For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                 अंतिम स्पंदन

   यदि मैं अर्पित करता भी स्नेह

   उमड़ता रहा है जो मन में मेरे

   क्षण-अनुक्षण तुम्हारे लिए,

   कोई अंतरित ध्वनि कह देती है..कि

   स्नेह  इतना  तुम  सह  ही  न  सकती,

   और फिर द्वार तुम्हारे से लौट आए

   अस्वीकृत स्नेह का बींधता क्रंदन...

   मैं ही स्वयं उसको सह न सकता।

   अबोध बालक-सा सकुचाता, बिलखता,

   यह सशंक स्नेह अंतहीन वेदना संजोए

   तुमको निष्फल पुकार-पुकार कर,

   पत्थर-दिल चट्टानों से टकरा-टकरा कर

   किस-किस बादल की ओट में  बरसता?

   मेरे ह्रद्य की धड़कन जब शिथिल पड़ जाए

   तो इस अस्वीकृत अनुरक्त स्नेह को प्रिय

   तुम झुकी हुई पलकों से कुछ पल के लिए

   अपने अंतरमन के प्राणों में आश्रय दे देना,

   और ऐसे में यदि हो जाएँ झंक्रत तार तुम्हारे,

   अपने ओंठों के स्निग्ध स्पर्ष के स्पंदन से

   अथवा आँखो से बहते अंजन से तुम मुझको

   रात के सन्नाटे में  स्वयं अलविदा कह देना।

                        --------

                                         -- विजय निकोर

 

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 972

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 22, 2014 at 11:12am

//स्नेहिल प्यार की वेदना में सनी सुन्दर अभिव्यक्ति आपकी रचनाओं की विशेषता है | इसी कड़ी में एक और सुन्दर रचना 

अन्तिम स्पंदन के लिए हार्दिक बधाई//

इन आत्मीय भावनाओं से मेरी रचनाओं को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2014 at 9:39am

स्नेहिल प्यार की वेदना में सनी सुन्दर अभिव्यक्ति आपकी रचनाओं की विशेषता है | इसी कड़ी में एक और सुन्दर रचना 

अन्तिम स्पंदन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

Comment by vijay nikore on February 19, 2014 at 12:54pm

//बहुत ही आला अभिव्यक्ति - वाह.//

आपसे ऐसी सराहना मिलना मेरे लिए पारितोषिक है, आदरणीय भाई योगराज जी।

 

सादर,

विजय


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 1:22pm

//और ऐसे में यदि हो जाएँ झंक्रत तार तुम्हारे,
अपने ओंठों के स्निग्ध स्पर्ष के स्पंदन से
अथवा आँखो से बहते अंजन से तुम मुझको
रात के सन्नाटे में  स्वयं अलविदा कह देना।//

बहुत ही आला अभिव्यक्ति - वाह.

Comment by vijay nikore on June 2, 2013 at 12:53pm

आदरणीया उषा जी:

 

सर्वप्रथम मैं क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया पर इतनी देर से लिख रहा हूँ।

 

आपके उत्साहवर्धन से इस रचना  को सार्थकता प्राप्त हुई। आपको मेरा हार्दिक

धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर 

 

 

Comment by Usha Taneja on April 22, 2013 at 5:40pm

वाह! 

अथवा आँखो से बहते अंजन से तुम मुझको

   रात के सन्नाटे में  स्वयं अलविदा कह देना।

स्नेह नहीं तो विदा ही सही.

बहुत ही अधिक लगाव प्रियतम के लिए.

सादर

उषा 

Comment by vijay nikore on April 17, 2013 at 6:47am

आदरणीय सौरभ भाई:

 

प्रोत्साहन के लिए आपका आभारी हूँ |

रचना को सारगर्भित संज्ञा देने के लिए आपका धन्यवाद |

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2013 at 10:57pm

मानसिक अभिव्यंजनाओं को शब्द मिले हैं, आदरणीय विजयभाईजी.

वृत्तियों को अर्थ, साथ ही मिली दिशा. यह होती है रचनाधर्मिता !!

सादर

Comment by vijay nikore on April 10, 2013 at 7:48am

आदरणीय विजय मिश्र जी:

 

//श्रेष्ठता लिए हुए तो आपकी सभी रचनाएँ होतीं हैं , यहाँ प्रसंशा के केवल एक शव्द --- आत्मविभोर//

इतना मान देने के लिए हार्दिक आभार। आशा है ऐसे ही संबल देते रहेंगे।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by vijay nikore on April 10, 2013 at 7:43am

आदरणीया सावित्री जी:

आपको कविता अच्छी लगी, मुझको आपसे संबल मिला।  हार्दिक धन्यवाद।

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service