बह्र- 2122 1122 1122 22(112)
देख तूफ़ाँ की ये रफ़्तार ख़ुदा ख़ैर करे
घर की कमज़ोर हैं दीवार ख़ुदा ख़ैर करे [1]
कर न दें मुफ़लिसों पे वार ख़ुदा ख़ैर करे
चंद पैसों के तलबगार ख़ुदा ख़ैर करे [2]
लौटने का मेरा है ख़ुद में इरादा लेकिन
"ये सफ़र है बड़ा दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे" [3]
नौकरी भी नहीं है हाथ में उस पर मेरा
हर समेस्टर गया बे-कार ख़ुदा ख़ैर करे [4]
मुझको हर सम्त से घेरा हुआ है दुश्मन ने
और गर्दन पे है तलवार ख़ुदा ख़ैर करे [5]
किसका दीदार हुआ था मुझे आइने में
उसकी आँखें थी चमकदार ख़ुदा ख़ैर करे [6]
ये वबा कोई क़यामत से तो कम है ही नहीं
शहर का शहर है बीमार ख़ुदा ख़ैर करे [7]
फड़फड़ाने लगी है आज मेरी बाईं आँख
दुख का आए न समाचार ख़ुदा ख़ैर करे [8]
जिंदगी दर्द के बिन कैसे गुज़र होगी 'मीत'
ज़ख़्म भरने के हैं आसार ख़ुदा ख़ैर करे [9]
*मौलिक-व-अप्रकाशित*
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तरही ग़ज़ल।
मिस्रा -रवि भसीन 'शाहिद' साहिब जी की ग़ज़ल से लिया गया है।
"ये सफ़र है बड़ा दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे"
Comment
प्रिय रूपम कुमार
आदरणीय अमीररूद्दीन साहिब, आदब, आप ने जो मार्ग दर्शन किया उस से मेरे सभी दोउन्ट क्लियर हो गए, मुझे इस विषय में ज्ञान ही नहीं था, मैं समझता था किसी का मिस्रा ले कर ग़ज़ल कह ही तो वो ताज़मीन हो गई, लेकिन अब इल्म हुआ। बहुत शुक्रिया, और ग़ज़ल पर उपस्थित दिखा कर अपने मेरा हौसला बढ़ाया है, यहाँ आकर काफी कुछ सिख रहा हूँ, आपका स्नेह बना रहे साहिब।
उस्ताद मोहतरम समर कबीर साहिब जी प्रणाम, ग़ज़ल की उपस्थिति और हौसला अफजाई का हृदय तल से शुक्रिया साहिब, आपकी इस्लाह पर अलम गौर कर रहा हूँ, जी बात सहीह है जब लुट गया तो ख़ैर किस बात की,
"कैसे भाएगी गुलाबों की महक यार को अब
लुट रहा इश्क़ का गुलज़ार ख़ुदा ख़ैर करे"
ऐसे ठीक होगा कहना उस्ताद जी? जरा रौशनी डाले, आपका स्नहे बना रहे।।
अमीर जी ने सहीह जानकारी दी है आपको , तज़मीन के बारे में अधिक जानने के लिए मेरे ब्लॉग पर मेरी कुछ तज़मीन पढ़ सकते हैं ।
जनाब रूपम कुमार 'मीत' जी आदाब, आपने बताया है कि //तज़मीं की हुई ग़ज़ल है यह,
मिस्रा -रवि भसीन 'शाहिद' साहिब जी की ग़ज़ल से लिया गया है।"ये सफ़र है बड़ा दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे"//
मुहतरम आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि "तज़मीं" नहीं ये लफ़्ज़ "तज़मीन" और तज़मीन शाइरी की एक सिन्फ़ (विधा) है,जैसे ग़ज़ल, क़ित'अ, नज़्म, मर्सिया, रूबाई वग़ैरह-वग़ैरह इसी तरह तज़मीन भी एक अलग सिन्फ़ है, इसलिए किसी दूसरी सिन्फ़ को यह नहीं कहा जा सकता है कि ये तज़मीन की हुई ग़ज़ल है या कि तज़मीन किया हुआ मर्सिया या क़ित'अ है। "किसी सुप्रसिद्ध रचना नज़्म या ग़ज़ल या किसी अन्य विधा के मज़्मून को सम्पूर्ण या आंशिक रूप से उसके अर्थ को पूर्ण या संपुष्ट करने के उद्देश्य से स्वयं की रचना में शामिल करने या परिचय कराने की विधा को तज़मीन कहते हैं। इसलिए आपकी इस रचना को तज़मीन की हुई ग़ज़ल कहना सहीह नहीं हैै। उर्दू अदब के बहुत कम शाइरों ने ही तज़मीन कही है, आपकी ये ग़ज़ल तरही मिसरे पर कही गई अच्छी ग़ज़ल है आपका प्रयास सराहनीय है। मुुुुबारकबाद पेश करता हूँ।
जनाब रूपम कुमार 'मीत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'किसका चेहरा हुआ दीदार मुझे आइने में'
इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,यूँ कर सकते हैं:;
'किसका दीदार हुआ था मुझे आईने में'
'लुट गया इश्क़ का गुलज़ार ख़ुदा ख़ैर करे'
जब गुलज़ार लुट ही गया तो ख़ुदा से किस बात की ख़ैर चाहते हैं?
'फड़फड़ाने लगी है आज मेरी बाएँ आँख'
इस मिसरे में 'बाएँ' को "बाईं" कर लें ।
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