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ओबीओ की सातवीं सालगिरह का तोहफ़ा

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(एक शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ कर दें)


जो कहूँ जो लिखूँ ओबीओ के लिये
यूँ समर्पित रहूँ ओबीओ के लिये

माँगता हूँ यही आजकल मैं दुआ
जब तलक भी जियूँ ओबीओ के लिये

वक़्त इसके लिये कुछ निकालो ज़रा
ये गुज़ारिश करूँ ओबीओ के लिये

दूसरा काम कोई नहीं है मुझे
जब रुकूँ ,जब चलूँ ओबीओ के लिये

आप आऐं हमारे परिवार में
जो मिले ये कहूँ ओबीओ के लिये

अब ग़ज़ल या कथा ही नहीं दोस्तो
छन्द भी मैं लिखूँ ओबीओ के लिये

ज़िक्र इसका रहे हर ज़बाँ पर "समर"
काम ऐसे करूँ ओबीओ के लिये

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on April 2, 2017 at 6:18pm
सातवीं सालगिरह पर ओबीओ को बहुत बेहतरीन तोहफ़े से नवाज़ा है आपने आदरणीय समर कबीर सर। आप हमेशा ही ओबीओ परिवार के लिए समर्पित रहते हैं। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 2, 2017 at 5:02pm
वाह आ0 समर साहिब यह ग़ज़ल आपके ओ बी ओ के प्रति पूर्ण समर्पण की एक मिशाल है।

यूँ ही बढ़ता रहेगा सदा ओ बी ओ
जब 'समर' से यहाँ ओ बी ओ के लिए।
Comment by TEJ VEER SINGH on April 2, 2017 at 11:10am

बहुत खूबसूरत गज़ल ।आदरणीय समर क़बीर साहब जी। हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 11:03am

वाह्ह्ह वाह्ह ओबीओ को समर्पित ये ग़ज़ल भी लाजबाब हुई आद० समर भाई जी दिल से मुबारकबाद आप इसी तरह ओबीओ में सदा बने रहें |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 2, 2017 at 10:51am
बहुत ख़ूब। सबके तज़ुर्बों को समेटती बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब समर कबीर साहब। ओबीओ परिवार साहित्य-सृजन-प्रशिक्षण का आधार।
Comment by Ashok Kumar Raktale on April 2, 2017 at 8:42am

क्या चली है कलम ओबीओ के लिए

कम  नहीं ये कदम ओबीओ के लिए

 

हमने देखी है चाहत लगन आपकी

रातदिन की सनम ओबीओ के लिए

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, ओबीओ की सातवीं वर्षगाँठ पर बहुत खूबसूरत तोहफा आपका. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. ओबीओ से आपकी मुहब्बत यूँ ही बनी रहे. मुझ जैसे गजल सीखने वालों को आपकी उपस्थिति का लाभ मिलता रहेगा. सादर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2017 at 8:41pm

क्या बात .. सिचुएशन पोएट्री भी कमाल की है ...  हम सबको बधाई :))

Comment by मनोज अहसास on April 1, 2017 at 7:30pm
Bahut bahut Mubarak sir
Badhai
Aapka aashirwad bana rahe
Comment by Samar kabeer on April 1, 2017 at 6:21pm
पांचवें शैर में 'परिवार'शब्द की तक़ती मैंने उर्दू के लिहाज़ से 212 की है, हिन्दी के हिसाब से ये 221 हो रहा है,ग़ज़ल पढ़ते वक़्त कृपया ध्यान में रखें ।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 1, 2017 at 5:51pm

ओबीओ के लिए अति सुंदर गजल के लिए बधाई श्री समर कबीर साहब -

नाम रोशन करे दुनिया में ओबीओ,

भावना ये रहे मेरी ओबीओ के लिए |

कृपया ध्यान दे...

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