ताकत .....
"क्या बात है रामदेव जी। आज बहुत उदास लग रहे हो ।"" दीनानाथ जी ने चाय पीते- पीते पूछा ।
"दीनानाथ जी आजकल किसी को कुछ कहने का जमाना नहीं है ।" रामदेव ने कहा ।
"क्या हुआ कुछ बताओ तो।" दीनानाथ जी बोले ।
"अरे कल रात की ही बात है । आधी रात को सड़क बनाने वाले इंजन की आवाज़ सुनकर हमारी नींद उखड़ गई । बाहर आकर देखा तो रोड रोलर हमारी गली के कोने की दुकान के सामने की सड़क के छोटे से टुकड़े पर डामरीकरण कर रहे थे ।" रामदेव जी बोले जा रहे थे ।
"फिर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 30, 2022 at 8:49pm — 8 Comments
है फूलों सी खुशबू तेरे इस बदन में
जी चाहता है मैं साँसों में भर लूँ
अधूरा रहेगा ये इकरार मेरा
पहलू में अपने जो तुझको ना भर लूँ
हंसी से तेरी खिल जाती है कलियाँ
जगमग सी हो जाती है तेरे आने से दुनिया
है किसने मिलाया नशा इस समा में
कदम लड़खड़ाते है देख कर तेरी गालियां
मैं ज़िंदा हूँ साँसे लिए जा रहा…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 30, 2022 at 12:01pm — No Comments
2122-2122-2122
झूठ का सन्सार करना चाहता है
सत्य पर नित वार करना चाहता है।१।
*
जो न रखता वास्ता अपनो से कोई
अन्य का आभार करना चाहता है।२।
*
देह को पतवार करके आदमी अब
हर नदी को पार करना चाहता है।३।
*
भाव गुणना आज भी आया नहीं पर
शब्द का व्यापार करना चाहता है।४।
*
भीड़ से लगने लगा अब डर बहुत
डर को भी हथियार करना चाहता है।५।
*
तोड़ देता था कभी दिखते ही उसको
अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2022 at 11:00am — 9 Comments
आरज़ू है ये दिल की इस कदर तुझको चाहूँ
आँखों से तुझको छू लूँ प्यास अपनी बुझा लूँ
तमन्ना है यही तुझको बाहों में भर लूँ
ज़रा ही सही प्यार तुझसे मैं कर लूँ
आशिक़ी में तेरी आज खुदको मिटा दूँ
दिल की जो लगी है आज तुझको बता दूँ
कोई कह सके ना ये मैं हूँ के तू है
आज खुदको तुझी में इस कदर मैं मिला…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 29, 2022 at 11:28am — No Comments
नज़र में उलझन भरी हुई है, तमाम रस्ते उजड़ गये हैं ।
सँभलना जितना भी हमने चाहा, हम उतने ज्यादा बुरे गिरे हैं।
हमारे जैसा उदास कोई, हमें कहीं भी नहीं मिला पर,
हमारे दुख से बड़े बहुत दुख ज़माने भर में भरे पड़े हैं।
कभी नहीं वो कहेंगे हमसे, के उनके दिल में है प्यार अब भी,
सकार को भी जिया था हमने नकार को भी समझ रहे हैं।
ये ज़िन्दगी की उदास खुशबू ,जो बस गयी है मेरी रगों में,
ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें ग़म भी सजे हुए…
Added by मनोज अहसास on April 28, 2022 at 5:38pm — 6 Comments
कुछ याद सम्हाले रखा है,
हमने दर्द को पाले रक्खा है
हँसते चेहरे के आड़ में हमने,
दिल के छालों को रक्खा है
सब कहते है हम हँसते हैं,
हम अपने अंदर ही बसते हैं
अब सबको हम बतलाएं क्या,
हम तनहाई से कैसे बचते है
अब रोना धोना छोड़…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 28, 2022 at 11:42am — No Comments
गाँव की धरती
गाँव की छवि अति निराली
शहर से छटा उसकी है न्यारी
गगनचुंबी से मुक्त धरा है होती
खुले आकाश सँग बातें ज्यादा है होती ।
सुबह सवेरे गाय बैल जगाते
दुग्ध धोने अपने ग्वाल को पुकारते
रुनझुन करती आती श्यामा
खुश हो जाती घर में दादी माँ
हल लेकर खेतो को निकलते
मेहनतकश पुरुष पसीना बहाते
बरगद नीम की छाँव तले बैठकर
खाते रोटी अचार चटनी प्याज मिलकर
हँसी ठट्ठा औ कोलाहल होता
हर घर से अपनापन है मिलता
सब कोई चाचा…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 27, 2022 at 10:26pm — 8 Comments
गाँव के एक दबंग व्यक्ति ने दादा जी के भोलेपन का फ़ायदा उठाकर ज़मीन और घर के एक भाग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया था । दादा जी तो अब रहे नही किन्तु तीन दशकों की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद ज़मीन और घर वापस मिले । आपसी सहमति से बँटवारा हुआ । पूरी संपत्ति पिता जी और चाचा जी के बीच बराबर-बराबर बाँट दी गई । दोनों ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना-अपना हिस्सा स्वीकार किया । सहसा पिता जी ने चाचा जी से कहा,
"देख छोटे, ज़मीन और घर का बँटवारा तो हो गया । किन्तु भविष्य में कभी तुझे रहने के लिए घर छोटा पड़े…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 27, 2022 at 8:20pm — 7 Comments
वर्षों हुए
एक बार देखे उसको
तब वो पूरे श्रृंगार में होती थी
बात बहुत
करती थी अपनी गहरी आँखों से
शब्द कहने से उसे उलझने तमाम होती थी
इमली चटनी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 27, 2022 at 11:30am — 1 Comment
Added by Deepalee Thakur on April 25, 2022 at 5:46pm — 3 Comments
सुख-दुख हैं दो तीर , साँस की बहती धारा ।
जीवन का संघर्ष , अन्त में जीवन हारा ।
बचा न कुछ भी शेष,
रही बस शेष कहानी ।
काया के अवशेष ,
ले गया गंगा पानी ।
अटल सत्य जब श्वास, छोड़ कर जाती काया ।
कुछ न आता काम , व्यर्थ हो जाती माया ।
वक्त गया जो बीत,
कभी न लौट कर आए ।
शून्य व्योम ये सत्य ,
बार - बार दोहराए ।
सुशील सरना / 26-4-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 25, 2022 at 12:00pm — 2 Comments
दोहावली......
