For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘

गतांक...2 से आगे--   आज दिवाली का दिन था। घर के सभी लोग चिंतित और अस्त-व्यस्त से बेहाल हो चुके। मेरे मुहल्ले के लोगों का तांता मेरे घर एवं अस्पताल में मेरी शैया के इर्द-गिर्द लगा हुआ था। मेरे मिलने वालों से डाक्टर और नर्स भी काफी परेशान हो थक चुके थे। अब तक इन लोगों ने मेरे रिश्तेदारों एवं मिलने वालों से एक सामंजस्य सा बिठा लिया था। नवम्बर मास का समय और सायं के 6.00 बज रहे थे। किसी को भी आज अमावस्या के दिन घरों में दीप जलाने की कोई चिन्ता नहीं हो रही थी। मेरे बार-बार कहने पर भी लोगो ने जबाब दिया कि जिन बच्चों के पटाखों की बात मैं कर रहा हूं, उन्ही बच्चों ने ही तुम्हारे पास भेजा है।....कह कर मुझे चुप रहने की सलाह देते रहे। मुझे बहुत अखर रहा था। अतः मैंने अपने घर वालों कों भी जबरन दीप जलाने हेतु घर भेज दिया। तब जाकर मुहल्ले वालों की भीड़ कम हुई। लोगों ने मेरे स्वस्थ्य होने के लिए महामृत्यृंजय जाप करवाया, दीपदान किया और भी जो कुछ मान-मनौतियां थी, सब कुछ किया। उस दिन मेरे मुहल्ले में रात 8.30 बजे लोगों ने दीपावली की पूजा की थी। बच्चों ने पटाखें नहीं दगाये थे। मेरा बच्चों के साथ बच्चों जैसा ही नाता था। उनके उत्साह वर्धन हेतु मैं तरह तरह के खेल कराना, नववर्ष, जन्माष्टमी आदि अनेक पर्वों पर मनोरंजक कार्यक्रम प्रायोजित करना और उनके प्रोत्साहन हेतु मिठाई व तमगे आदि उपहार देना, सब मैं अपने संसाधनों से ही किया करता था। सारे बच्चे भी मुझे उतना ही प्यार करते थें, जितना कि मैं उन्हे करता था। सच्चे मायने में जिस आत्मीयता का एहसास मुझे आज हो रहा था, वह इन्ही बच्चों के प्रेम का प्रतिफल ही था। अतः किसी ने सच ही कहा है कि सच्चे मन और निःस्वार्थ भाव से किया गया कार्य कभी व्यर्थ नही जाता है।

                 अस्पताल में लगभग शांति का वातावरण हो चुका था। मन में न जाने क्या-क्या विचार पानी के बुलबुलों की भांति उठ रहे थें और क्षण में ही लुप्त भी हो रहे थे। तभी मेरे मुख से वाणी प्रस्फुटित हुई कि हे! ईश्वर यह रोग आप का ही दिया हुआ है, और मैंने सदैव ही अपने इस रोग को दूर करने का ही प्रयत्न किया है। फिर भी यदि आपकी यही इच्छा थी, तो मुझे कोई दुःख नहीं है। परन्तु उन्हें, जिन्हे मेरे व्यवहार खान-पान, रहन-सहन आदि का ज्ञान है, वे भला किस प्रकार आपको क्षमा कर सकेगें। इसलिए हे! प्रभो! जिस प्रकार आप लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए अमृत संजीवनी लेकर आये थे। ठीक उसी प्रकार आप अपने इस उपासक को भी एक बार जीवन दान दिलाने की दया करें। यह जीवन मैंने स्वयं के लिये नहीं मांगा अपितु उनके लिए जो मुझे जीव को जानते थे। बस इन्ही पांच सेकेन्ड में ही इतना सब कुछ हो गया था। अचानक ही ‘‘प्रभु की कुपा भयहु सब काजु। जनम हमार सुफल भय आजु।।‘‘ मैं इधर चिंतनशील ही था, और उधर प्रभु ने डा0 महोदय को अमृत संजीवनी का ज्ञान दे दिया। बस फिर क्या था मुझे जोर की सर्दी लगी। मैं अपने पास बैठे भाई को नर्स के पास भेजना ही चाहता था कि डाक्टर स्वयं नर्स के साथ मेरे पलंग पर आ पहुंचे थे। वस्तुस्थिति को उन्होने जैसे पहले से ही भांप लिया था। मै अधर में पहुंच चुका था अथवा प्रभु का आदेश मिलना बाकी था। तत्काल मुझे इंजेक्शन लगाया गया। अब मुझे बहुत जोर की सर्दी के स्थान पर तेज पसीना आने लगा फिर मुझे होश नहीं रहा कि क्या हुआ? क्रमशः.....4

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 13, 2013 at 3:47pm

आ0 वंदना तिवारी जी, सादर प्रणाम! क्षमा चाहता हूं कि मै आपके कमेंट को समय से पढ़ सका। आपका तहेदिल से आभार प्रकट करता हूं। सादर,

Comment by Vindu Babu on April 6, 2013 at 10:23am
बहुत सुन्दर आदरणीय केनल प्रसाद जी।
अग्रिम कड़ी पढने की जिज्ञसा हो रही,कृपया शीघ्र प्रस्तुत करें।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 5, 2013 at 8:37pm

 आदरणीय, राम शिरोमणि पाठक जी,  प्रिय मित्र, प्रस्तुत कथा में आपकी रूचि और व्यग्रता के लिए आपका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 5, 2013 at 8:34pm

 आदरणीय, अशोक कुमार रक्ताले जी,  प्रस्तुत कथा में आपकी रूचि और व्यग्रता के लिए आपका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद। सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 5, 2013 at 1:31pm

अपनत्व और इश आशीष से भरे इस भाग का घटनाक्रम पढ़ने के पश्चात मन में इसके अगले और पिछले भाग को भी पढ़ने का मन हो रहा है. जब तक अगला भाग प्रकाशित हो मैं पिछले पर ही नजर डाल लूँ.

Comment by ram shiromani pathak on April 5, 2013 at 11:55am

आदरणीय केवल भाई जी बहोत ही सुन्दर आगे की कड़ी का इंतज़ार रहेगा ....

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 5, 2013 at 8:37am

आदरणीया, कुन्ती मुखर्जी जी,  सुप्रभात! ईश्वर जो कुछ करता है हमारे भले के लिए ही करता है। हम हैं कि अहम् वश समझने को तैयार ही नही होते।  जैसा कि शीर्षक है उसी के अनुरूप सुन्दर सकारात्मक सोच भी है।  आशा करता हूं कि आप  सभी को यह कथा पसंद आयेगी।  आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by coontee mukerji on April 5, 2013 at 1:52am

केवलजी नमस्कर . आपकी कथा पढ़ रही हूँ..आशा है आगे के अंश में सुखद परिणाम होगा.बेसबरी से इंतज़ार रहेगा.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
2 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service