फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(एक शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ कर दें)
जो कहूँ जो लिखूँ ओबीओ के लिये
यूँ समर्पित रहूँ ओबीओ के लिये
माँगता हूँ यही आजकल मैं दुआ
जब तलक भी जियूँ ओबीओ के लिये
वक़्त इसके लिये कुछ निकालो ज़रा
ये गुज़ारिश करूँ ओबीओ के लिये
दूसरा काम कोई नहीं है मुझे
जब रुकूँ ,जब चलूँ ओबीओ के लिये
आप आऐं हमारे परिवार में
जो मिले ये कहूँ ओबीओ के लिये
अब ग़ज़ल या कथा ही नहीं दोस्तो
छन्द भी मैं लिखूँ ओबीओ के लिये
ज़िक्र इसका रहे हर ज़बाँ पर "समर"
काम ऐसे करूँ ओबीओ के लिये
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत खूबसूरत गज़ल ।आदरणीय समर क़बीर साहब जी। हार्दिक बधाई।
वाह्ह्ह वाह्ह ओबीओ को समर्पित ये ग़ज़ल भी लाजबाब हुई आद० समर भाई जी दिल से मुबारकबाद आप इसी तरह ओबीओ में सदा बने रहें |
क्या चली है कलम ओबीओ के लिए
कम नहीं ये कदम ओबीओ के लिए
हमने देखी है चाहत लगन आपकी
रातदिन की सनम ओबीओ के लिए
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, ओबीओ की सातवीं वर्षगाँठ पर बहुत खूबसूरत तोहफा आपका. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. ओबीओ से आपकी मुहब्बत यूँ ही बनी रहे. मुझ जैसे गजल सीखने वालों को आपकी उपस्थिति का लाभ मिलता रहेगा. सादर.
क्या बात .. सिचुएशन पोएट्री भी कमाल की है ... हम सबको बधाई :))
ओबीओ के लिए अति सुंदर गजल के लिए बधाई श्री समर कबीर साहब -
नाम रोशन करे दुनिया में ओबीओ,
भावना ये रहे मेरी ओबीओ के लिए |
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