बह्र- 2122 1122 1122 22(112)
ज़हर पी के मैं तेरे हाथ से मर जाऊँगा
और हँसते हुए दुनिया से गुज़र जाऊँगा [1]
जो सिला मुझ को मिला है यहाँ सच बोलने से
अब तो मैं झूट ही बोलूँगा जिधर जाऊँगा [2]
रात को ख़्वाब में आऊँगा फ़रिश्ते की तरह
और आँखों से तेरी सुब्ह उतर जाऊँगा [3]
ख़ून छन छन के निकलता है कलेजे से मेरे
रोग ऐसा है कि कुछ रोज़ में मर जाऊँगा [4]
सामना होने पे पूछेगा तू , पहचाना मुझे?
गर मैं पहचान भी लूँगा तो मुकर जाऊँगा [5]
तेरी दहलीज़ पे आया हूँ मुहब्बत के लिए
ख़ाली कासे को उठा के मैं किधर जाऊँगा [6]
किसी की आँख में चमकूँगा सितारे की तरह
और दुआओं की तरह लब पे ठहर जाऊँगा [7]
दर्द सीने में जो बढ़ता है तो लिखता हूँ ग़ज़ल
दर्द मिलता रहे इस फ़न में सँवर जाऊँगा [8]
रूपम कुमार 'मीत'
'मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आ, सालिक सर्, प्रणाम
आपका बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफ़ज़ाई के लिए मशकूर हूँ, गुणीजनों की बात पर मैं अमल करता हूँ सादर।
आपका स्नेह बना रहे बालक पर।
प्रिय रुपम
एक और बढ़िया ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाइयाँ स्वीकारो.गुणीजनों की इस्लाह पर अमल करो,तुम तो लंबी रेस के धावक हो,बहुत दूर तक जाना है. सलामत रहो.
आ, लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब जी , ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये बेहद मशकूर हूँ। सादर।
आ. भाई रूपम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आ, साहिब ठीक मैं यही कर देता हूँ, आपका बहुत शुक्रिया।
'जो सिला मुझको मिला है तुझे सच बोलने से'
अभी बात वहीं की वहीं है, इसे यूँ कर सकते हैं:-
जो सिला मुझको मिला है यहाँ सच बोलने से'
आ, मोहतरम समर कबीर साहिब, प्रणाम,
आपका बहुत शुक्रिया, मेरा इन्तिज़ार ख़त्म हुआ, दिल से शुक्रिया साहिब।
दूसरे शेर को यूँ कर दूँ तो
जो सिला मुझको मिला है तुझे सच बोलने से
अब तो मैं झूट ही बोलूँगा जिधर जाऊँगा
'मरज़' को 'रोग' कर देता हूँ,
अव्वल अव्वल रोग ही था, बा'द में मैंने ही मर्ज़ कर दिया था,
अब मैं ध्यान में रखूँगा सहीह हर्फ़ मरज़ है।
एक बार फिर से आपका शुक्रिया साहिब, मार्गदर्शन का आगे भी इन्तिज़ार रहेगा।,
आपका स्नेह बना रहे।
आ, नीलेश साहिब, प्रणाम,
आपकी बातों पर अमल करूँगा, मैं इस मंच का पूरा फ़ायदा लेना चाहत हूँ, आपकी इस्लाह का आगे भी इंतिजार रहेगा,
आपने जो बताया शे'र लिख कर उसको गुन गुना लिया कीजै, साहिब इस से मेरे शे'र में रवानी आएगी, लेकिन हम गा नहीं पाते, बस लय के हिसाब से शे'र लिखते हैं।
आपका बहुत शुक्रिया बालक को इतना वक़्त दिया, आपका स्नेह बना रहे।
2122 को 1122 लिया हूँ, यह ओबीओ पर ही एक ब्लॉग में पढ़ा था, जो रवि भसीन साहिब ने पोस्ट किया था, मेरे पास मिसाल के रूप में कोई शे'र नहीं था बेड़े शायर का इसीलिए चुप रहा,
आ, अमीरुद्दीन साहिब,आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये बेहद मशकूर हूँ। सादर।
जनाब रूपम कुमार 'मीत' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'जो सिला मुझ को मिला है तुझे सच बोलने पर'
इस मिसरे पर जनाब निलेश जी से सहमत हूँ ।
'मर्ज़ ऐसा है कि कुछ रोज़ में मर जाऊँगा'
इस मिसरे में सहीह शब्द "मरज़" 12 है, देखियेगा ।
'किसी की आँख में चमकूँगा सितारों की तरह'
इस मिसरे की बह्र में आपने 2122 को 1122 करने की छूट ली है,जो दुरुस्त है सिर्फ़ 'सितारों' की जगह "सितारे' कर लें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2021 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online