की बौछार, होली गीतों की झंकार और ’होली है’ की हुंकार से सारा वातावरण होलीमय हो गया।
लगभग ५ घंटे चले इस होली कार्यक्रम का प्रारंभन स्नैक्स व ठंडाई से हुआ। होली गीत, चुटकुले तथा एक-दूसरे को रंगों से सराबोर करने की होड़ ने…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on April 5, 2013 at 7:47am — 4 Comments
बह्रे मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़
122/122/122/12
***********************
न पीपल की छाया, न पोखर दिखे;
मेरे गाँव के खेत बंजर दिखे; (1)
हैं शुअरा जहाँ में बड़े नामवर,…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 5, 2013 at 2:00am — 14 Comments
Added by Vindu Babu on April 4, 2013 at 11:54pm — 17 Comments
गतांक...2 से आगे-- आज दिवाली का दिन था। घर के सभी लोग चिंतित और अस्त-व्यस्त से बेहाल हो चुके। मेरे मुहल्ले के लोगों का तांता मेरे घर एवं अस्पताल में मेरी शैया के इर्द-गिर्द लगा हुआ था। मेरे मिलने वालों से डाक्टर और नर्स भी काफी परेशान हो थक चुके थे। अब तक इन लोगों ने मेरे रिश्तेदारों एवं मिलने वालों से एक सामंजस्य सा बिठा लिया था। नवम्बर मास का समय और सायं के 6.00 बज रहे थे। किसी को भी आज अमावस्या के दिन घरों में दीप जलाने की कोई चिन्ता नहीं हो रही थी। मेरे बार-बार कहने पर भी लोगो ने जबाब…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 9:15pm — 8 Comments
कभी कभी शब्द आकार नहीं लेते
और मैं बह जाती हूँ अक्षरों में
सुनो ध्यान से ये क्या कहते है ?
खामोश हैं ???
नहीं इनमे कलकल का नाद…
ContinueAdded by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 4, 2013 at 8:36pm — 9 Comments
Added by seema agrawal on April 4, 2013 at 5:00pm — 8 Comments
दाइज ऐसा देना बाबुल
जिससे तन-मन जले नहीं
दर्द-वेदना के सिक्कों से
जो बेबस हो तुले नहीं
ना गुलाब की कलियां न्यारी
स्वर्णहार ना चूड़मणि
नहीं मुलायम गद्दी, सोफे
नहीं रेशमी लाश बुनी
देना बाबुल ऐसा ताला
जो बुद्धि पर लगे नहीं
अम्लान रूढि़यों की ठोकर से
जो बेदम हो खुले नहीं
लाड़-प्यार चाहे ना देना
ना लेना मेरी पोथी
जनमजली ना करना मुझको
शिक्षा बिन सब हैं रोती
देना…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 4, 2013 at 4:24pm — 9 Comments
तृतीय खंड
पाठक के लिए:
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on April 4, 2013 at 4:23pm — 11 Comments
गद्य के खंड रचे
प्रवाह भर भर के
इतना प्रवाह के
कविता टिक न सकी
पल भर को
उड़ गयी कहीं दूर
बहुत दूर
कवियों की खोज मे
और लेखक इतराता है
अतुकान्त का बोध कराता
स्वयं को
गुपचुप मुस्काता
सोचता है
कौन जानता है
कविता का आंतरिक सौंदर्य
बाहरी परिवेश
इंफ्रास्ट्रकचर ठीक
मतलब सब ठीक
अंदर जा के
किसको क्या मिला है
लय छन्द ताल
व्यर्थ हैं भाव के बिना
फिर एक मुस्कान भरता है
देखा हो गया न…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 2:09pm — 10 Comments
ढाक अमलतास पे, आ गयी बहार देखो,
सेमर भी कुसुमित, फाग का महीना है |
सारे रंग लाल-लाल, फूलों पर दिखाई दें,
कुहु-कुहू कोयल की, राग का महीना है |
सूरज का ताप तन, बदन झुलसायेगा,
तपन दहन…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 2:00pm — 16 Comments
नयन झुकाए मोहिनी, मंद मंद मुस्काय ।
रूप अनोखा देखके, दर्पण भी शर्माय ।।
नयन चलाते छूरियां, नयन चलाते बाण ।
नयनन की भाषा कठिन, नयन क्षीर आषाण ।।
दो नैना हर मर्तबा, छीन गए सुख चैन ।…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 4, 2013 at 12:30pm — 17 Comments
वक़्त बहता रहा
कभी पानी की तरह
कभी हवा के मानिद
हम भी बहते रहे बहाव में इसके
कभी फूल बनकर
कभी धूल बनकर .....
कब जिदगी के उस छोर से हम
इस छोर पर आ गये…
Added by Sonam Saini on April 4, 2013 at 11:30am — 7 Comments
आकाशीय बिजली !!!
लप-लप चमकि-चमकि
रहि रहि कुलेल करत
इत उत धावति बदरा मा
कड़क-कड़क कर
मेघ धमकावत।
बालक-नारि हृदय धड़कावत
बालक जायें छिपे अंचरा मा।
नारि मन धक-धक, रहा न जाये
पाए सहारा और अपनापन
छटपटाय झट गले लगावत।
आंखें मींच लई जोरों से
कसमसात और लजावति।
बिजुरी तनिक समझि न पावति,
गिरत-पड़त छपकि-छपकि
लाज-शर्म न झपकि-झपकि।
नयनों से ज्यों तीर चलावति
सर सर सर सर सरर…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 10:01am — 12 Comments
प्रो. सरन घई, संपादक – “प्रयास”, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा
शादी से पहले हमको कहते थे सब आवारा,
शादी हुई तो वो ही कहने लगे बेचारा।
कुछ हाल यों हुआ है शादी के बाद मेरा,
जैसे गिरा फ़लक से टूटा हुआ सितारा।
सब लोग पूछते हैं दिखता हूँ क्यों दुखी मैं,
कैसे बताऊँ उनको, बीवी ने फिर है मारा।
शादी हुई है जब से, तब से ये हाल मेरा,
जिस ओर खेता नैया, खो जाता वो किनारा।
फिरता था तितलियों…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on April 4, 2013 at 1:07am — 9 Comments
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