जग के झूठे तीर हैं, झूठी है पतवार ।
अवगुंठन में जीत के, मुस्काती है हार ।।
कुदरत ने सबको दिया, जीने का अधिकार ।
धरती के हर जीव को, बाँटो अपना प्यार ।।
छाया देती साथ जब, होता प्रखर प्रकाश ।
विषम काल में ईश ही , काटे दुख के पाश ।।
दो साँसों के तीर में, सुख -दुख का है नीर ।
भज दाता के नाम को, जब तक चले शरीर ।।
काया की प्राचीर में, साँसें खेलें खेल ।
इसकी हर दीवार पर, इच्छाओं की…
Added by Sushil Sarna on April 24, 2022 at 12:10pm — 2 Comments
पुस्तक दिवस पर )
कैदी......
पहले कैद थे
लफ्ज़
अन्तस की गहन कंदराओं में
फिर कैद हुए
मोटी- मोटी जिल्दों में सोये पृष्ठों में
फिर कैद हुए
लकड़ी की अलमारियों में
आओ
मुक्ति दें इन अनमोल कैदियों को
जो बैठे हैं
उन कद्रदानों के इन्तिज़ार में
जो पहचान सकें
लफ्जों में लिपटे मौसम के
अनबोले अहसासों के
सुशील सरना / 23-4-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 23, 2022 at 10:26pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
नफ़रतों की आग भड़की भाईचारा जल उठा
ख़ौफ़ इतना है कि दरिया का किनारा जल उठा
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 22, 2022 at 8:24pm — 2 Comments
थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ मुझे अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खालीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 22, 2022 at 10:30am — 1 Comment
छल ......
कल
फिर एक
कल होगा
भूख के साथ छल होगा
आशाओं के प्रासाद होंगे
तृष्णा की नाद होगी
उदर की कहानी होगी
छल से छली जवानी होगी
एक आदि का उदय होगा
एक आदि का अन्त होगा
आने वाला हर पल विकल होगा
जिन्दगी के सवाल होंगे
मृत्यु के जाल होंगे
मरीचिका सा कल होगा
तृष्णा तृप्ति का छल होगा
सच
कल
भोर के साथ
फिर एक कल होगा
भूख के साथ
छल होगा
सुशील सरना / 21-4-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 21, 2022 at 9:57pm — 2 Comments
सार छंद : अनुभूति
छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसी प्रीत निभायी ,
दिल ने तुझको समझा अपना , तू निकला हरजाई।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सपनों में जब आना ,
किसी और के सपनों मे फिर ,भूले से मत जाना ।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा ये युग आया ।
रिश्तों का कोई मोल नहीं, अच्छी लगती माया ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा कलियुग आया ।
सास बनाये रोटी सब्जी, बहू सजाए काया ।।
सुशील सरना / 12-4-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 12, 2022 at 6:00pm — 6 Comments
ख़्वाब देखे जो भी मैंने सब अधूरे रह गए
मिटटी के बर्तन थे कच्चे, पानी के संग बह गए
रेत की दीवार थी और दलदली सी छतरही
मौज़ों के टकराव से वो अंत तक लड़ती रही
साल सोलह कर लिए जो पूरे अपने उम्र के
कैद में घिरने लगी मैं बिन किये एक जुर्म के
स्कूल का बस्ता भी मेरा कोने में था पड गया
सांस लेती किताबों पर भी धूल सा एक जम…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 7, 2022 at 3:12pm — 2 Comments
समय से पहुंचना जरूरी था, इसलिए मैंने बस पकड़ ली थी। बैठने के लिए स्थान नहीं मिला लेकिन एक ओर खड़े होने की जगह मिल गई थी। बस लगभग पूरी तरह भरी हुई थी। साथ चढ़ने वाले यात्रियों में पचास के आसपास की वह ग्रामीण स्त्री भी थी, जो बस की स्थिति देखकर मायूस हो; अन्य सभी की तरह एक सीट के साथ टेक लगाकर खड़ी हो गई। उसी सीट पर बैठी दो युवा उच्च शिक्षित…
ContinueAdded by VIRENDER VEER MEHTA on April 6, 2022 at 1:30pm — 7 Comments
पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति अविचल,अपरिमित,
अव्याख्येय वसन्त
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 6, 2022 at 12:37pm — 6 Comments
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