For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : बँटवारा (गणेश जी बाग़ी)

गाँव के एक दबंग व्यक्ति ने दादा जी के भोलेपन का फ़ायदा उठाकर ज़मीन और घर के एक भाग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया था । दादा जी तो अब रहे नही किन्तु तीन दशकों की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद ज़मीन और घर वापस मिले । आपसी सहमति से बँटवारा हुआ । पूरी संपत्ति पिता जी और चाचा जी के बीच बराबर-बराबर बाँट दी गई । दोनों ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना-अपना हिस्सा स्वीकार किया । सहसा पिता जी ने चाचा जी से कहा,
"देख छोटे, ज़मीन और घर का बँटवारा तो हो गया । किन्तु भविष्य में कभी तुझे रहने के लिए घर छोटा पड़े तो वो पूरब वाला मेरे हिस्से के घर में तू या तेरे बच्चे बेहिचक रह सकते हैं ।"
सामान्यतः ज़मीन-ज़ायदाद के मामले में मैं चुप ही रहता हूँ, किन्तु पिताजी द्वारा कही गयी यह बात मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आयी । मैं बहुत ही सम्मानपूर्वक बस इतना ही कह पाया,
"पिता जी और चाचा जी ! क्षमा चाहता हूँ किन्तु मुझे सन 1947 टाइप बँटवारा नहीं चाहिए ।"

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 472

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2022 at 4:26pm

आ. भाई गणेश बागी जी, बहुत  सटीक और सार्थक और शिक्षाप्रद लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on May 1, 2022 at 2:45pm

जनाब 'बाग़ी' जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी है आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2022 at 5:52am

आदाब। मैं इसे समसामयिक और सर्वकालिक भी कह सकता हूं, क्योंंकि  समाज के मध्यम या कमज़ोर वर्ग में ऐसी परिस्थितियाँ आज भी बनती हैं और पिता जी ऐसी राय या समाधान सुझाते हैं और ऐसे मामले झगड़ों का मनमुटाव का क़ानूनी उलझनों का कारण बनते हैं। बेहतरीन रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय सर गणेश जी बागी जी।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 28, 2022 at 4:05pm

बहुत ही सुंदर और मारक लघुकथा कही है आपने आदरणीय गणेश बागी जी , अंतिम पंक्ति बकमाल है | बधाई स्वीकारें| 

Comment by Sushil Sarna on April 28, 2022 at 1:36pm
वाह आदरणीय बागी जी बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुति है सर ।हार्दिक बधाई सर

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 28, 2022 at 10:11am
आपकी यह लघुकथा पढ़कर बरबस यह शेअर याद आ गया,

ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई।

ऐसी कई ख़ताएँ हम से भी हो चुकी हैं। न केवल 1947 में ही बल्कि 1948, 1965 और 1971 में भी, उसकी डिटेल में जाना तो शायद समीचीन न होगा। अत: ऐसे बँटवारे को स्वीकार करना पुरानी गलतियों को दोहराने जैसा ही होगा। बहरहाल आपकी यह लघुकथा प्रभावोत्पादक एवं मुकम्मल है। इसमें निहित संदेश शीशे की तरह साफ़ है। कथ्य और शिल्प के दृष्टिकोण से एकदम सधी हुई व कसी हुई इस लघुकथा पर मेरी आत्मिक बधाई स्वीकार करें भाई गणेश बागी जी।
Comment by Chetan Prakash on April 28, 2022 at 8:25am

नमस्कार,  आदरणीय  इं. गणेश बागी जी, बहुत  सटीक और सार्थक , इतिहास  से सीख  लेती , लघुकथा कही  आपने ! बधाई स्वीकार करें !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आप वस्तुतः एक बहुत ही साहसी कथाकार हैं, आ० उस्मानी जी. "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया विभा रानी जी, प्रस्तुति में पंक्चुएशन को और साधा जाना चाहिए था. इस कारण संप्रेषणीयता तनिक…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हमारा सौभाग्य है कि आप गोष्ठी में उपस्थित हो कर हमें समय दे सके। रचना…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रस्तुति नम कर गयी. रक्तपिपासु या हैवान या राक्षस कोई अन्य प्रजाति के नहीं…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"घटनाक्रम तनिक खिंचा हुआ प्रतीत तो हो रहा है, लेकिन संवादों का प्रवाह रुचिकर है, आदरणीय शेख शहज़ाद…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service