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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम  -  कुण्डलिया छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

21 जून’ 25 दिन शनिवार से

22 जून 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

***************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

21 जून’ 25 दिन शनिवार से 22 जून 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
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  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
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  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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Replies to This Discussion

स्वागतम

जय-जय

योग

****

  

छोटी छोटी बच्चियाँ, हैं भविष्य की आस 

शिक्षा लेतीं आधुनिक, करतीं योगाभ्यास

करतीं योगाभ्यास, सबल करतीं हैं तन-मन  

कल को हो तैयार, करेंगी नभ को आँगन

सागर लेंगीं बाँध, छुएँगीं पर्वत चोटी

करतीं तितली योग, तितलियाँ छोटी-छोटी

 

योगासन दिखला रही, कक्षा हो संयुक्त  

कहती दूर विकार कर, रखे रोग से मुक्त

रखे रोग से मुक्त, चित्त की चिंता हरता  

मनोवृत्ति कर शांत, मनस को संयत करता

है भारत की देन, सिखाता मन पर शासन   

योग दिवस पर आज, करें मिल कर योगासन

 

जीवन का आधार हैं, आसन-प्राणायाम

हैं प्राणों की साधना, नहीं मात्र व्यायाम

नहीं मात्र व्यायाम, योग की जीवन शैली

किरणें जिसकी आज, जगत में चहुँदिक फैली

अष्टयोग सिद्धांत, करे तन-मन को उपवन

खिलें मोद के पुष्प, सुगंधित रहता जीवन

#मौलिक एवं अप्रकाशित   

आदरणीय अजय अजेय जी, 

आपकी छंद-रचनाएँ शिल्पबद्ध और विधान सम्मत हुई हैं. 

सर्वोपरि, आपके तीनों छंद में रोला वाले भाग के पहले दो चरण तार्किक हैं और अर्थबोध को संतुष्ट कर रहे हैं. यह एक सफल प्रयास है. 

करतीं तितली योग (क्रिया) जैसी पंक्तियाँ तबतक नहीं हो सकतीं, जबतक कि रचनाकार इससे परिचित न हो. 

है भारत की देन, सिखाता मन पर शासन   

योग दिवस पर आज, करें मिल कर योगासन ... वाह वाह ... सत्य-वचन .. 

जीवन का आधार हैं, आसन-प्राणायाम

हैं प्राणों की साधना, नहीं मात्र व्यायाम ..     ,,,   सही बात. ये ’नहीं मात्र व्यायाम’. 

चित्रानुरूप रचनाएँ वास्तव में श्लाघनीय हैं. आपके प्रयास के प्रति हार्दिक बधाई 

शुभ-शुभ

रचना प्रयास को अपना अमूल्य समय देकर सराहने और उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी                       

आदरणीय अजय भाईजी 

सभी पंक्तियों में योग की महिमा है और योग को जीवन शैली बनाने की प्रेरणा भी।

हार्दिक बधाई इस विशुद्ध प्रस्तुति के लिए।

आभार आदरणीय अखिलेश भाई    

आ. भाई अजय जी, प्रदत्त चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।

आभार लक्ष्मण भाई    

वाह,वाह,तीनों लाजवाब कुण्डलिया श्री अजय गुप्ता 'अजेय' जी। किंतु अंतिम कुण्डलिया में 'उपवन व जीवन' का तुकांत दोषपूर्ण हो गया है।

 

जीवन का आधार हैं, आसन-प्राणायाम

हैं प्राणों की साधना, नहीं मात्र व्यायाम// बिल्कुल सही. 

सागर लेंगीं बाँध, छुएँगीं पर्वत चोटी.....वाह्ह क्या बात है!

आदरणीय अजय गुप्ता जी चित्र पर मनभावन और सार्थक छंद सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए 

आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रदत्त चित्र को छंद-छंद परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सचमुच योग जीवन का आधार है. सभी नियमित योग करें और इसे अपनी दिनचर्या में लायें. सभी छंद आपने सुन्दर रचे हैं. सादर 

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"आदरणीय सुरेश कल्याण जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार दोनों ही कुण्डलिया छंद आपने सुन्दर रचे हैं.…"
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